मोरबी पुल हादसे को लेकर नगरपालिका ने गुजरात हाई कोर्ट में मानी गलती, कहा- खोला नहीं जाना चाहिए था ब्रिज
By मनाली रस्तोगी | Updated: November 17, 2022 15:02 IST2022-11-17T15:01:07+5:302022-11-17T15:02:02+5:30
मोरबी नगरपालिका ने एक हलफनामे में गुजरात हाई कोर्ट के समक्ष तर्क दिया कि पुल को नहीं खोला जाना चाहिए था।

मोरबी पुल हादसे को लेकर नगरपालिका ने गुजरात हाई कोर्ट में मानी गलती, कहा- खोला नहीं जाना चाहिए था ब्रिज
मोरबी: मोरबी नगरपालिका ने गुजरात हाई कोर्ट में दिए हलफनामे में पुल ढहने की पूरी जिम्मेदारी ली। मोरबी नगरपालिका ने हलफनामे में हाई कोर्ट के सामने ये भी तर्क रखा कि पुल को नहीं खोला जाना चाहिए था। माछू नदी पर बना पुल मरम्मत के लिए सात महीने से बंद था। इसे 26 अक्टूबर को निकाय अधिकारियों से फिटनेस प्रमाणपत्र के बिना जनता के लिए फिर से खोल दिया गया था।
हाई कोर्ट ने बुधवार को दो नोटिसों के बावजूद एक हलफनामा दाखिल करने में देरी को लेकर नगरपालिका को जमकर लताड़ लगाई थी। बुधवार सुबह जब मामले की सुनवाई हुई तो अदालत ने कहा कि अगर नगरपालिका ने उसी शाम हलफनामा दाखिल नहीं किया तो वह एक लाख रुपये का जुर्माना लगाया जाएगा। कोर्ट ने कहा, "नगर पालिका, एक सरकारी निकाय, डिफ़ॉल्ट है, जिसने अंततः 135 लोगों की जान ले ली।"
हाई कोर्ट ने मंगलवार को इस बात पर जवाब मांगा कि 150 साल पुराने पुल के रखरखाव का ठेका ओरेवा ग्रुप को बिना टेंडर जारी किए कैसे दिया गया। आदेश में कहा गया, "ऐसा लगता है कि इस संबंध में कोई निविदा जारी किए बिना राज्य की उदारता को मंजूरी दे दी गई है।" कोर्ट ने पूछा कि किस आधार पर जून 2017 के बाद भी कंपनी द्वारा पुल का संचालन किया जा रहा था जबकि अनुबंध का नवीनीकरण नहीं किया गया था।
मार्च 2022 में 15 साल की अवधि के लिए एक नए समझौते पर हस्ताक्षर किए गए। रखरखाव और मरम्मत के लिए कंपनी कम से कम आठ से 12 महीनों के लिए पुल को बंद रखने के लिए अपने अनुबंध से बाध्य थी। पुलिस ने एक प्राथमिकी में कहा था कि पुल को खोलना गंभीर रूप से गैरजिम्मेदाराना और लापरवाह इशारा था।