नई दिल्लीः आप आदमी पार्टी (आप) के राष्ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल, शिरोमणि अकाली दल (शिअद) की नेता हरसिमरत कौर बादल और कांग्रेस नेता प्रताप सिंह बाजवा ने उस संविधान संशोधन विधेयक का रविवार को विरोध किया, जिसमें राष्ट्रपति को चंडीगढ़ के लिए सीधे नियम-कानून बनाने का अधिकार देने का प्रावधान किया गया है। हालांकि, विधेयक पर उपजे राजनीतिक आक्रोश के बाद केंद्र ने स्पष्टीकरण जारी कर कहा कि उसका संसद के शीतकालीन सत्र में चंडीगढ़ के प्रशासन के संबंध में कोई विधेयक पेश करने का इरादा नहीं है।
सरकार ने भरोसा दिलाया कि यह विधेयक किसी भी तरह से चंडीगढ़ के प्रशासन या प्रशासनिक ढांचे में बदलाव करने का प्रयास नहीं करता है। इससे पहले, लोकसभा और राज्यसभा के एक बुलेटिन में कहा गया था कि केंद्र सरकार एक दिसंबर से शुरू होने वाले संसद के आगामी शीतकालीन सत्र में संविधान (131वां संशोधन) विधेयक, 2025 पेश करेगी।
जानकारों का कहना है कि अगर यह विधेयक पारित हो जाता है, तो चंडीगढ़ में एक स्वतंत्र प्रशासक हो सकता है, जैसा कि पहले स्वतंत्र मुख्य सचिव हुआ करते थे। चंडीगढ़ पंजाब और हरियाणा की संयुक्त राजधानी है। इस प्रस्तावित संशोधन को लेकर पंजाब में राजनीतिक आक्रोश भड़क उठा है।
राज्य में सत्ताधारी ‘आप’, कांग्रेस और शिअद ने भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की अगुवाई वाली केंद्र सरकार की आलोचना की है। उन्होंने सरकार पर चंडीगढ़ को पंजाब से ‘‘छीनने’’ की कोशिश करने का आरोप लगाया है। केजरीवाल ने केंद्र के इस प्रस्तावित कदम का कड़ा विरोध किया। उन्होंने इसे पंजाब की पहचान और संवैधानिक अधिकारों पर ‘‘सीधा हमला’’ करार दिया।
केजरीवाल ने ‘एक्स’ पर पोस्ट किया, ‘‘भाजपा नीत केंद्र सरकार द्वारा संविधान संशोधन के माध्यम से चंडीगढ़ पर पंजाब के अधिकार को खत्म करने की कोशिश किसी साधारण कदम का हिस्सा नहीं, बल्कि पंजाब की पहचान और संवैधानिक अधिकारों पर सीधा हमला है। संघीय ढांचे की धज्जियां उड़ाकर पंजाबियों के हक छीनने की यह मानसिकता बेहद खतरनाक है।’’
उन्होंने कहा, ‘‘जिस पंजाब ने देश की सुरक्षा, अनाज, पानी और इंसानियत के लिए हमेशा बलिदान दिया, आज उसी पंजाब को उसके अपने हिस्से से वंचित किया जा रहा है। यह केवल एक प्रशासनिक फैसला नहीं, बल्कि पंजाब की आत्मा को चोट पहुंचाने जैसा है।’’ केजरीवाल ने कहा, ‘‘इतिहास गवाह है कि पंजाबियों ने कभी किसी तानाशाही के सामने सिर नहीं झुकाया।
पंजाब आज भी नहीं झुकेगा। चंडीगढ़ पंजाब का है और पंजाब का रहेगा।’’ शिअद सांसद और पूर्व केंद्रीय मंत्री हरसिमरत कौर बादल ने दावा किया कि इस कदम से पंजाब चंडीगढ़ पर अपना अधिकार खो देगा। उन्होंने कहा, ‘‘शिरोमणि अकाली दल इस शीतकालीन सत्र में केंद्र सरकार द्वारा लाए जा रहे संविधान संशोधन विधेयक का कड़ा विरोध करता है।
इस संशोधन से चंडीगढ़ एक राज्य बन जाएगा और पंजाब चंडीगढ़ पर अपना अधिकार पूरी तरह से खो देगा।’’ हरसिमरत ने इस प्रस्ताव को पंजाब के लिए एक बड़ा झटका बताया और कहा कि कांग्रेस पार्टी ने शुरू में पंजाब से चंडीगढ़ छीन लिया था। उन्होंने कहा कि चंडीगढ़ को अलग राज्य बनाने का फैसला कभी स्वीकार नहीं किया जाएगा।
उन्होंने कहा, ‘‘यह संशोधन विधेयक पंजाब के अधिकारों की लूट है और संघीय ढांचे के सिद्धांतों का भी उल्लंघन है। शिरोमणि अकाली दल ऐसा नहीं होने देगा और इस सत्र में इसका कड़ा विरोध करेगा।’’ शिअद ने इस मुद्दे पर चर्चा करने के लिए 24 नवंबर को अपनी कोर कमेटी की आपात बैठक बुलाई है।
पार्टी नेता दलजीत सिंह चीमा ने कहा कि शिअद अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल की अध्यक्षता में होने वाली बैठक में अगले कदम तय किए जाएंगे। उन्होंने कहा कि केंद्र के कदम का मुकाबला करने के लिए एक मजबूत रणनीति तय करने के वास्ते वरिष्ठ संवैधानिक विशेषज्ञों से सलाह ली जाएगी। कांग्रेस नेता प्रताप बाजवा ने आरोप लगाया कि भाजपा लगातार राजनीतिक माहौल को परखने की कोशिश कर रही है और नया संविधान संशोधन विधेयक भी ‘‘अस्थिरता पैदा करने की एक और कोशिश’’ है।
बाजवा ने कहा, ‘‘उन्हें पता है कि पंजाबी अपने अधिकारों पर ऐसे हमले का पूरी ताकत से विरोध करेंगे। इसके बाद होने वाला टकराव भाजपा को राज्य में राज्यपाल शासन लगाने का बहाना दे देगा। मैं भाजपा को सुझाव देता हूं कि वह पंजाब में फूट डालने की कोशिश बंद करे और हमारे राज्य की शांति एवं संघीय संतुलन को न छेड़े।’’
पंजाब के वित्त मंत्री हरपाल सिंह चीमा ने भी चंडीगढ़ में एक स्वतंत्र प्रशासक नियुक्त करने के केंद्र के प्रस्ताव की आलोचना की। उनका कहना है कि यह कदम पंजाब को “कमजोर करने” या “खत्म करने” की कोशिश है। आनंदपुर साहिब में चीमा ने संवाददाताओं से बातचीत के दौरान आरोप लगाया कि भाजपा “तानाशाही” के जरिये पंजाब पर “कब्जा” करने की कोशिश कर रही है।
उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार पहले भी भाखड़ा ब्यास प्रबंधन बोर्ड और पंजाब विश्वविद्यालय, चंडीगढ़ को “हथियाने” की कोशिश कर चुकी है और रद्द किए गए तीन “काले कानून” भी लेकर आई थी। उन्होंने कहा, “इन सभी कोशिशों को पंजाब के लोगों ने नाकाम कर दिया।’’
अतीत का उदाहरण देते हुए चीमा ने कहा कि जैसे 350 साल पहले का शासन अपने ही लोगों पर हमला करता था, वैसे ही आज की केंद्र सरकार हर मोर्चे पर पंजाब पर “हमला” कर रही है। उन्होंने केंद्र के हालिया कदम का जिक्र करते हुए कहा कि पंजाब की जनता भाजपा को इसका करारा जवाब देगी।
कांग्रेस विधायक परगट सिंह ने कहा कि केंद्र की नयी कोशिश का मकसद चंडीगढ़ को पंजाब से ‘‘पूरी तरह से छीनना’’ और इसे एक अलग केंद्र-शासित प्रदेश में बदलना है। उन्होंने कहा कि यह कदम ‘‘पूरी तरह से आक्रामक कृत्य है, जिसे पंजाब कभी स्वीकार नहीं करेगा।’’
सिंह ने कहा, ‘‘मैं मुख्यमंत्री भगवंत मान से अनुरोध करता हूं कि वह विधानसभा सत्र में इस पंजाब विरोधी कदम का कड़ा विरोध करें और इसके खिलाफ एक प्रस्ताव पारित करें। एक सर्वदलील बैठक बुलाई जानी चाहिए, ताकि पंजाब एकजुट होकर इस गैर-संवैधानिक हमले के खिलाफ प्रदर्शन कर सके और पंजाब की आपत्ति औपचारिक रूप से दर्ज कराने के लिए सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल राष्ट्रपति से मिल सके।’’
अभी, पंजाब के राज्यपाल केंद्र-शासित प्रदेश चंडीगढ़ के प्रशासक के तौर पर काम करते हैं। एक नवंबर 1966 से 31 मई 1984 तक चंडीगढ़ के प्रशासन का नेतृत्व मुख्य सचिव के हाथों में हुआ करता था। एक जून 1984 से मुख्य सचिव के पद को केंद्र-शासित प्रदेश के प्रशासक के सलाहकार पद के रूप में बदल दिया गया था।
अगस्त 2016 में, केंद्र ने शीर्ष पद के लिए पूर्व आईएएस अधिकारी केजे अल्फोंस को नियुक्त करके स्वतंत्र प्रशासन होने की पुरानी प्रथा को फिर से शुरू करने की कोशिश की। लेकिन, उस समय के पंजाब के मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल और कांग्रेस एवं ‘आप’ समेत दूसरी पार्टियों के कड़े विरोध के बाद यह कदम वापस ले लिया गया था।
उस समय शिअद राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) का हिस्सा था। पंजाब चंडीगढ़ पर अपना दावा करता है। वह यह भी चाहता है कि चंडीगढ़ का प्रशासन तुरंत उसे स्थातांतरित कर दिया जाए। मुख्यमंत्री ने हाल ही में फरीदाबाद में हुई उत्तर क्षेत्रीय परिषद की बैठक में यह मांग दोहराई थी।
पहले घोषणा करो, फिर सोचो: चंडीगढ़ विधेयक को शीत सत्र में न लाने के केंद्र के बयान पर कांग्रेस का तंज
कांग्रेस ने केंद्रीय गृह मंत्रालय के इस बयान को लेकर केंद्र सरकार पर रविवार को निशाना साधा कि उसका संसद के शीतकालीन सत्र में चंडीगढ़ पर प्रस्तावित विधेयक लाने का कोई इरादा नहीं है। पार्टी ने दावा किया कि यह बयान शासन के प्रति उसके “पहले घोषणा करो, फिर सोचो” वाले रवैये का एक और उदाहरण है।
कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने कहा कि कल ही आगामी शीतकालीन सत्र के लिए संसद बुलेटिन में चंडीगढ़ के लिए पूर्णकालिक उपराज्यपाल की नियुक्ति से संबंधित संविधान संशोधन विधेयक पेश करने की बात कही गई थी। रमेश ने ‘एक्स’ पर कहा कि कांग्रेस और पंजाब के अन्य दलों ने इसका तुरंत और आक्रामक तरीके से विरोध किया।
पंजाब के राज्यपाल चंडीगढ़ के प्रशासक भी हैं। उन्होंने कहा कि केंद्रीय गृह मंत्रालय अब कह रहा है कि उसका शीतकालीन सत्र में विधेयक पेश करने का कोई इरादा नहीं है। रमेश ने कहा, “यह शासन के प्रति मोदी सरकार के ‘पहले घोषणा करना, फिर सोचना’ वाले दृष्टिकोण का एक और उदाहरण है।”
केंद्रीय गृह मंत्रालय ने रविवार को कहा कि उसका संसद के आगामी शीतकालीन सत्र में चंडीगढ़ पर प्रस्तावित विधेयक लाने का कोई इरादा नहीं है, जिसका उद्देश्य केंद्र के लिए कानून बनाने की प्रक्रिया को सरल बनाना है। मंत्रालय ने कहा कि प्रस्ताव का उद्देश्य चंडीगढ़ और पंजाब एवं हरियाणा के बीच पारंपरिक व्यवस्था को बदलना नहीं है। एक दिन पहले जारी लोकसभा और राज्यसभा बुलेटिन के अनुसार, केंद्र सरकार एक दिसंबर से शुरू होने वाले संसद के आगामी शीतकालीन सत्र में संविधान (131वां संशोधन) विधेयक, 2025 पेश करेगी।
विधेयक में चंडीगढ़ को अनुच्छेद 240 के तहत शामिल करने का प्रावधान है, जिससे राष्ट्रपति को केंद्र-शासित प्रदेश के लिए सीधे नियम-कानून बनाने का अधिकार मिल सकेगा। इसे लेकर पंजाब के नेताओं ने तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की थी। गृह मंत्रालय ने एक बयान में कहा, “चंडीगढ़ के हितों को ध्यान में रखते हुए, सभी हितधारकों के साथ पर्याप्त परामर्श के बाद ही कोई उचित निर्णय लिया जाएगा। इस मामले में किसी भी चिंता की कोई आवश्यकता नहीं है। केंद्र सरकार का संसद के आगामी शीतकालीन सत्र में इस संबंध में विधेयक पेश करने का कोई इरादा नहीं है।”
गृह मंत्रालय के प्रवक्ता ने एक बयान में कहा, “प्रस्ताव केवल केंद्र-शासित प्रदेश चंडीगढ़ के लिए केंद्र सरकार के कानून बनाने की प्रक्रिया को आसान बनाने से संबंधित है और यह अब भी केंद्र सरकार के पास विचाराधीन है। इस प्रस्ताव पर कोई आखिरी फैसला नहीं लिया गया है।”