लखनऊ: उत्तर प्रदेश के 27 जिलों में हजारों लोग फाइलेरिया (हाथी पांव) जैसी बीमारी से त्रस्त हैं. फाइलेरिया एक संक्रामक रोग है जो मच्छरों के काटने से फैलता है. मच्छरों के काटने से फैलता है. यह रोग वुचेरेरिया बैनक्रॉफ्टी और ब्रुगिया मलायी जैसे परजीवी कृमियों के कारण होता है. जिसके चलते लोगों के हाथ, पैर, स्तन या अंडकोष में सूजन आ जाती है. इस बीमारी के खात्मे के लिए दस साल पहले अखिलेश यादव की सरकार में फाइलेरिया उन्मूलन अभियान शुरू किया गया था. योगी सरकार में भी यह अभियान जारी है, लेकिन अभी तक उक्त बीमारी को जड़ से खत्म नहीं किया जा सका है. फिलहाल फाइलेरिया के फैलाव को रोकने के लिए सूबे के 27 जिलों में करीब चार करोड़ लोगों को फाइलेरिया रोधी दवा खिलाने का अभियान राज्य में चलाया जा रहा है.
इन जिलों में खिलाई जाएगी दवा
राज्य फाइलेरिया अधिकारी डॉ. एके चौधरी की देखरेख में यह अभियान चलाया जा रहा है. डॉ. एके चौधरी के मुताबिक वर्तमान में फाइलेरिया से प्रदेश के 51 जिले प्रभावित हैं, लेकिन प्रदेश में 27 जिलों के 195 ब्लॉकों में ही फाइलेरिया (हाथी पांव) उन्मूलन के लोगों को दवा खिलाई जा रही है. इनमें से दस जिलों कानपुर नगर, कानपुर देहात, हरदोई, लखीमपुर खीरी, रायबरेली, सीतापुर, फतेहपुर, कौशांबी, चंदौली और मिर्जापुर में फाइलेरिया से सबसे ज्यादा पीड़ित लोग हैं. जिसके चलते इन दस जिलों के 92 ब्लाक में फाइलेरिया की चपेट में आए लोगों को एल्बेंडाजोल, डीईसी के साथ एक अतिरिक्त दवा आइवरमेक्टिन लोगों को खिलाई जा रही है. जबकि अन्य 17 जिलों में से किस जिले में कितनी दवा लोगों को खिलानी है? यह जिले में फाइलेरिया के मरीज को पूर्व में खिलाई गई दवा के अनुसार तय किया जा रहा है. डॉ. चौधरी के अनुसार, जिन 17 जिलों औरैया, बहराइच, बलरामपुर, बस्ती, देवरिया, इटावा, फर्रुखाबाद, गाजीपुर, गोंडा, गोरखपुर, हरदोई, कन्नौज, महाराजगंज, संत कबीर नगर, सिद्धार्थ नगर, श्रावस्ती, सुल्तानपुर में फाइलेरिया का प्रकोप कम है वहां पर दो ही लोगों को खिलाई जा रही हैं. फाइलेरिया उन्मूलन अभियान के तहत 28 अगस्त तक करीब चार करोड़ लोगों को दवा खिलाने के लिए 35,483 औषधि प्रशासक (डीए) और 7,096 पर्यवेक्षक तैनात किए गए हैं.
लोग दवा नहीं खाते, इसलिए नहीं हो पा रहा नियंत्रण
बीते दस वर्षों से लगातार जारी फाइलेरिया उन्मूलन अभियान के बाद भी इस पर अभी तक पूरी तरह से नियंत्रण क्यों नहीं किया जा सका है? इस बारे में पूछे जाने पर डॉ. चौधरी का कहना है कि फाइलेरिया के प्रकोप वाले जिलों में करीब 48 प्रतिशत लोग दुष्प्रभाव के डर से फाइलेरिया की दवा नहीं खाते हैं. हालांकि फाइलेरिया की दवा खाने के बाद यदि किसी व्यक्ति को खुजली, चकत्ते या चक्कर आता है तो यह कोई दुष्प्रभाव नहीं है. ये लक्षण बताते हैं कि उस व्यक्ति के शरीर में फाइलेरिया के कीटाणु थे और दवा का उन पर असर हो रहा है. लोगों को यह बताए जाने के बाद भी तमाम लोग फाइलेरिया की दवा दिए जाने के बाद भी नहीं खाते. डा. चौधरी ने कहते हैं कि फाइलेरिया उन्मूलन अभियान के तहत पांच साल तक लगातार कोई व्यक्ति दवा खा लेगा तो वह फाइलेरिया बीमारी से सुरक्षित हो जाएगा और यदि फाइलेरिया से प्रभावित क्षेत्र के 80 प्रतिशत से अधिक लोग अभियान के तहत खिलाई जा रही दवा का सेवन कर लेंगे तो वह समुदाय बीमारी से सुरक्षित हो जाएगा. फिलहाल लोगों को फाइलेरिया से बचाव के लिए ग्राम प्रधान को साथ लेकर लोगों को दवा खिलाई जा रही है. उम्मीद है कि इस अभियान का असर लोगों पर पड़ेगा और फाइलेरिया पर अंकुश लगेगा.
फाइलेरिया (हाथी पांव) की कैसे होती है
ये बीमारी फाइलेरिया क्यूलेक्स मच्छर के काटने से होती है. संक्रमित मच्छर के काटने के 10 से 15 साल में इस रोग के लक्षण प्रकट होते हैं. इसमें हाथ, पैर, स्तन या अंडकोष में सूजन आ जाती है. पेशाब के साथ सफेद रंग के द्रव (काइल्यूरिया) का स्राव भी होता है. इसके अलावा, लंबे समय से सूखी खांसी आने की शिकायत भी हो जाती है. ये लाइलाज बीमारी है, इसलिए इससे बचने का उपाय सिर्फ फाइलेरिया रोधी दवा का सेवन ही है. इसलिए सरकार प्रभावित जिलों में सर्वजन दवा सेवन (एमडीए) अभियान चलाती है. फाइलेरिया मरीजों की पहचान के लिए विशेष रूप से रात को खून की जांच (नाइट ब्लड सर्वे) की जाती है. इस जांच में फाइलेरिया के कीटाणु की पहचान की जाती है.