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रमानी के खिलाफ एम जे अकबर का आपराधिक मानहानि मामला अदालत ने किया खारिज

By भाषा | Updated: February 17, 2021 22:47 IST

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नयी दिल्ली, 17 फरवरी दिल्ली की एक अदालत ने पत्रकार प्रिया रमानी के खिलाफ पूर्व केंद्रीय मंत्री एवं संपादक एम. जे. अकबर के आपराधिक मानहानि मुकदमे को बुधवार को खारिज करते हुए कहा कि जीवन और गरिमा के अधिकार की कीमत पर प्रतिष्ठा के अधिकार का संरक्षण नहीं किया जा सकता। गौरतलब है कि रमानी ने अकबर के खिलाफ यौन उत्पीड़न के आरोप लगाए थे। अकबर ने उन आरोपों को लेकर रमानी के खिलाफ 15 अक्टूबर 2018 को यह शिकायत (आपराधिक मानहानि की) दायर की थी।

अदालत ने मानहानि मामले में यह ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए कहा कि एक महिला को दशकों बाद भी अपनी पंसद के किसी भी मंच पर अपनी शिकायत रखने का अधिकार है।

अतिरिक्त मुख्य मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट रवींद्र कुमार पांडे ने कहा कि इस तरह के उत्पीड़न के खिलाफ आवाज उठाने को लेकर किसी महिला को दंडित नहीं किया जा सकता है। उन्होंने अकबर की (मानहानि) शिकायत को खारिज करते हुए कहा कि रमानी के खिलाफ लगाये गये आरोपों को साबित नहीं किया जा सका।

रमानी ने 2018 में सोशल मीडिया पर चली ‘मी टू’ मुहिम के तहत अकबर के खिलाफ यौन दुर्व्यवहार के आरोप लगाए थे। हालांकि, अकबर ने इन आरोपों को खारिज कर दिया था।

न्यायाधीश ने रमानी को बरी करते हुए कहा कि समाज के लिए वक्त आ गया है कि वह यौन उत्पीड़न और प्रताड़ना तथा उसके परिणामों को समझे। अदालत ने अपील किये जाने के मामले में उनसे 10,000 रुपये की जमानत राशि भी भरने को कहा।

अदालत के फैसले से खुश नजर आ रही रमानी ने बाद में संवाददाताओं से कहा कि सच्चाई की जीत होने पर अच्छा महसूस होता है।

रमानी ने कहा, ‘‘बहुत ही अच्छा महसूस हो रहा है, सचमुच में। मुझे लगता है कि कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न के खिलाफ कभी ना कभी आवाज उठाने वाली सभी महिलाओं की यह जीत है। अदालत में आरोपी के रूप में मुझे खड़ा होना पड़ा। ’’

उल्लेखनीय है कि रमानी ने 2017 में ‘वोग इंडिया’ पत्रिका में ‘‘टू द हार्वे वेंसटेन्स ऑफ द वर्ल्ड’’ शीर्षक से लिखे गये अपने आलेख का संदर्भ देते हुए एक ट्वीट में अकबर का जिक्र किया था।

यह ट्वीट आठ अक्टूबर 2018 को किया गया था, जब सोशल मीडिया पर ‘‘मी टू’’ मुहिम जोर पकड़ रही थी। इसके सात दिनों बाद, अकबर ने अपनी मानहानि होने का आरोप लगाते हुए रमानी के खिलाफ एक शिकायत (आपराधिक मानहानि की) दायर की थी।

रमानी ने आरोप लगाया था कि दशकों पहले जब वह पत्रकार के तौर पर कार्यरत थी, तब उनके साथ अकबर ने यौन दुर्व्यवहार किया था।

अकबर ने 17 अक्टूबर 2018 को केंद्रीय मंत्री के पद से इस्तीफा दे दिया था और अपने खिलाफ रमानी द्वारा लगाये गये यौन उत्पीड़न के सभी आरोपों को खारिज कर दिया था।

अदालत ने 91 पृष्ठों के अपने फैसले में कहा कि जिस देश में महिलाओं के सम्मान के बारे में रामायण और महाभारत जैसे महाकाव्य लिखे गये, वहां महिलाओं के खिलाफ अपराध होना शर्मनाक है।

अदालत ने कहा, ‘‘...संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत प्रदत्त ‘जीवन की स्वतंत्रता’ और ‘महिला की गरिमा का अधिकार’ तथा अनुच्छेद 14 के तहत कानून के समक्ष समानता और समान संरक्षण के अधिकारों की कीमत पर ‘प्रतिष्ठा के अधिकार’ का संरक्षण नहीं किया जा सकता।’’

गवाहों के बयानों के आधार पर अकबर के उच्च प्रतिष्ठित व्यक्ति नहीं होने की रमानी की दलील स्वीकार करते हुए अदालत ने कहा कि इस बात की अनदेखी नहीं की जा सकती है कि यौन उत्पीड़न और यौन दुर्व्यवहार के अधिकतर अपराधों को बंद कमरे में या एकांत में अंजाम दिया जाता है।

अदालत ने कहा कि कई बार पीड़िता नहीं समझ पाती है कि उसके साथ क्या हो रहा है या उसके साथ जो हो रहा है वह गलत है।

अदालत ने कहा कि कुछ लोग समाज में चाहे कितने भी सम्मानित व्यक्ति क्यों ना हो, ‘‘वे अपनी निजी जिंदगी में महिलाओं के प्रति अत्यधिक निर्ममता प्रदर्शित करते हैं। ’’

अदालत ने इस घटना के वक्त कार्य स्थल पर यौन उत्पीड़न की शिकायतों के निस्तारण के लिए तंत्र का अभाव होने के चलते प्रणालीगत यौन दुर्व्यवहार होने का भी संज्ञान लिया। दरअसल, विशाखा दिशानिर्देश (कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न की शिकायतों की सुनवाई से संबद्ध) भी बाद में आए और कार्यस्थल पर महिलाओं का यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध एवं निवारण) कानून 2013 में लागू हुआ।

अदालत ने कहा कि ‘ग्लास सीलिंग’ (पुरूष प्रधान व्यवस्था में महिलाओं के आगे बढ़ने के दौरान पेश आने वाली मुश्किलें) भारतीय महिलाओं को समान अवसरों के समाज में प्रगति करने में बाधक नहीं बन सकती है।

अदालत ने कहा कि यौन दुर्व्यवहार के खिलाफ ज्यादातर महिलाएं सिर्फ एक सामान्य वजह से नहीं बोलती हैं और वह है शर्म या यौन उत्पीड़न का सामना करने से जुड़ा सामाजिक कलंक। न्यायाधीश ने कहा कि कई बार पीड़िता यौन उत्पीड़न के बारे में वर्षों तक एक शब्द नहीं बोलती है। उन्होंने कहा, ‘‘पीड़िता को लगता है कि वही गलत थी और पीड़िता उस शर्म के साथ वर्षों तक या दशकों तक जीती है। ’’

अदालत ने कहा, ‘‘यौन उत्पीड़न उसकी गरिमा को तार-तार कर देता है और आत्मविश्वास को छीन लेता है। ’’

फैसले पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए रमानी की वकील रेबेका जॉन ने कहा कि यह शायद उनके करियर का सबसे महत्व्पूर्ण मामला था।

उन्होंने संवाददताओं से कहा, ‘‘यह अत्यधिक मुश्किल सुनवाई थी। जब आप रसूखदार लोगों से लड़ते हैं और आपके पास सिर्फ आपकी सच्चाई होती है, तब आगे का सफर आपके लिए बहुत ही व्यक्तिगत हो जाता है। ’’

अदालत के फैसले का सामाजिक कार्यकर्ताओं, वकीलों, बॉलीवुड हस्तियों और अन्य लोगों ने स्वागत किया है तथा कहा है कि यह निर्णय अन्य महिलाओं को भी उत्पीड़न के खिलाफ बोलने की हिम्मत देगा।

ऑल इंडिया प्रोग्रेसिव वुमंस एसोसिएशन की सचिव कविता कृष्णन ने कहा कि अदालत का निर्णय महिलाओं को सशक्त करने वाला है।

उन्होंने ट्वीट किया, ‘‘शाबाश, प्रिया रमानी। आपका उत्पीड़न करने वाले ने आपके खिलाफ मुकदमा कर दिया, लेकिन आपकी जीत हुई। यह फैसला महिलाओं को सशक्त करता है। हमें समझना चाहिए कि हो सकता है कि कई बार मानसिक आघात के चलते पीड़िता वर्षों तक (उत्पीड़न के खिलाफ) नहीं बोले, लेकिन उसे यौन उत्पीड़न के खिलाफ आवाज उठाने पर दंडित नहीं किया जा सकता।’’

वरिष्ठ अधिवक्ता इंदिरा जयसिंह ने फैसले को महिलाओं के लिए एक बड़ी जीत करार दिया।

उन्होंने ट्वीट किया, ‘‘प्रिया रमानी और रेबेका जॉन के नेतृत्व वाली उनकी काबिल कानूनी टीम को बधाई। यह महिलाओं के लिए एक बड़ी जीत है। यह मी टू आंदोलन के लिए एक बड़ी जीत है।’’

सोशल मीडिया पर कई अन्य लोगों ने भी अदालत के फैसले का स्वागत किया है और इसे महिलाओं के लिए एक बड़ी जीत करार दिया है।

अभिनेत्री तापसी पन्नू ने कहा कि इस फैसले ने ऐसे समय में न्याय में उनकी आस्था मजबूत की है, जब दुनिया निराश नजर आ रही है।

उन्होंने ट्वीट किया, ‘‘चारों ओर हो रहे अन्याय के बीच यह उम्मीद की किरण लेकर आया है। सच्चाई और न्याय जिंदाबाद। ’’

फिल्म निर्माता ओनीर ने ट्वीट कर अदालत के फैसले को ‘‘ऐतिहासकि’’ बताते हुए कहा , ‘‘यौन उत्पीड़न की घटना पर मिसाल कायम करने वाला है यह फैसला । ’’

अदालत ने अकबर और रमानी के वकीलों की दलीलें पूरी होने के बाद एक फरवरी को अपना फैसला 10 फरवरी के लिए सुरक्षित रख लिया था।

हालांकि, अदालत ने 10 फरवरी को फैसला 17 फरवरी के लिए यह कहते हुए टाल दिया था कि चूंकि दोनों ही पक्षों ने विलंब से अपनी लिखित दलील सौंपी है, इसलिए फैसला पूरी तरह से नहीं लिखा जा सका है।

Disclaimer: लोकमत हिन्दी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।

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