नई दिल्लीः कोरोना महामारी मुंबई के लिये कोई नई बात नहीं है ,इतिहास इस बात का गवाह है कि सैकड़ों साल पहले भी मुंबई ऐसी ही महामारी का शिकार हो चुकी है, महामारी से मुंबई का पुराना नाता रहा है। 6 अक्टूबर 1918 को एक ही दिन में 768 मुंबई वासी काल के गाल में समा गये थे। 29 मई 1918 में स्पेनिश फ्लू बीमारी ने जब पैर पसारे तो इस महामारी ने कोरोना महामारी की तरह दुनिया भर में संक्रमण फैला कर लगभग 10 करोड़ लोगों को निगल लिया ,1918 से शुरू होकर 1920 तक केवल दो वर्षों में स्पेनिश फ्लू ने यह हाल कर दिया था कि लोग भले चंगे ट्रेन में सवार होते और गंतव्य तक पहुंचते-पहुंचते या तो मर चुके होते अथवा मरने की कगार पर होते।
1918 में जब स्पेनिश फ्लू ने भारत को अपनी चपेट में लिया तो इससे महात्मा गाँधी ,उनके परिवार के सदस्य ही नहीं हिंदी के जाने माने कवि सूर्य कान्त त्रिपाठी निराला की पत्नी तथा सगे संबंधी इसके शिकार हुये ,बापू तो इस महामारी से ठीक होकर बाहर निकल आये लेकिन परिवार के दूसरे सदस्य जीवित न रह सके। निराला ने अपनी आत्म कथा "कुली भाट " में लिखा कि में डालमऊ के गंगा के तट पर खड़ा था जहाँ तक निगाह जाती थी गंगा के पानी में लाशें ही लाशें नज़र आती थी। इस महामारी का प्रकोप इतना भयाभह था कि इसने उस समय की देश की कुल आबादी का 6 फ़ीसदी निगल लिया था।
कोरोना आज उसी स्पेनिश फ्लू की तरह देश की बड़ी आबादी को संक्रमित कर रहा है फर्क सिर्फ़ इतना है कि तब मरने वालों की संख्या लाखों में थी तो आज हज़ारों में। मुंबई तब भी इसका सबसे बड़ा शिकार हुआ था आज भी कॅरोना की सबसे अधिक मार मुंबई पर पड़ रही है।
द राइडिंग द टाईगर के लेखक अमित कपूर ने जो कुछ इस पुस्तक में जो कुछ लिखा उससे साफ़ संकेत मिलते हैं कि 1918 का स्पेनिश फ़्लू और कॅरोना के लक्षणों में काफी समानता है, और उस समय दुनिया में लगभग 20 करोड़ लोगों की मौत हुयी थी। जॉन वैरी अपनी किताब "द ग्रेट इन्फ्लून्जा " में लिखते हैं कि अमेरिका में इस बीमारी से 6 लाख 75 हज़ार लोग मारे गये थे ,आज कोरोना का कहर मुंबई की तरह अमेरिका पर भी टूट रहा है।
भारत ने अनेक महामारियों का दंश झेला है ,1974 में स्मॉल पॉक्स ,1994 में सूरत गुजरात से शुरू हुयी प्लेग ,1817 में हैज़ा जो 1826 और 1899 में पुनः फैला ,2009 में स्वाइन फ़्लू और अब 2020 में कॅरोना जो खतरनाक तो है लेकिन स्पेनिश फ़्लू की तरह जान लेवा नहीं।