दत्तात्रेय होसबोले 'आपातकाल' को याद करके रोये, बोले- "वह जन आंदोलन का दूसरा 'स्वतंत्रता संग्राम' था"

By आशीष कुमार पाण्डेय | Published: June 26, 2023 08:11 AM2023-06-26T08:11:06+5:302023-06-26T08:16:20+5:30

संघ महासचिव दत्तात्रेय होसबोले 25 जून 1975 को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी द्वारा लगाई इमरजेंसी को याद करके रोने लगे। उन्होंने कहा आपातकाल के दौरान बड़े पैमाने पर बर्बरता और अत्याचार हुए थे, जिसे आज के दौर में समझना बेहद मुश्किल है।

Dattatreya Hosabale wept remembering the Emergency, said- "It was the second 'freedom struggle' of the mass movement" | दत्तात्रेय होसबोले 'आपातकाल' को याद करके रोये, बोले- "वह जन आंदोलन का दूसरा 'स्वतंत्रता संग्राम' था"

दत्तात्रेय होसबोले 'आपातकाल' को याद करके रोये, बोले- "वह जन आंदोलन का दूसरा 'स्वतंत्रता संग्राम' था"

Highlightsसंघ महासचिव दत्तात्रेय होसबोले 25 जून 1975 को लगाई गई इमरजेंसी को याद करके रो पड़े होसबोले ने 25 जून 1975 को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी द्वारा लगाई इमरजेंसी को काला धब्बा कहाउन्होंने कहा लोकतंत्र में लोगों की आवाज को कुचलने का प्रयास कभी भी सफल नहीं हो सकता है

दिल्ली: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के महासचिव दत्तात्रेय होसबोले बीते रविवार को संघ की मीडिया शाखा इंद्रप्रस्थ विश्व संवाद केंद्र में उस समय फूट-फूटकर रो पड़े जब उन्होंने 25 जून 1975 के दिन तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी द्वारा देश में लगाए गए आपातकाल के दौरान जनता पर पुलिस के अत्याचार और बर्बरता को याद किया।

संघ के वरिष्ठ पदाधिकारी होसबोले ने आपातकाल के खिलाफ जन आंदोलन को दूसरा 'स्वतंत्रता संग्राम' बताते हुए कहा कि इसके कुशल नेतृत्वकर्ताओं के मार्गदर्शन के कारण यह सफल हुआ। होसबोले ने कहा, "आपातकाल के दौरान बड़े पैमाने पर बर्बरता और अत्याचार हुए थे। आपातकाल के दौरान आवाज उठाने पर गिरफ्तार किए गए लोगों को जेल भेजने से पहले पुलिस थाने के लॉकअप में रखती थी और उन्हें प्रताड़ित करने के लिए सभी बर्बर, अमानवीय और भयानक तरीकों का इस्तेमाल करती थी।"

साल 1975 की इमरजेंसी की घटनाओं को याद करते हुए संघ महासचिव होसबोले इतने द्रवित हुए कि मंच पर ही फूट-फूटकर रोने लगे। उन्होंने कहा, "आपातकाल की प्रताड़ना झेलते हुए कुछ लोग जीवन भर के लिए विकलांग हो गए, कुछ ने अपनी आंखों की रोशनी खो दी। उनमें से कई मेरे कई दोस्त थे। खैर ऐसी चीजें मेरे साथ नहीं हुईं लेकिन यह सारी घटनाएं मेरी आंखों के सामने दूसरों के साथ हुईं।"

संघ महासचिव ने कहा कि आज के परिवेश में उस समय की स्थिति को समझना आसान नहीं होगा क्योंकि उस समय कोई टीवी या इंटरनेट उपलब्ध नहीं था। उन्होंने साल 1975 में लगाई गई इमरजेंसी के 21 महीने की अवधि को भारत के इतिहास में सबसे "काला अध्याय" बताया और कहा कि तत्कालीन इंदिरा गांधी सरकार ने संविधान के प्रावधानों का उपयोग करके इसे देश पर  थोपा था क्योंकि वो न्यायपालिका, राजनीतिक और सार्वजनिक मद्दे पर जनता के बीच अपना विश्वास हार गई थीं।

उन्होंने इमरजेंसी की पृष्ठभूमि को याद करते हुए कहा, "जब जून तक जेपी नारायण के नेतृत्व में भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन अपने चरम पर पहुंच गया था, उस वक्त इंदिरा गांधी की कांग्रेस को गुजरात चुनाव में बुरी हार का सामना करना पड़ा। उसके बाद 12 जून को इलाहाबाद उच्च न्यायालय के जज जस्टिस जगमोहन लाल सिन्हा ने राजनारायण की याचिका पर इंदिरा गांधी की रायबरेली से लोकसभा चुनाव जीत को रद्द कर दिया था तो उन्होंने सत्ता जाने के भय से देश पर इमरजेंसी थोप दी।"

आरएसएस नेता ने कहा कि लोकतंत्र में लोगों की आवाज को दबाने या कुचलने का कोई भी प्रयास कभी भी सफल नहीं हो सकता। उन्होंने कहा, ''आप जनता की आवाज को कुछ समय के लिए दबा सकते हैं, जैसा कि आपातकाल के दौरान हुआ था लेकिन आप लंबे समय तक ऐसा नहीं कर सकते हैं।''

Web Title: Dattatreya Hosabale wept remembering the Emergency, said- "It was the second 'freedom struggle' of the mass movement"

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