दहशतगर्दी के बावजूद कश्मीर में कायम है भाईचारा, सुख-दुख में साथ देते हैं एक-दूसरे का साथ, मनाते हैं मिलकर सभी त्योहार
By सुरेश एस डुग्गर | Published: October 25, 2022 04:03 PM2022-10-25T16:03:16+5:302022-10-25T16:14:53+5:30
जम्मू-कश्मीर में बीते तीन दशकों से फैली दहशतगर्दी के बावजूद हिंदू-मुस्लिम एकता आज भी बेहद मजबूत है। दोनों धर्म के लोग एक-दूसरे की खुशियों और दुख में शामिल होते हैं और साथ मिलकर सारे त्योहारों का आनंद लेते हैं।
जम्मू: यह पूरी तरह से सच है कि उत्तरी कश्मीर के बांडीपोरा जिले के कालूसा गांव ने तमाम संघर्षों और लगातार उथल-पुथल के बावजूद दशकों पुराने हिंदू-मुस्लिम भाईचारे और आपसी सद्भाव के बंधन को कायम रखा है। पुराने जमाने के घरों और पत्तों के साथ अखरोट के पेड़ों के साथ, कुछ मुट्ठी भर कश्मीरी पंडित परिवार, जो मुख्य शहर के बाहरी इलाके में इस जीर्ण-शीर्ण गांव में अपने पुराने तरीके से बनाए गए घरों में रह रहे हैं। आज भी अपनी परंपराओं और रीति-रिवाजों को बरकरार रखे हुए हैं और साथ में रहने वाले मुस्लिम समुदाय के साथ उनकी दोस्ती का पुराना बंधन आज भी अटूट बना हुआ है।
कलूसा में रहने वाले कश्मीर पंडित चमन लाल कौल कहते हैं, “हमारे पास वे (मुसलमान) हैं, और हमारे त्योहारों में उनकी भागीदारी के बिना, हमारी खुशी पूरी नहीं होती है। किसी भी त्योहार को मनाने की भावना उनके बिना अधूरी है।” पेशे से शिक्षक रहे चमन लाल सेवानिवृत्त के बाद घाटी में अपने परिवार के साथ बेहद मजे में रह रहे हैं। उन्होंने अपने करियर के दौरान कई स्थानीय मुसलमानों को पढ़ाया। कौल का कहना था कि “हम अपने सभी शुभ, दुखद और बुरे दिनों को एक साथ मनाते हैं। हमारे धार्मिक कर्मकांडों के लिए उनका तहे दिल से प्यार और समर्थन, चाहे वह जन्म का हो या मृत्यु का, अपराजित है।”
इस शनिवार को जब बुजुर्ग पंडित मोती लाल भट का निधन हुआ तो बड़ी संख्या में मुसलमान अपने आंसू नहीं रोक पाए थे और कश्मीरी पंडितों के साथ श्मशान घाट गए। कौल के लिए यह कोई असामान्य या पहली घटना नहीं थी। दिवाली के लिए पास के मंदिर में प्रार्थना करने की तैयारी करते हुए उन्होंने कहा था कि यह मेरे पूरे जीवन में होता रहा है और इसके लिए हम अपने मुस्लिम भाइयों का अहसान जिन्दगी भर नहीं चुका सकते।
उन्होंने कहा, “आज जब हम दिवाली मनाते हैं, मुसलमान उपहार और आशीर्वाद लेकर पहुंचे हैं। वे हमारे पास आते हैं और हमारी खुशी भी बांटते हैं। यह सबसे बड़ा अनुष्ठान रहा है और हम इसे उनके साथ मिलकर मनाते हैं।” मुसलमान हमारे नुकसान को महसूस करते हैं और जब हम किसी भी स्थिति का सामना करते हैं तो यह उनके लिए एक अंग खोने जैसा है।
चमन कौल, जो दीवाली पर एक लंबे समय के बाद अपने प्रिय दोस्त प्रोफेसर इस्माइल आशना से मिलने गए थे। उनसे मुलाकात के बाद कहा कि मुस्लिम समुदाय हमारे जीवन का हिस्सा रहा है। वे उन पंडितों को याद करते हैं जो दूसरी जगहों पर चले गए। दिल्ली, बंगलौर और अन्य स्थानों में उनके वर्तमान निवास स्थान पर कई लोग उनसे जुड़ते हैं या मिलते हैं और पुरानी यादें साझा करते हैं। वे उन्हें बुरी तरह याद करते हैं। शाम को जब उन्होंने अलाव जलाया, तो पांच घरों के लगभग एक दर्जन पंडितों के साथ मुस्लिम भी शामिल हो गए, जब उन्होंने पास के मंदिर में दिवाली की पूजा भी की।
उन्होंने कहा कि वे आते हैं और हमें प्रार्थना करते हुए देखते हैं। हमारे साथ मिलकर मिठाइयां भी बांटते हैं। बाद में हमारे घरों में व्यक्तिगत उत्सव होते हैं, उसमें भी वो शामिल होते हैं। यहां तक कि शिवरात्रि, होली और अन्य त्योहारों पर भी वे हमारे साथ जुड़े रहते हैं। उनकी भागीदारी के बिना हमारा आनंद अधूरा है। यहां तक कि उत्सव मनाने का जोश भी अधूरा है।
इस्माइल आशना, जो कुछ दिनों पहले मोती लाल के निधन पर शोक में कलूसा में थे। चमन कौल के घर से जाने की तैयारी कर रहे थे। वहां जाने से पहले इस्माइल ने कहा, “मुस्लिम और पंडित एक हैं। पृथ्वी पर कोई भी शक्ति हमारे बंधन को नहीं तोड़ सकती है।" लेखक राधा कृष्णन का हवाला देते हुए आशना कहते हैं कि रात का अंधेरा कितना भी लंबा क्यों न हो, अंत में प्रकाश को तो आना ही है।