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बिहार विधानसभा चुनाव में पहले चरण का नामांकन की तिथि समाप्त होने के बावजूद महागठबंधन की नहीं खुल सकी गांठ, कई सीटों पर हो गए आमने-सामने

By एस पी सिन्हा | Updated: October 18, 2025 16:15 IST

महागठबंधन में बिना सीटों के तालमेल की घोषणा के ही प्रथम चरण में 121 सीटों पर 125 प्रत्याशियों ने नामांकन किया है। 121 में राजद ने 72, कांग्रेस ने 24, वामदलों ने 21, वीआईपी ने 6 और आईआईपी ने 2 सीटों पर नामांकन भर दिया है।

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पटना:बिहार विधानसभा चुनाव में पहले चरण का नामांकन की तिथि समाप्त होने के बावजूद महागठबंधन में अभी तक सीटों के बंटवारे को लेकर अनिश्चितता बनी हुई है। हाल यह है कि कौन कहां से चुनाव लड़ेगा यह तय कर पाने में महागठबंधन को पसीना छूट रहा है। महागठबंधन में बिना सीटों के तालमेल की घोषणा के ही प्रथम चरण में 121 सीटों पर 125 प्रत्याशियों ने नामांकन किया है। 121 में राजद ने 72, कांग्रेस ने 24, वामदलों ने 21, वीआईपी ने 6 और आईआईपी ने 2 सीटों पर नामांकन भर दिया है। प्रथम चरण के नामांकन में चार सीटें ऐसी हैं जहां गठबंधन के प्रत्याशी ही आमने-सामने हैं। दोनों फेज की बात करें तो दर्जन भर सीटों पर महागठबंधन की पार्टियां एक दूसरे के आमने-सामने लड़ रही हैं।

इसमें सिकंदरा सीट से राजद ने विधानसभा के पूर्व अध्यक्ष उदय नारायण चौधरी को प्रत्याशी बनाया है, जबकि कांग्रेस ने विनोद चौधरी को मैदान में उतारा है। वहीं कुटुंबा सीट कांग्रेस की हॉट सीट पर प्रदेश अध्यक्ष राजेश राम को उम्मीदवार बनाया गया है। इसी सीट पर राजद ने सुरेश पासवान को उतारने का फैसला किया है। इसी तरह वैशाली में कांग्रेस के संजीव कुमार और राजद के अजय कुशवाहा ने नामांकन किया है, जबकि लालगंज में राजद से शिवानी शुक्ला और कांग्रेस से आदित्य कुमार राजा के बीच सीधी टक्कर है। घटक दलों के बीच जिन सीटों पर मुकाबला होता दिख रहा है उनमें बछवाड़ा सीट हैं, जहां से भाकपा ने अवधेश कुमार को तो कांग्रेस ने शिव प्रकाश को उम्मीदवार बनाया है। 

वहीं, बिहार शरीफ सीट पर भी कांग्रेस और भाकपा आमने सामने हैं। यहां से भाकपा ने दीपक प्रकाश को तो कांग्रेस ने उमर खान को सिंबल दे दिया है। जबकि रोसड़ा सीट पर भी लड़ाई आपस में ही है। यहां से भाकपा ने लक्ष्मण पासवान को तो कांग्रेस ने ब्रजकिशोर को उम्मीदवार बनाया है। वैशाली के राजापाकर में भी भाकपा और कांग्रेस आमने-सामने हो गई है। भाकपा से मोहित पासवान हैं तो कांग्रेस से प्रतिमा दास ने नामांकन कर दिया है। 

इसी तरह तेजस्वी यादव और मुकेश सहनी के बीच भी मामला सुलझा हुआ नहीं कहा जा सकता है। तारापुर सीट पर कौन लड़ेगा इसको लेकर महागठबंधन में तस्वीर साफ नहीं है। यहां राजद और वीआईपी दोनों ने अपने उम्मीदवार खड़े कर दिये हैं। तारापुर से राजद ने अरुण शाह को सिंबल दिया है, वहीं वीआईपी सकलदेव बिंद को मैदान में उतार दिया है। इसी प्रकार गौरा बौराम से राजद ने अफजल अली को उतारा, जबकि वीआईपी यहां से मुकेश सहनी के भाई को सिंबल दिया है। वैसे राजद ने यहां से अपना सिंबल वापस ले लिया है। सबसे अनोखा मामला आलम नगर का है, जहां से नवीन कुमार ने राजद और वीआईपी दोनों दलों के उम्मीदवार के रूप में नामांकन कर दिया है। कहा जा रहा है कि वो एक नामांकन वापस लेंगे। इसे गठबंधन की भाषा में 'फ्रेंडली फाइट' या दोस्ताना मुकाबला कहा जा रहा है। 

महागठबंधन के सहयोगियों में जिन सीटों पर सीधा टकराव है, उनमें वारसलीगंज में राजद की अनिता कुमारी कांग्रेस से मंटन सिंह से, सिकंदरा में राजद उदय नारायण चौधरी का कांग्रेस के विनोद चौधरी से, तारापुर में राजद के अरुण शाह का वीआईपी के सकलदेव बिंद से, बछवाड़ा में भाकपा के अवधेश राय का कांग्रेस से गरीब दास से, गौरा बौराम में राजद के अफजल अली का वीआईपी से संतोष सहनी से, लालगंज में राजद की शिवानी शुक्ला का कांग्रेस से आदित्य राजा से, कहलगांव में राजद के रजनीश यादव का कांग्रेस से प्रवीण कुशवाहा से, राजापाकड में राजद के मोहित पासवान का    कांग्रेस की प्रतिमा दास से, रोसड़ा में भाकपा के लक्ष्मण पासवान का कांग्रेस के बी के रवि से और वैशाली में राजद के अजय कुशवाहा का    कांग्रेस के संजीव कुमार से मुकाबला होना देखा जा रहा है। 

इसी तरह नरकटियागंज सीट पर भी मारामारी की स्थिति है। 2020 में यह सीट कांग्रेस के खाते में रही थी। ऐसे में कांग्रेस यहां से फिर से विनय वर्मा को मैदान में उतारना चाहती है। लेकिन इस सीट पर राजद का भी दावा है। पार्टी यहां से अपने उम्मीदवार को उतारने की तैयारी में है, जिससे स्थिति उलझ गई है। वहीं, नवादा जिले की वारसलीगंज सीट भी कांग्रेस के खाते में रही है। 2020 के चुनाव में कांग्रेस से सतीश सिंह यहां से प्रत्याशी थे। 

इस बार राजद की ओर से अशोक महतो की पत्नी को उम्मीदवार बना दिय गया है। जबकि कांग्रेस इसे अपनी पारंपरिक सीट बताकर छोड़ने को तैयार नहीं है। वहीं, गठबंधन के सूत्रों का कहना है कि यह 'फ्रेंडली फाइट' सीटों के अंतिम बंटवारे तक उम्मीदवारों पर दबाव बनाने की रणनीति का हिस्सा है। हालांकि, अंतिम तारीख तक अगर ये उम्मीदवार अपना नामांकन वापस नहीं लेते हैं, तो महागठबंधन को इन महत्वपूर्ण सीटों पर आपसी फूट का भारी नुकसान उठाना पड़ सकता है। 

सूत्रों के अनुसार, महागठबंधन के नेता अभी भी कुछ सीटों पर बातचीत कर रहे हैं। उम्मीद है कि नामांकन वापस लेने की अंतिम तारीख से पहले कुछ 'फ्रेंडली फाइट' वाले उम्मीदवार अपना नाम वापस ले लेंगे।

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