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न्यायालय ने आईआईसीएफ ट्रस्ट का रिकॉर्ड मंगाने के अनुरोध संबंधी याचिका खारिज की

By भाषा | Updated: September 27, 2021 22:35 IST

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नयी दिल्ली, 27 सितंबर उच्चतम न्यायालय ने अयोध्या में आवंटित पांच एकड़ जमीन पर मस्जिद-अस्पताल परिसर निर्माण के लिए सुन्नी वक्फ बोर्ड द्वारा गठित इंडो- इस्लामिक कल्चर फाउंडेशन (आईआईसीएफ) ट्रस्ट का रिकॉर्ड मंगाने के लिए दाखिल याचिका सोमवार को खारिज कर दी। शीर्ष अदालत ने कहा कि ऐसा करना राम जन्मभूमि- बाबरी मस्जिद भूमि विवाद में उसके 2019 के फैसले में हस्तक्षेप करने जैसा होगा।

याचिका में इलाहाबाद उच्च न्यायालय के उस आदेश को चुनौती दी गई है, जिसमें आईआईसीएफ ट्रस्ट के दस्तावेज को मंगाने के लिए एक आवेदन को खारिज कर दिया गया था।

उच्चतम न्यायालय ने नौ नवंबर, 2019 को एक सर्वसम्मत ऐतिहासिक फैसले में अयोध्या में विवादित स्थल पर राम मंदिर के निर्माण का रास्ता साफ कर दिया था और केंद्र को सुन्नी वक्फ बोर्ड को मस्जिद निर्माण के लिए पांच एकड़ का भूखंड आवंटित करने का निर्देश दिया था।

न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति बीवी नागरत्ना की पीठ ने कहा कि वह उच्च न्यायालय के 14 जून के आदेश में हस्तक्षेप नहीं करने जा रही है और याचिका खारिज कर दी।

पीठ ने कहा, ‘‘हम संविधान के अनुच्छेद 136 के तहत विशेष अनुमति याचिका पर विचार करने के इच्छुक नहीं हैं। तदनुसार विशेष अनुमति याचिका खारिज की जाती है।’’

पीठ ने कहा, ‘‘यह याचिका हमारे अयोध्या फैसले में हस्तक्षेप करने के लिए है। क्षमा करें, हम उच्च न्यायालय के आदेश में हस्तक्षेप नहीं करने जा रहे हैं। इस तरह से मुकदमेबाजी एक जुआ बन गई है।’’

उच्च न्यायालय ने इस साल 14 जून को नदीम अहमद और अन्य द्वारा दाखिल एक जनहित याचिका को खारिज कर सुन्नी वक्फ बोर्ड से ट्रस्ट के दस्तावेज सहित रिकॉर्ड मंगाने का निर्देश देने से इनकार कर दिया था।

याचिकाकर्ताओं ने ट्रस्ट के गठन को रद्द करने का अनुरोध किया है और सुन्नी सेंट्रल बोर्ड ऑफ वक्फ के कब्जे में होने का दावा करने वाले ट्रस्ट के रिकॉर्ड को मंगाने का आग्रह किया है।

उन्होंने आरोप लगाया है कि वक्फ बोर्ड ट्रस्ट ऑफ डीड की प्रमाणित प्रति की नहीं दे रहा है और उन्हें अदालत में पेश करना असंभव है।

उच्च न्यायालय ने 14 जून को याचिकाकर्ताओं को ट्रस्ट और अन्य संबंधित सामग्री से संबंधित दस्तावेज चार सप्ताह में अदालत के समक्ष दाखिल करने की छूट दी थी।

उच्च न्यायालय ने कहा था कि चार सप्ताह के भीतर याचिकाकर्ता ट्रस्ट के दस्तावेज दाखिल करेंगे, जिसे रद्द करने का अनुरोध किया गया है और अगर ऐसा नहीं किया गया, तो अदालत के आदेश का पालन न करने के लिए रिट याचिका खारिज कर दी जाएगी।

Disclaimer: लोकमत हिन्दी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।

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