दिग्विजय सिंहः पर्दे के पीछे की सियासत में असरदार बनेंगे, लेकिन बिंदास बयानों की कीमत कांग्रेस को चुकानी होगी!
By प्रदीप द्विवेदी | Published: August 30, 2020 09:55 PM2020-08-30T21:55:57+5:302020-08-30T21:55:57+5:30
दिग्विजय सिंह का सक्रिय सियासत में प्रवेश 1971 में हुआ, जब वे राघोगढ़ नगरपालिका के अध्यक्ष बने. इसके बाद 1977 में रागोगढ़ विधानसभा क्षेत्र से कांग्रेस विधायक बने.
भोपाल: एमपी के पूर्व मुख्यमंत्री और राज्यसभा सदस्य कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह ऐसे राजनेता हैं, जो इस वक्त अपनी मनमर्जी की राजनीति कर रहे हैं. उन्हें पता है कि वे प्रधानमंत्री बन नहीं पाएंगे और लंबे समय तक मुख्यमंत्री रह चुके हैं, लिहाजा कभी भी बयान जारी करते वक्त इसके सियासी फायदे-नुकसान का हिसाब नहीं लगाते हैं.
हालांकि, उनके ऐसे बयानों के कारण कई बार कांग्रेस परेशानी में पड़ चुकी है. बावजूद इसके, उनके सियासी तौर-तरीकों में कोई खास बदलाव नहीं आया है. वर्ष 1998 के चुनाव के दौरान उन्होंने राजनीति की देवी त्रिपुरा सुंदरी, बांसवाड़ा, राजस्थान के दरबार में पूजा-अर्चना की थी, तब उन्हें दिवंगत पं. लक्ष्मीनारायण द्विवेदी ने उनके सियासी भविष्य की जानकारी दी थी.
उनकी प्रचलित कुंडली कहती है कि दिग्विजय सिंह की धर्म में आस्था तो है, लेकिन दार्शनिक चरित्र के कारण, कई बार तार्किक भी हो जाते हैं. बहुआयामी व्यक्तित्व होने के कारण उनकी शक्ति अनेक क्षेत्रों में विभक्त होती रही है, तो, जो सही लगा, बोल दिया, की आदत के कारण अक्सर विवादों में आ जाते हैं. यह बात अलग है कि उनकी ज्यादातर जानकारियां भले ही पुख्ता होती हैं, लेकिन उनके बयानों के कारण पार्टी के नुकसान की आशंका हमेशा बनी रहती है.
सितारों की समीकरण पर भरोसा करें तो वर्ष 2020-21 में दिग्विजय सिंह पर्दे के पीछे की सियासत में तो असरदार बनकर उभरेंगे, लेकिन बिंदास बयानों के कारण सियासी विवाद बढ़ सकते हैं और इसकी कीमत पार्टी को चुकानी होगी.
दिग्विजय सिंह का सक्रिय सियासत में प्रवेश 1971 में हुआ, जब वे राघोगढ़ नगरपालिका के अध्यक्ष बने. इसके बाद 1977 में रागोगढ़ विधानसभा क्षेत्र से कांग्रेस विधायक बने. यही नहीं, 1978-79 में दिग्विजय को मध्यप्रदेश युवक कांग्रेस का महासचिव बनाया गया. जब वे दोबारा 1980 में राघोगढ़़ से चुनाव जीत गए, तो अर्जुन सिंह मंत्रिमंडल में उन्हें मंत्री पद मिल गया. जहां 1984 और 1992 में दिग्विजय लोकसभा का चुनाव जीत गए, वहीं 1993 और 1998 में वेे एमपी के मुख्यमंत्री बने.
आने वाले सितंबर और अक्टूबर माह गुप्त शत्रुओं से सतर्क रहने का समय है, मतिभ्रम की स्थिति बनी रहेगी, तो परिश्रम के पूरे परिणाम मिलने की संभावना कम ही रहेगी. नवंबर- 2020 से मार्च- 2021 तक का समय बेहतर है. राजनीतिक मित्र सहयोग करेंगे, तो विरोधियों को भी इस समय में ठीक से जवाब दे सकेंगे. यह समय सियासी सफलता और भौतिक सुख का संदेश लेकर आएगा. सबसे बड़ी बात, इस दौरान आत्मविश्वास प्रबल रहेगा, लेकिन कम बोलना और ज्यादा काम की नीति पर चले, तो कामयाबी बेहद करीब होगी.
अप्रैल 2021 सतर्क रहने का समय है, खासकर विवादास्पद बयानबाज़ी से बचना होगा, वरना विरोधियों की ही नहीं, अपनों की भी नाराज़गी झेलनी होगी. मई से जुलाई- 2021 के पूर्वार्ध तक का समय अच्छा है. लाभदायक यात्राएं होंगी, तो विपरीत परिस्थितियों में भी अच्छे परिणाम प्राप्त होंगे. बड़ी जिम्मेदारी मिल सकती है.
जुलाई उतरार्ध से अगस्त उतरार्ध तक का समय सवालिया निशान बना रहेगा. सेहत पर ध्यान देना होगा, तो सोच समझ कर निर्णय लेने होंगे. इसके बाद का समय सफलता का संदेश लेकर आएगा. अलबत्ता, यात्रा में सतर्कता जरूरी है.सितारों की गणित पर भरोसा करें, तो यह वर्ष (2020-21) 60 प्रतिशत तक कामयाबी देनेवाला है, परन्तु आक्रामक और विवादास्पद बयानों से बचना होगा, वरना इसके कारण बेमतलब की उलझनें खड़ी हो सकती हैं!