मुंबई की चुनावी राजनीतिः ‘लुंगीवालों’ के विरोध की नींव पर खड़ी हुई थी शिवसेना, बालासाहब ठाकरे के बनने की कहानी

By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: September 11, 2019 09:45 AM2019-09-11T09:45:44+5:302019-09-11T09:45:44+5:30

मुंबई पर राज करने की ओर कैसे बढ़े बालासाहब ठाकरे के कदम. मराठी अस्मिता का नारा अमोघ अस्त्र साबित हुआ। पढ़िए मुंबई की चुनावी राजनीति की श्रंखला की पहली कड़ी...

Electoral politics of Mumbai: Shiv Sena stood on the foundation of opposition of 'lungiwals', the story of the formation of Balasaheb Thackeray | मुंबई की चुनावी राजनीतिः ‘लुंगीवालों’ के विरोध की नींव पर खड़ी हुई थी शिवसेना, बालासाहब ठाकरे के बनने की कहानी

मुंबई की चुनावी राजनीतिः ‘लुंगीवालों’ के विरोध की नींव पर खड़ी हुई थी शिवसेना, बालासाहब ठाकरे के बनने की कहानी

Highlightsआज धारणा यही है कि शिवसेना का जन्म उत्तर भारतीयों के विरोध की धरती पर हुआसन् 1960 के पहले मुंबई तथा महाराष्ट्र का बड़ा हिस्सा संयुक्त महाराष्ट्र आंदोलन से प्रभावित था.

आज से दस-बारह साल पहले जब महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के संस्थापक राज ठाकरे ने मुंबई से उत्तर भारतीयों तथा बिहारीयों को बोरिया-बिस्तर समेट लेने की धमकी दी थी तो कांग्रेस के नेता संजय निरूपम ने उन्हें जवाब दिया था कि यदि उत्तर भारतीय राज करना बंद कर दें तो मुंबई  थम जाएगी. निरुपम के दावे में कोई अतिशयोक्ति नहीं है, मुंबई की रफ्तार को उत्तर भारतीयों ने न केवल तेज रखा है बल्कि अब वह देश की व्यावसायिक राजधानी की राजनीति की दिशा तय करनेवाली असरदार ताकत भी बन गए हैं.

पिछले कुछ वर्षो से उत्तर भारतीयों तथा बिहारीयों के विरोध की राजनीति को अपना हथियार बनाने वाली शिवसेना और मनसे अब इस वोट बैंक के दरवाजे पर जा रहे हैं, उन्हें गले लगा रहे है तथा मुंबई के आर्थिक, व्यावसायिक सामाजिक तथा राजनीतिक ढांचे में उनके महत्व को तवज्जों देने लगे हैं.

आज धारणा यही है कि शिवसेना का जन्म उत्तर भारतीयों के विरोध की धरती पर हुआ मगर यह भी सच नहीं है. सन् 1960 के पहले मुंबई तथा महाराष्ट्र का बड़ा हिस्सा संयुक्त महाराष्ट्र आंदोलन से प्रभावित था. उस वक्त इन क्षेत्रों की राजनीति के केंद्र में भी संयुक्त महाराष्ट्र ही था. सन् 1960 में महाराष्ट्र के नया राज्य बनते ही संयुक्त महाराष्ट्र की राजनीति भी खत्म हो गई. उसके बाद काटरूनिस्ट से राजनेता बनने की राह पर चल पड़े बालासाहब ठाकरे ने मराठी अस्मिता का मुद्दा उछाला और मुंबई  में अन्ना यानी दक्षिण भारतीयों के खिलाफ मोर्चा खोल दिया.  

उत्तर भारतीय उस वक्त भी मुंबई में थे मगर ठाकरे का निशाना बने दक्षिण भारतीय. अन्ना ‘विरोधी राजनीति में मुंबई  राजनीति में शिवसेना को न केवल जन्म दिया बल्कि महत्वपूर्ण राजनीतिक ताकत भी बना दिया. बालासाहब ठाकरे ने शिवसेना की स्थापना के साथ-साथ पार्टी का मुखपत्र मार्मिक भी निकाला जिसमें दक्षिण भारतीयों से संबंधित सामग्री में उन्हें  ‘लुंगीवाला’ संबोधित किया जाता था. ‘लुंगीवाला’ के विरोध ने सत्तर के दशक में शिवसेना को मुंबई की बड़ी राजनीतिक ताकत बना दिया. बालासाहब हर चुनाव में  ‘निर्णायक शक्ति’ बन गए. मराठी वोट बैंक उनके साथ खड़ा हो गया.

बालासाहब के दक्षिण भारतीयों के विरोध की सबसे बड़ी वजह यह थी कि साठ और सत्तर के दशक के बीच में तमिलनाडू, आंध्रप्रदेश, केरल, कर्नाटक से रोजगार की तलाश में मुंबई में बड़ी संख्या में दक्षिण भारतीय आकर बसने लगे. उस दौर में खेती-किसानी में व्यस्त उत्तरभारतीयों के लिए मुंबई के प्रति खास आकर्षण नहीं था. मुंबई में रोजगार की संभावना वे देखते नहीं थे क्योंकि उत्तरभारत तथा बिहार में शिक्षा के अभाव के कारण अच्छी नौकरीयों के प्रति आकर्षण कम था. इसके विपरीत दक्षिण भारत से अच्छी नौकरी या व्यवसाय करने के लिए मुंबई में व्यापक संभावनाएं देखने लगे. 

साठ और सत्तर के दशक में मुंबई (तब बंबई) में दक्षिण भारतीयों की संख्या में 10 प्र.श. की पूर्ति हुई. वे मुंबई में मजबूत वोट बैंक बन गए. यह वोट बैंक कांग्रेस के प्रभाव में था और उसे मजबूती प्रदान करता था. बालासाहब को पता था कि मराठी अस्मिता को मुद्दा उठाए बिना शिवसेना के पैर मजबूती जमा नहीं सकते. कांग्रेस को मराठी भाषियों के साथ-साथ मुंबई में उद्योग-व्यवसाय पर वर्चस्व रखनेवाली गुजरातीयों को भी समर्थन हासिल था.

 मुंबई के सामाजिक जीवन में उत्तर भारतीय उस वक्त पृष्ठभूमि में थे. बॉलीवुड में सक्रिय कुछ गीतकारों, फिल्म निर्माता-निर्देशकों और साहित्यकारों तक ही मुंबई में उत्तर भारतीयों की पहचान जीवित थी. उत्तर भारतीय मुंबई की राजनीति में अछूते पहलू थे. उन्हें बड़ी राजनीतिक ताकत नहीं समझा जाता था. इसीलिए बालासाहब ने उन्हें टारगेट नहीं बनाया लेकिन अस्सी के दशक से हालात बदलने पड़े तथा शिवसेना, कांग्रेस और भाजपा (तब जनसंघ) को अपने राजनीतिक लक्ष्य तथा प्राथमिकताएं बदलनी पड़ी.

Web Title: Electoral politics of Mumbai: Shiv Sena stood on the foundation of opposition of 'lungiwals', the story of the formation of Balasaheb Thackeray

भारत से जुड़ीहिंदी खबरोंऔर देश दुनिया खबरोंके लिए यहाँ क्लिक करे.यूट्यूब चैनल यहाँ इब करें और देखें हमारा एक्सक्लूसिव वीडियो कंटेंट. सोशल से जुड़ने के लिए हमारा Facebook Pageलाइक करे