कानपुर (उत्तर प्रदेश), 28 मार्च कानपुर के एलपीएस इंस्टीट्यूट आफ कार्डियोलॉजी में रविवार अलसुबह का माहौल रोज की तरह सामान्य था। डॉक्टर और नर्स अपनी ड्यूटी पर थे और तीमारदारों की गतिविधियां भी मामूल के हिसाब से थीं, तभी सात बजकर 40 मिनट पर आईसीयू के पास बने अस्थायी स्टोर रूम से धुआं निकलता दिखायी दिया और कुछ ही पलों में वहां अफरा—तफरी और भगदड़ का नजारा पैदा हो गया।
इंस्टीट्यूट के निदेशक डॉक्टर विनय कृष्णा ने बताया कि अस्पताल के सीनियर रेजिडेंट डॉक्टर रंजन ने स्टोर रूम से धुआं निकलता देख फौरन स्टाफ को खबर की, जिसने पूरी मुस्तैदी दिखायी और आग पर काबू पाने के लिये शमन उपकरण लेकर मौके पर पहुंचा। इस बीच, अस्पताल प्रशासन ने पुलिस और दमकल विभाग को भी आग लगने की सूचना दी।
उन्होंने बताया कि थोड़ी ही देर बाद दो दमकल गाड़ियां अस्पताल पहुंच गयीं और उसमें मौजूद कर्मियों ने आग बुझाने का काम शुरू किया। उसके कुछ समय बाद आधा दर्जन और दमकल गाड़ियां आ गयीं।
कृष्णा ने बताया कि पूरी तरह से वातानुकूलित इमारत में देखते ही देखते धुआं भर गया। हालात बिगड़ते देख अस्पताल कर्मियों ने खिड़कियों और दरवाजों के शीशे तोड़ दिये और मरीजों तथा उनके तीमारदारों को सुरक्षित बाहर निकालकर दूसरे वार्ड में स्थानांतरित किया। करीब दो घंटे की कड़ी मशक्कत के बाद आग पर काबू पा लिया गया।
अस्पताल में सफाईकर्मी राम भरोसे ने बताया, ''आग लगने के बाद इंस्टीट्यूट की पूरी इमारत में धुआं भर गया और मरीजों तथा तीमारदारों के बीच भगदड़ की स्थिति पैदा हो गयी। हम और स्टाफ के बाकी लोग भागकर पहली मंजिल पर पहुंचे और वहां भर्ती मरीजों को निकालने की कोशिश की, मगर वहां इतना धुआं भरा था कि सांस लेना मुश्किल था। हमने फौरन खिड़कियों के शीशे तोड़े ताकि धुआं छंट जाए। तब हमने सारे मरीजों को वहां से बाहर निकाला।’’
एक अन्य कर्मी ने बताया कि सफाईकर्मियों और स्टाफ के लोगों ने बहुत दिलेरी से काम लिया और आग के विकराल रूप लेने से पहले घने धुएं के बीच उन्होंने मरीजों को बाहर निकालना शुरू किया। इस दौरान कुछ कर्मियों को मामूली चोटें भी आयीं।
अस्पताल के एक अधिकारी के मुताबिक धुएं से प्रभावित हिस्सों में भर्ती मरीजों को इंस्टीट्यूट ऑफ कार्डियोवस्कुलर डिसीज की नयी इमारत में स्थानांतरित किया गया है।
घटना के दौरान दो मरीजों की मौत हुई। मगर अस्पताल प्रशासन ने कहा कि दोनों रोगियों की हालत गम्भीर थी और उनकी मौत का अस्पताल में हुई घटना से कोई सम्बन्ध नहीं है।
इन्हीं मरीजों में से एक हमीरपुर निवासी बुजुर्ग टेक चंद के एक करीबी रिश्तेदार ने बताया, ''मुझे लगा कि मैं फंस चुका हूं। हर तरफ धुआं ही धुआं था। सांस लेना मुश्किल था। शुरु में तो ऐसा लगा कि मैं यहां से जिंदा नहीं निकल पाउंगा।''
धुएं में फंसने के बाद रिश्तेदार से कहा गया कि वह टेक चंद को अस्पताल से बाहर ले जाए, मगर तब तक उनकी मौत हो चुकी थी।
हालांकि अस्पताल प्रशासन का कहना है कि टेक चंद की मौत आग लगने से पहले ही हो गयी थी।
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