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कैग की ताजा रिपोर्ट में हुआ बड़ा खुलासा, उत्तराखंड में 35 में से 13 ब्लड बैंक लाइसेंस अवधि समाप्त होने के बाद भी हो रहे हैं संचालित

By भाषा | Updated: December 20, 2019 05:08 IST

मार्च, 2018 में समाप्त हुए वित्तीय वर्ष के लिये जारी अपनी रिपोर्ट में कैग ने कहा कि राज्य में संचालित 35 ब्लड बैंकों में से 13 ब्लड बैंक ऐेसे हैं जो छह महीने से लेकर 20 साल तक एक्सपायर हो चुके लाइसेंस के साथ चल रहे थे।

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भारत के नियंत्रक एवं महा लेखापरीक्षक (कैग) ने अपनी ताजा रिपोर्ट में उत्तराखंड में ब्लड बैंकों की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल खड़ा करते हुए कहा है कि जांच के दौरान राज्य में संचालित 35 ब्लड बैंकों में से 13 ब्लड बैंक लाइसेंस की अवधि समाप्त होने के बाद भी काम करते पाये गये और इनके आवश्यक निरीक्षण भी पूर्ण रूप से नहीं किये गये।

मार्च, 2018 में समाप्त हुए वित्तीय वर्ष के लिये जारी अपनी रिपोर्ट में कैग ने कहा कि राज्य में संचालित 35 ब्लड बैंकों में से 13 ब्लड बैंक ऐेसे हैं जो छह महीने से लेकर 20 साल तक एक्सपायर हो चुके लाइसेंस के साथ चल रहे थे। 2015-18 की अवधि के दौरान आयोजित किए जाने वाले आवश्यक 96 निरीक्षणों की तुलना में केवल 22 नियमित निरीक्षण ही किये गये।

पिछले दिनों राज्य विधानसभा में पेश रिपोर्ट में कैग ने कहा कि इस अवधि के दौरान लेखा परीक्षण द्वारा चयनित किसी भी ब्लड बैंक का निरीक्षण नहीं किया गया था। इन ब्लड बैंकों में से 20 राज्य सरकार द्वारा, चार केंद्र सरकार द्वारा, सात निजी पक्षों द्वारा तथा चार विभिन्न धर्मार्थ संसाधनों द्वारा चलाये जा रहे थे।

रिपोर्ट में कहा गया है कि राज्य औषधि नियंत्रकों (एसडीसी) के अभिलेखों की जांच में पाया गया कि राज्य में जून 2018 तक 35 ब्लड बैंकों में से 13 एक्सपायर्ड लाइसेंस के साथ काम कर रहे थे और इन 13 में से 12 सरकारी और एक निजी ब्लड बैंक है।

इन 13 में से एक का मामला अनुमोदन के लिए केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन (सीडीएससीओ) को भेजा गया था जबकि छह ब्लड बैंक लाइसेंस अधिकारियों द्वारा निरीक्षण न किये जाने के कारण छह महीने से लेकर दो साल तक की अवधि तक बिना लाइसेंस ब्लड बैंक चला रहे थे।

अन्य छह मामलों में निरीक्षण अधिकारियों ने निरीक्षण के दौरान विभिन्न कमियों को उजागर किया था। हालांकि, इन ब्लड बैंकों ने कमियों को दूर नहीं किया और आठ महीने से 20 साल तक बिना लाइसेंस के संचालन कर रहे थे।

इसमें कहा गया है कि पिथौरागढ जिला अस्पताल 20 साल से और उत्तरकाशी जिला अस्पताल 10 वर्ष से अधिक वर्षों से बिना लाइसेंस के ब्लड बैंक चला रहे थे। ड्रग एंड कॉस्मेटिक कानून का हवाला देते हुए कैग ने कहा है कि लाइसेंसिंग अधिकारी लाइसेंस धारक को 'कारण बताओ' नोटिस देने के बाद ब्लड बैंक का लाइसेंस रद्द या निलंबित कर सकता है लेकिन कमियों को सुधारने में नाकाम रहने वाले ब्लड बैंकों के विरूद्ध अधिकारियों द्वारा कोई कार्रवाई नहीं की गयी।

बिना लाइसेंस के ब्लड बैकों के संचालन में गुणवत्ता नियंत्रण के लिये आवश्यक मानकों में कमी तथा असुरक्षित रक्त की आपूर्ति जोखिम से भरी बताते हुए कैग ने कहा है कि राज्य ड्रग कंट्रोलर को ड्रग एंड कॉस्मेटिक कानून के तहत दोषी ब्लड बैंकों के विरूद्ध कार्रवाई सुनिश्चित करनी चाहिए।

लाइसेंस के नियमों और शर्तों के मुताबिक, हर ब्लड बैंक का लाइसेंस जारी होने के बाद वर्ष में कम से कम एक बार पुन:निरीक्षण होना चाहिए। कैग द्वारा इस संबंध में पूछे जाने पर राज्य ड्रग कंट्रोलर्स ने इसका कारण कर्मचारियों की कमी बताया।

टॅग्स :नियंत्रक-महालेखापरीक्षक (कैग)
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