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कोरोना वायरसः एम्स निदेशक गुलेरिया बोले- हवा में तेजी से फैलने के कारण केस बढ़े, लोग ज्यादा घूम रहे हैं बाहर

By एसके गुप्ता | Updated: April 19, 2021 18:47 IST

नीति आयोग के सदस्य डा. वीके पॉल और एम्स निदेशक व टास्क फोर्स के सदस्य डा. रणदीप गुलेरिया ने लोकमत की ओर से पूछे गए सवालों में कहा कि वायरस का एयरबोर्न ट्रांसमिशन ज्यादा तेजी से फैल रहा है।

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ठळक मुद्देकोरोना से बचाव के लिए जो नियम बनाए गए हैं उनका पूरी तरह से पालन नहीं कर रहे हैं।लोग मास्क पहनें और दो गज की दूरी के नियम का सख्ती से पालन करें। भारत से 100 देशों को इस इंजेक्शन का निर्यात हो रहा था।

नई दिल्लीः कोरोना की दूसरी लहर से देश में हाहाकार मचा है। प्रतिष्ठित जर्नल द लांसेट की स्टडी से यह साफ हो गया है कि कोरोना वायरस जिस तेजी से फैला है यह केवल हवा के जरिए ही फैल सकता है।

इससे पहले तक यह दावा किया जा रहा था कि कोरोना वायरस सिर्फ ड्रॉपलेट यानि मरीज के छींकने-खांसने पर मुंह या नाक से निकलने वाली बूंदो (ड्रॉपलेट) से फैलता है। स्वास्थ्य मंत्रालय के एक वेबीनार में सोमवार को नीति आयोग के सदस्य डा. वीके पॉल और एम्स निदेशक व टास्क फोर्स के सदस्य डा. रणदीप गुलेरिया ने लोकमत की ओर से पूछे गए सवालों में कहा कि वायरस का एयरबोर्न ट्रांसमिशन ज्यादा तेजी से फैल रहा है।

जिसकी वजह यह भी है कि पिछली बार लॉकडाउन के कारण लोग घरों में बंद थे और इस बार लोग घरों की बजाए बाहर घूम रहे हैं। कोरोना से बचाव के लिए जो नियम बनाए गए हैं उनका पूरी तरह से पालन नहीं कर रहे हैं। लोग मास्क पहनें और दो गज की दूरी के नियम का सख्ती से पालन करें। मामले की गंभीरता को इसी से समझा जा सकता है कि डा. पॉल ने वेबिनार में आज खुद डबल मास्क पहना हुआ था।

रेमडेसिविर इंजेक्शन न मेडिकल स्टोर पर मिल रहा है न ही अस्पतालों में ऐसे में मिलेगा कहां? लोकमत के इस सवाल पर नीति आयोग के सदस्य डा. वीके पॉल ने कहा कि रेमडेसिविर इंजेक्शन का उत्पादन पहले 1.5 लाख शीशी प्रतिदिन हो रहा था। भारत से 100 देशों को इस इंजेक्शन का निर्यात हो रहा था। देश की सात फार्मा कंपनियां इसका उत्पादन कर रही हैं।

सभी कंपिनयों से कहा है कि उत्पादन 26 लाख शीशियों से बढ़ाकर क्षमता अनुरूप 40 लाख शीशियों तक लाया जाए और उसके बाद महीने भर में 76 लाख शीशियों या यूनिट तक इसके पहुचाएं। इसके लिए नए प्लांट शुरू करने की भी मंजूरी दी गई है। उन्होंने यह भी कहा कि मेडिकल स्टोर पर दवा की किल्लत को देखते हुए यह भी निर्णय लिया गया है कि यह इंजेक्शन अस्पतालों में ही मिलेगा।

चिकित्सक जरूरत के हिसाब से रोगियों को यह इंजेक्शन देंगे। एम्स के निदेशक डा. रणदीप गुलेरिया ने रेमडेसिविर, स्टेरॉयड और प्लाज्मा थैरेपी को लेकर भी स्थिति को काफी स्पष्ट किया। उन्होंने कहा कि रेमडेसिविर उन्हीं रोगियों को दिया जाना चाहिए जो अस्पताल में भर्ती हैं और ऑक्सीजन की कमी के साथ छाती के एक्सरे या सीटी-स्कैन में इस बात की पुष्टि हो जाए की वायरस अंदर तक पैठ कर चुका है।

उन्होंने कहा कि यह भी समझने वाली बात है कि रेमडेसिविर जादू की गोली नहीं है और न ही मृत्यु दर घटाने वाली दवा है। क्योंकि हमारे पास एंटी-वायरल दवा नहीं है,  इसलिए हम इसका प्रयोग कर सकते हैं। कोरोना के हल्के लक्ष्ण नजर आने पर यह इंजेक्शन नहीं लेना चाहिए, लोगों को कोरोना संक्रमण में यह इंजेक्शन जल्द दिया जाने पर कोई फायदा नहीं है।

अगर यह चिकित्सकों की अनुशंसा पर थोड़े समय अंतराल पर बुखार उतारने के लिए दिया जाए तो ठीक है। क्योंकि देखने में यह भी आया है कि हल्के लक्ष्ण वाले रोगी बिना दवा के भी ठीक हो रहे हैं। डा. गुलेरिया ने कहा कि रिकवरी ट्रायल से यह भी पता चला है कि स्टेरॉयड से रोगियों को लाभ हो रहा है। लेकिन यह भी पहले दिन नहीं दिए जाते हैं।

अगर जल्द ही यह दिए जाएं तो इसके हानिकारक प्रभाव भी होते हैं। जिन्हें स्टेरॉयड जल्दी मिला, उनकी मृत्युदर उन लोगों की तुलना में अधिक थी, जिन्हें देर में दिया गया। उन्होंने कहा कि अध्ययनों से पता चला है कि प्लाज्मा थेरेपी की सीमित भूमिका होती है और इसका अधिक उपयोग नहीं होता है। पहले 2 फीसदी से कम रोगियों को इसकी जरूरत होती थी, इन दिनों इसका प्रचलन बढ़ा है। इनमें हल्के लक्ष्ण वाले रोगी भी शामिल हैं। हालांकि हल्के लक्ष्ण वाले रोगी बिना दवा के भी ऑब्जर्वेशन में ठीक हो रहे हैं।  

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