नयी दिल्ली, 19 अक्टूबर केंद्र और प्रदर्शनकारी किसानों के बीच मध्यस्थता करने की मेघालय के राज्यपाल सत्यपाल मलिक की पेशकश पर किसान नेताओं ने मंगलवार को कहा कि भाजपा सरकार को पार्टी में ‘‘सही सोचने वाले लोगों’’ की सुननी चाहिए और जनवरी से रुकी पड़ी वार्ता बहाल करनी चाहिए।
प्रदर्शनकारी किसानों का समर्थन कर रहे मलिक ने रविवार को जोर देते हुए कहा कि यदि केंद्र फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर कानूनी गारंटी देने के लिए राजी हो, तो वह मध्यस्थता करने को तैयार हैं।
मलिक ने राजस्थान के झुंझुनू में एक कार्यक्रम में कहा था, ‘‘सिर्फ एक चीज पूरे मुद्दे का हल कर देगी। यदि सरकार एमएसपी गारंटी देने को राजी हो जाती है, तो मैं मध्यस्थता करूंगा और किसानों को समझाऊंगा।’’
एलायंस फॉर सस्टेनेबल एंड हॉलिस्टिक एग्रीकल्चर (आशा) की कविता कुरूगंती का मानना है कि भारतीय जनता पार्टी में ‘‘सही सोचने वाले लोगों’’ को किसानों की मांगें पूरी कराने के लिए दबाव डालना जारी रखना चाहिए।
उन्होंने कहा, ‘‘मेरा मानना है कि सरकार और किसानों के बीच मध्यस्थता की जरूरत नहीं है। लेकिन, भाजपा में सही सोचने वाले लोगों को किसानों की मांगें पूरी कराने के लिए पार्टी और सरकार पर दबाव डालना जारी रखना चाहिए।’’
कुरूगंती ने कहा कि वैध और वाजिब मांगों को पूरा करने से इनकार करने के पीछे कोई तर्क नहीं है।
उन्होंने कहा, ‘‘पार्टी में किसान हितैषी इस आवाज को यह भी सुनिश्चित करना चाहिए कि पार्टी में नैतिकता इतनी नहीं गिर जाए कि जहां से लौटा नहीं जा सके। उन्हें (राज्य मंत्री) अजय मिश्रा टेनी की बर्खास्तगी और गिरफ्तारी सुनिश्चित करनी चाहिए।’’
कुरूगंती के विचारों से सहमति जताते हुए संयुक्त किसान मोर्चा (एसकेएम) का हिस्सा एवं पश्चिमी उत्तर प्रदेश में एक प्रभावकारी समूह भारतीय किसान यूनियन (बीकेयू) ने कहा कि मलिक ने पहले भी समर्थन किया था, लेकिन भाजपा ने उनकी नहीं सुनी थी।
हालांकि, यदि मांगें पूरी हो जाती हैं, तो कोई भी मध्यस्थ के तौर पर काम करे, उसके लिए वह तैयार है।
बीकेयू मीडिया प्रभारी धर्मेंद्र मलिक ने पीटीआई-भाषा से कहा, ‘‘हमारी दो मुख्य मांगें हैं। नये कृषि कानूनों को वापस लिया जाए और फसलों की एमएसपी सुनश्चित करने वाला एक नया कानून बनाया जाए।’’
उन्होंने कहा कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश के रहने वाले मलिक ने किसानों के मुद्दे पर पहले भी केंद्र को सलाह देने की कोशिश की थी, लेकिन भाजपा उनकी नहीं सुनी थी।
मलिक ने कहा, ‘‘उन्हें सुनने के बजाय, उनकी खुद की पार्टी ने उन्हें मेघालय का राज्यपाल बनाया और वहां भेजा।’’
भारतीय किसान मजदूर महासंघ के किसान नेता अभिमन्यु कोहार ने कहा कि यदि सरकार उनकी मांगों और स्थिति से अवगत नहीं होती, तो मध्यस्थता से मदद मिलती।
उन्होंने कहा, ‘‘हमें मध्यस्थता की जरूरत नहीं है। सरकार के साथ हमने 11 दौर की वार्ता मध्यस्थता के बगैर की और ऐसा नहीं है कि वे हमारी मांगें नहीं जानते हैं। जब वे हमारी मांगों से पूरी तरह से अवगत हैं, तब सिर्फ उन्हें और हमें बैठ कर वार्ता करने और एक निर्णय पर पहुंचने की जरूरत है।
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