डॉक्टर रामू उर्फ जीवी रामानजइनआईलू एक ऐसे व्यक्ति, जिसने देश भर में ऑर्गनिक फार्मिंग की लहर ला दी। अकेले ही कम से कम 7000 गांव और 30 लाख एकड़ जमीन की सूरत बदल दी। जिसने किसानों के लिए सिविल सर्विसेज की नौकरी छोड़ दी। डॉक्टर जीवी रामानजइनआईलू का जन्म एक किसान परिवार में हुआ था। उनके दादा किसान थे और पिताजी भारतीय रेलवे में काम करते थे।
आईआरएस की नौकरी नहीं, एग्रीकल्चर रिसर्च को चुना
डॉ रामू हमेशा से ही लोक सेवा जुड़ना चाहते थे। इसके लिए साल 1995 में उन्होंने कॉम्पटेटिव एग्जाम दी। जब एग्जाम का रिजल्ट आया तो वो इंडियन रेवेन्यू सर्विसेस और इंडियन काउंसिल ऑफ एग्रीकल्चरल रिसर्च (आईसीएआर) में एक साथ सेलेक्ट हुए। आईआरएस की आराम भरी नौकरी को छोड़कर उन्होंने एग्रीकल्चर रिसर्च जैसे मुश्किल और किसानों से जुड़े हुए काम को चुना। साल 1996 से लेकर 2003 तक वह आईसीसीएआर में रहे और उन्होंने कृषि विज्ञान के क्षेत्र में जबरदस्त काम किया। उसके बाद 2004 में उन्होंने खुद का एक नॉन प्रॉफिट आर्गेनाईजेशन - सेंटर ऑफ सस्टेनेबल एग्रीकल्चर का गठन किया।
सेंटर ऑफ सस्टेनेबल एग्रीकल्चर की शुरुआत
किसानों के आत्महत्या बहुत ज्यादा बढ़ गई थी, खासकर आंध्र प्रदेश में हजारों की संख्या में किसान आत्महत्याएं कर रहे थे। डॉ. रामू के सामने जब भी कोई खाना रखता तो उनको किसानों की हालत का ख्याल आता। यही सब देखकर उन्होंने कृषि के क्षेत्र में खुद काम करना का मन बना लिया और सेंटर ऑफ सस्टेनेबल एग्रीकल्चर की शुरूआत की।इस संगठन का मकसद किसानों को टेक्नॉलजी की मदद से आर्थिक रूप से मजबूत बनाना है। उनकी संस्था राज्य सरकारों और स्वयं सेवी समूहों की मदद से किसानों को बिना पेस्टिसाइड और खेती से जुड़े अन्य बेहतर तरीके सिखाते हैं।
साल 2005 से 2008 के बीच उनके संगठन ने आंध्र प्रदेश के स्वयंसेवी समूह - सोसायटी फॉर एलिमिनेशन ऑफ रूरल पावर्टी के साथ मिलकर काम किया। इस दौरान महिला किसानों को फार्मर फील्ड स्कूल के माध्यम से 45 सप्ताह की ट्रेनिंग दी गई जिसमें दो मौसम का वक्त लगा। इस ट्रेनिंग के दौरान महिला किसानों को बिना पेस्टिसाइड के खेती करने की ट्रेनिंग दी गई। इस ट्रेनिंग में सात हजार गांव शामिल हुए, जिनकी 30 लाख एकड़ जमीन को केमिकल पेस्टिसाइड से मुक्त कर लिया गया।
8 राज्यों में कर रहे हैं काम
डॉक्टर रामू आज कुल 8 राज्यों में काम करते हैं, जिसमें आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, महाराष्ट्र, पंजाब, सिक्किम, त्रिपुरा, उत्तर प्रदेश और उड़ीसा शामिल है।
बिना केमिकल पेस्टिसाइड के कैसे होती है खेती
पेस्टीसाइड नहीं इस्तेमाल करने के लिए उसके दूसरे विकल्प ढूंढा गए। इसमें घर पर बने नीम, लहसुन, हरी, मिर्च या दूसरे औषधीय पौधे, गाय का गोबर और गोमूत्र के गोले बनाने सिखाए जाते हैं। हर खास तरीके का गोला एक खास कीट को मारता है। ऐसा करने से खेती के खर्च में काफी कमी भी आई। किसान लगभग 5000 हजार रुपए प्रति एकड़ बचा पा रहे हैं। इसके और फायदे भी हैं - खेत में उपज बढ़ जाता है और समय के साथ-साथ ऑर्गेनिक खेती होने के कारण बाजार में बेहतर दाम भी मिल पाते हैं।
डॉ रामू ऑर्गेनिक फार्मिंग की ओर इस पहल को और आगे बढ़ावा देते हैं और किसानों को ऑर्गेनिक खाद, कंपोस्ट और क्रॉप रोटेशन जैसे टेक्निक का इस्तेमाल करना भी सिखाते हैं। इससे ना सिर्फ उपज बेहतर होती है बल्कि जमीन की मिट्टी की उर्वरक क्षमता भी अच्छी होती है। साथ ही किसानों की कमाई में भी इजाफा होता है। 2010 में इस संगठन ने आंध्र प्रदेश के 13 फ़ीसदी इलाके में काम करना शुरू कर दिया था, जिससे पूरे राज्य के पेस्टिसाइड की खपत लगभग 50 फीसदी तक कम हो गई थी।
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