यूपी अध्यक्ष पद के लिए कांग्रेस को इन 5 वजहों से है ब्राह्मण चेहरे की तलाश? ये नाम हैं दौड़ में आगे

By आदित्य द्विवेदी | Published: March 21, 2018 03:45 PM2018-03-21T15:45:52+5:302018-03-21T15:45:52+5:30

राज बब्बर ने प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया है। उत्तर प्रदेश में कांग्रेस पार्टी के नए प्रदेश अध्यक्ष के लिए किसी ब्राह्मण चेहरे के कयास लगाए जा रहे हैं।

Congress Brahmin Strategy in Uttar Pradesh, key factors involved for selection of State head | यूपी अध्यक्ष पद के लिए कांग्रेस को इन 5 वजहों से है ब्राह्मण चेहरे की तलाश? ये नाम हैं दौड़ में आगे

यूपी अध्यक्ष पद के लिए कांग्रेस को इन 5 वजहों से है ब्राह्मण चेहरे की तलाश? ये नाम हैं दौड़ में आगे

नई दिल्ली, 21 मार्च 2018: राहुल गांधी के कांग्रेस अध्यक्ष बनने के बाद हुए पार्टी के पहले महाधिवेशन में युवा नेतृत्व को आगे लाने पर जोर दिया गया। राहुल गांधी ने महाधिवेशन में जोरदार भाषण दिया। युवा चेहरों को पार्टी ने मंच और मीडिया में तवज्जो दी। महाधिवेशन खत्म होते ही गोवा कांग्रेस के अध्यक्ष ने यह कहते हुए पद से छोड़ दिया कि वो राहुल गांधी के विचारों से प्रभावित होकर इस्तीफा दे रहे हैं। उसके बाद मंगलवार (20 मार्च) को उत्तर प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष राज बब्बर ने इस्तीफा दे दिया। राज बब्बर के इस्तीफे की खबर के साथ ही इस बात को लेकर अटकलें लगने लगी कि देश की सबसे पुरानी पार्टी ने यूपी को लेकर नई रणनीति बनाई है। राहुल गांधी ने महाधिवेशन में कहा था कि भविष्य में पार्टी कड़े फैसले लेने वाली है। मीडिया में दावा किया जा रहा है कि कांग्रेस राज बब्बर की जगह सिर्फ युवा चेहरा नहीं लाएगी बल्कि वो जातीय समीकरण भी  साधेगी। सबसे ज्यादा जोर इस बात पर दिया जा रहा है कि यूपी कांग्रेस का अगला अध्यक्ष ब्राह्मण होगा। प्रमोद तिवारी, जितिन प्रसाद, राजेश मिश्रा और ललितेशपति त्रिपाठी जैसे कांग्रेसी नेताओं को प्रदेश अध्यक्ष पद की दौड़ में आगे बताया जा रहा है। "ब्राह्मण अध्यक्ष" की खोज के पीछे कुछ ठोस कारण बताए जा रहे हैं। आइए एक नजर डालते हैं उन वजहों पर जिनकी वजह से ये अटकलें लग रही हैं-

1- कांग्रेस को "वोट बैंक" की तलाश

ब्राह्मण, दलित और मुसलमान कांग्रेस के परंपरागत वोटर माने जाते थे। इंदिरा गांधी के पराभाव और 1980 के दशक में दलित, पिछड़ा और मंदिर-मंडल की राजनीति के उभार से कांग्रेस का वोट बैंक एक-एक कर छिटकता गया। राष्ट्रीय स्तर पर इन तीनों समुदायों का वोट भले ही किसी एक पार्टी को न ट्रांसफर हुआ हो, क्षेत्रीय स्तर पर ये समुदाय किसी ने किसी पार्टी की तरफ चले गये। इन तीनों समुदायों पर फोकस करने की एक बड़ी वजह ये भी है कि तीनों ही समुदाय देश में सबसे बड़े समुदाय हैं। मुसलमानों के बारे में मान्यता है कि वो बीजेपी को हराने वाली पार्टी को वोट देते हैं। ऐसे में लोक सभा 2019 में उनके कांग्रेस के साथ रहने को लेकर शायद ही किसी को शक हो। अगर कांग्रेस ब्राह्मणों को अपने साथ लाने में कामयाब रही तो पूरे देश में उसे इसका लाभ मिलेगा। माना जा रहा है कि जब से बीजेपी ने योगी आदित्यनाथ को यूपी का सीएम बना दिया है तब से सूबे के ब्राह्मम उससे नाराज हैं। कांग्रेस इसका फायदा उठाना चाहती है। ब्राह्मणों को साधने की कवायद यूपी विधानसभा चुनाव के दौरान भी शुरू हुई थी। रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने इसी फैक्टर को ध्यान में रखते हुए शीला दीक्षित को सीएम पद का उम्मीदवार बनाया था। समाजवादी पार्टी से गठबंधन के बाद यह प्रयोग फेल हो गया। सालभर बाद परिस्थितियां बदली हैं। शायद पार्टी एकबार फिर ब्राह्मणों को लुभाने में जुट गई है।

2- ब्राह्मणों का संख्या बल 

उत्तर प्रदेश में ब्राह्मणों वोटरों की संख्या 12 से 15 प्रतिशत बतायी जाती है। यूपी के अलावा उत्तर से दक्षिण तक ब्राह्मण वोटर अच्छी खासी  संख्या में हैं। सभी राजनीतिक दलों का कुछ जातियों में बेस वोटर होता है। ब्राह्मण वोटर चुनाव में जिस ओर झुक जाते हैं वो निर्णायक साबित हो सकता है। पार्टी में ब्राह्मण चेहरों को तरजीह देकर कांग्रेस आलाकमान यह संदेश देना चाहता है कि उनके लिए कांग्रेस पार्टी में सम्मानजनक जगह है। यूपी विधानसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस के रणनीतिक सलाहकार रहे प्रशांत किशोर ने बाकायदा ब्राह्मण नेताओं की बैठक की थी। उनका पूरा फोकस ब्राह्मण मतदाताओं को पार्टी की तरफ रिझाने पर था। 

3-  लोक सभा चुनाव 2019 

साल 2014 में जिस तरह कांग्रेस दो अंकों में सिमट कर रह गयी उसके बाद अगले आम चुनाव में कांग्रेस के लिए करो या मरो की स्थिति है। नरेंद्र मोदी और अमित शाह बार-बार "कांग्रेस मुक्त" भारत की बात कहते रहते हैं। देश के चार राज्यों में ही कांग्रेस की सरकार बची है। अगर पार्टी ने अगले लोक सभा चुनाव में वापसी नहीं कि तो सचमुच उसके अस्तित्व पर संकट खड़ा हो जाएगा। कांग्रेस की प्रदेश कार्यकारिणी में मौजूदा बदलाव 2019 चुनाव को ध्यान में रखते हुए किए जाएंगे। लोकसभा चुनाव की परिस्थितियां विधानसभा से अलग होती हैं। राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस दूसरी सबसे बड़ी पार्टी है। अगर ब्राह्मण मतदाता बीजेपी से छिटकेगा तो वो ऐसी पार्टी के पास जाना चाहेगा जो बीजेपी को टक्कर दे सके। इस स्थिति में कांग्रेस का विकल्प बचता है। कांग्रेस पार्टी इसी परिस्थिति को भुनाना चाहती है।

4- कांग्रेस और हिन्दू 

कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष सोनिया गांधी ने पार्टी की हार का विश्लेषण करते हुए कहा था कि बीजेपी ने लोगों में भ्रम फैलाया कि कांग्रेस केवल मुसलमानों की पार्टी है। जाहिर है सोनिया को अहसास हो गया है कि बीजेपी बार-बार कांग्रेस को हिन्दू-विरोधी पार्टी के रूप में पेश करके उसकी सियासी जमीन भुरभुरी करती गयी है। देश की आबाद में करीब 80 प्रतिशत आबादी हिन्दुओं की है। अगर किसी पार्टी की छवि हिन्दू-विरोधी की बन गयी तो उसका राष्ट्रीय राजनीति में टिके रहना मुश्किल होगा। ब्राह्मणों के कांग्रेस के साथ आने का एक बड़ा फायदा ये भी होगा उसे हिन्दू-विरोधी कहना किसी के लिए भी संभव नहीं होगा क्योंकि हिन्दू धर्म के नीति-नियंता ही "ब्राह्मण" हैं।  

5- उत्तर प्रदेश से देश में जाने वाला संकेत

देश की सियासत में उत्तर प्रदेश की अहमियत भी कांग्रेस के फैसले के पीछे बड़ा प्रेरक साबित हो सकती है। देश के सबसे ताकतवर राजनीतिक सूबे से उठा संदेश पूरे देश तक जाता है। कांग्रेस जानती है कि यूपी में वो जो भी फैसला करेगी उसकी गूँज पूरे देश में सुनाई देगी। ऐसे में वो किसी छोटे राज्य में भले ही ऐसा कदम न उठाए लेकिन यूपी में ब्राह्मण को पार्टी की बागडौर सौंपकर कर्नाटक,मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ इत्यादि राज्यों के विधान सभा चुनावों और साल 2019 लोक सभा चुनावों के लिए "ब्राह्मण कार्ड" चल सकती है। 

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प्रदेश अध्यक्ष के लिए इन ब्राह्मण चेहरों पर टिकी हैं कांग्रेस की निगाहें

उत्तर प्रदेश में कांग्रेस प्रदेश कमेटी के अध्यक्ष पद के लिए प्रमोद तिवारी, जितिन प्रसाद, राजेश मिश्रा और ललितेशपति त्रिपाठी के नामों की चर्चा जोरों पर है।

प्रमोद तिवारी राज्यसभा सांसद हैं जिनका कार्यकाल इसी महीने पूरा हो रहा है। 10 बार विधायक रहे कांग्रेस के दिग्गज नेता प्रमोद तिवारी इस बड़ी जिम्मेदारी के लिए प्रबल दावेदार माने जा रहे हैं।

कांग्रेस के दिग्गज नेता जितेंद्र प्रसाद के बेटे जितिन प्रसाद के नाम की सुगबुगाहट तेज है। इस युवा नेता को राहुल गांधी का करीबी माना जाता है। 2017 विधानसभा चुनावों में जितिन प्रसाद ने ब्राह्मणों को टिकट दिए जाने की पैरवी की थी। ये यूपी के शाहजहांपुर से आते हैं।

पूर्वांचल ब्राह्मणों का गढ़ माना जाता है। वहीं से एक नेता हैं ललितेशपति त्रिपाठी। ये कांग्रेस के दिग्गज नेता और पूर्व मुख्यमंत्री कमलापति त्रिपाठी के परपोते हैं। कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए ललितेशपति का नाम भी सामने आ रहा है। इसके अलावा कांग्रेस प्रदेश कमेटी के अध्यक्ष पद के लिए संभावित चेहरों में राजेश मिश्रा का नाम भी शामिल है। राजेश मिश्रा ने छात्र राजनीति से कांग्रेस में कदम रखा है। इन दिग्गजों के अलावा कोई नया चेहरा भी देखने को मिल जाए तो हैरान नहीं होना चाहिए। कांग्रेस के 84वें महाधिवेशन में राहुल गांधी के तेवर सीधे तौर पर कार्यकर्ताओं को महत्व दिए जाने के लग रहे थे।

Web Title: Congress Brahmin Strategy in Uttar Pradesh, key factors involved for selection of State head

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