नयी दिल्ली, 27 जुलाई उच्चतम न्यायालय ने मंगलवार को कहा कि कोविड-19 के चलते अपने माता-पिता को गंवा चुके बच्चों की पहचान में अब और विलंब बर्दाश्त नहीं है। इसके साथ ही न्यायालय ने राज्य सरकारों एवं केंद्र शासित प्रदेशों को स्थिति रिपोर्ट दाखिल करने और मार्च, 2020 के बाद अनाथ हुए बच्चों की संख्या का ब्योरा देने का निर्देश दिया।
शीर्ष अदालत ने कहा कि यह सुनिश्चित करने की जरूरत है कि अनाथ बच्चो से संबंधित योजनाओं का लाभ असली लाभार्थियों तक पहुंचे और ये योजनाएं बस कागजों पर नहीं रहें।
न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव और न्यायमूर्ति अनिरूद्ध बोस की पीठ ने जिलाधिकारियों को अनाथ बच्चों की पहचान के लिए जिला बाल संरक्षण अधिकारियों को पुलिस, नागरिक समाज, ग्राम पंचायतों, आंगनवाडी एवं आशाकर्मियों की मदद लेने के लिये जरूरी दिशानिर्देश जारी करने का निर्देश दिया।
शीर्ष अदालत ने कहा कि यह किशोर न्याय (बाल देखभाल एवं संरक्षण) अधिनियम एवं नियमावली में उपलब्ध प्रणालियों के अतिरिक्त होगा। पीठ ने कहा, ‘‘ मार्च, 2020 के बाद जिन बच्चों ने अपने माता-पिता गंवाये हैं , उनकी पहचान में अब और विलंब बर्दाश्त नहीं है। ’’
पीठ ने भी स्पष्ट किया कि उसके आदेश में वे सभी बच्चे आते हैं जो इस अवधि में कोविड या किसी अन्य कारण से अनाथ हुए। न्यायमूर्ति राव ने कहा, ‘‘ दरअसल हम जो सोच रहे हैं वह यह कि सभी बच्चों की देखभाल करायी जाए, भले वे कोविड या गैर कोविड के कारण अनाथ हुए हों। हम आदेशों को बस उन अनाथों तक सीमित नहीं कर सकते जिन्होंने कोविड-19 से अपने माता-पिता को गंवाया है।’’
शीर्ष अदालत ने कहा कि जिलाधिकारियों को राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) के बाल स्वराज पेार्टल पर सूचनाएं लगातार अपलोड करने का निर्देश दिया जाता है।
पीठ ने यह भी कहा कि बाल कल्याण समितियों को इस अधिनियम के तहत निर्धारित समय सीमा में जांच पूरी करने एवं अनाथों को सहायता एवं पुनर्वास प्रदान करने का भी निर्देश दिया जाता है।
पीठ ने कहा, ‘‘ सभी राज्य सरकारों और केंद्र शासित प्रदेशों को मार्च, 2020 के बाद अनाथ हुए बच्चों की संख्या का ब्योरा देते हुए स्थिति रिपोर्ट दाखिल करने का निर्देश दिया जाता है । इस रिपोर्ट में बाल कल्याण समिति के सामने पेश की गयी बच्चों की संख्या और राज्य सरकारों द्वारा उनतक पहुंचायी गयी योजनाओं के लाभ का ब्योरा आदि हो। ’’
शीर्ष अदालत ने राज्यों को समेकित बाल विकास सेवाएं योजना के तहत जरूरतमंद अनाथ बच्चों को दी गयी 2000 रूपये की मौद्रिक सहायता का विवरण पेश करने का भी निर्देश दिया। न्यायालय ने ऐसे बच्चों की शिक्षा के संदर्भ में राज्य सरकारों को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया कि अनाथ बच्चे जहां भी -- सरकारी या निजी विद्यालय में, पढ़ रहे हों, इस अकादिमक वर्ष में वहीं उनकी पढ़ाई-लिखाई जारी रहे, तथा किसी मुश्किल की स्थिति में शिक्षा के अधिकार कानून के तहत समीप के विद्यालय में उसका दाखिला किया जाए।
शीर्ष अदालत ने न्याय मित्र नियुक्त किये गये वकील गौरव अग्रवाल की रिपोर्ट पर गौर करते हुए यह निर्देश दिये। न्यायालय कोविड-19 से अनाथ हुए बच्चों की पहचान के लिए स्वत: संज्ञान लेकर मामले की सुनवाई कर रहा था। मामले की अगली सुनवाई 26 अगस्त को होगी।
उच्चतम न्यायालय ने एक जून को केंद्र से कोविड-19 से अनाथ हुए बच्चों के लिए हाल में शुरू किये गये ‘पीएम -केयर्स फोर चिल्ड्रेन’ योजना पर सूचना मांगी थी और राज्यों को ऐसे बच्चों की पहचान एवं उनसे जुड़े कल्याणकारी कदमों के संदर्भ में नोडल अधिकारी नियुक्त करने का निर्देश दिया था।
एनसीपीसीआर ने अपने हलफनामे में कहा कि राज्यों से मिले आंकड़े के अनुसार 9,346 बच्चों के माता-पिता या दोनों में से एक की कोरोना वायरस की वजह से मृत्यु हुयी है। हलफनामे के अनुसार 1,742 बच्चों के माता पिता दोनों की मृत्यु हो गयी है जबकि 7, 464 बच्चों के माता पिता में से एक का निधन हुआ है।
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