75 साल के बीएस येदियुरप्पा बने कर्नाटक के 32वें सीएम, क्लर्क के तौर पर शुरू किया था करियर

By लोकमत समाचार हिंदी ब्यूरो | Published: May 17, 2018 10:37 AM2018-05-17T10:37:09+5:302018-05-17T15:14:48+5:30

कर्नाटक के 32वें मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा ने साल 2013 के विधान सभा चुनाव में बीजेपी से बगावत करके अलग चुनाव लड़ा था।

bs yeddyurappa political journey in the age of 75 took oath 3rd time as karnataka chief minister | 75 साल के बीएस येदियुरप्पा बने कर्नाटक के 32वें सीएम, क्लर्क के तौर पर शुरू किया था करियर

BS Yeddyurappa BJP and narendra modi

बीजेपी नेता बीएस येदियुरप्पा कर्नाटक के 32वें मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ले चुके हैं। येदियुरप्पा ने मुख्यमंत्री पद की दौड़ में कांग्रेस के सिद्धारमैया और जनता दल (सेकुलर) के एचडी कुमारस्वामी को पीछे छोड़ दिया है। इस वक्त देश में बहुत कम ऐसे बीजेपी नेता होंगे जिनके सामने नरेंद्र मोदी और अमित शाह को समझौता करना पड़ा हो। बीएस येदियुरप्पा की ताकत इसी बात से समझी जा सकती है जब उन्होंने बीजेपी छोड़ दी तो पार्टी 110 सीटों से सीधे 40 पर आ गिरी थी। साल 2008 के विधान सभा चुनाव में येदियुरप्पा बीजेपी के सीएम कैंडिडेट थे तो उन्होंने 110 सीटें जीतकर सरकार बनायी थी। सरकार बनने के बाद जब खनन घोटाले के आरोपों की वजह से उन्होंने इस्तीफा दिया तो कुछ समय बाद पार्टी भी छोड़ दी। साल 2013 के विधान सभा चुनाव में येदियुरप्पा ने बीजेपी से अलग अपनी केजीपी बनाकर चुनाव लड़ा। येदियुरप्पा केवल छह सीटें ही जीत सके लेकिन उनकी ताकत इन सीटों से नहीं बल्कि उनके एक्स पार्टी बीजेपी की सीटों से पता चली। येदियुरप्पा के बिना बीजेपी ने चुनाव लड़ा तो वो केवल 40 सीटें जीत सकी। येदियुरप्पा की ताकत का पता पिछले साल भी तब चला जब  बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने कर्नाटक चुनाव की तय तारीख से करीब एक साल पहले मई 2017 में उन्हें सीएम पद का उम्मीदवार घोषित कर दिया। इसके साथ ही ये साफ हो गया कि येदियुरप्पा को कर्नाटक बीजेपी के अंदर भी कोई चुनौती देने के स्थिति में नहीं है। 

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येदियुरप्पा का जन्म 27 फ़रवरी 1943 को बूकानाकेरे गाँव में में सिद्धालिंगप्पा और पुत्ताथयम्मा के घर हुआ था। जब वो चार साल के थे तभी उनकी माँ का देहांत हो गया। प्री-कॉलेज की पढ़ाई करने के बाद सिद्धारमैया सामाजिक कल्याण विभाग में प्रथम श्रेणी के क्लर्क हो गये। कुछ ही समय बाद उन्होंने सामाजिक कल्याण विभाग की नौकरी छोड़कर शिकारीपुरा स्थित वीरभद्र शास्त्री की शंकर राइस मिल में क्लर्क की नौकरी कर ली।  शिकारीपुरा येदियुरप्पा की जिंदगी में अहम मोड़ निभाने वाला था। इस बदलाव की शुरुआत उनके निजी जीवन से हुई। उन्होंने मिल मालिक की बेटी से शादी कर ली और शिमोगा में हार्डवेयर की दुकान खोल ली। 

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येदियुरप्पा कॉलेज के दिनों से ही आरएसएस से जुड़े गये थे। नौकरी और कारोबार के बावजूद वो संघ से जुड़े रहे। 1970 में आरएसएस ने उन्हें शिकारीपुरा इकाई का कार्यवाह (सचिव) नियुक्त किया। 1972 में वो शिकारपुरा नगर महापालिका के पार्षद चुने गये। उन्हें जन संघ के तालुक इकाई का अध्यक्ष नियुक्त किया गया। 1975 में वो बीजेपी की शिकारीपुरा इकाई के अध्यक्ष चुने गये। 1983 में येदियुप्पा ने शिकारीपुरा विधान सभा सीट से चुनाव जीतकर विधान सभा पहुँचे। तब से अब तक वो इस सीट से आठ बार विधायक का चुनाव जीत चुके हैं।

चुनावी राजनीति के साथ ही पार्टी के अंदर भी येदियुरप्पा की पकड़ मजबूत होती जा रही थी। 1985 में शिमोगा जिले की बीजेपी इकाई के अध्यक्ष बने। तीन साल बाद ही 1988 में वो कर्नाटक बीजेपी के अध्यक्ष बन गये। 1980 के दशक तक कर्नाटक की राजनीति में कांग्रेस का एकछत्र राज्य था। 1983 में रामकृष्ण हेगड़े के नेतृत्व में जनता पार्टी ने 1983 में कांग्रेस को हराकर पहली बार गैर-कांग्रेसी सरकार बनायी। इससे पहले राज्य में 1968 में इंदिरा गांधी के विरोध में कांग्रेस से अलग होकर बनी कांग्रेस (ओ) ही सरकार बना पाई थी। कांग्रेस (ओ) बाद में भारतीय जनसंघ ही की तरह जनता पार्टी में शामिल हो गयी थी। 1980 में जन संघ के नेताओं ने जनता पार्टी से अलग होकर भारतीय जनता पार्टी बना ली।

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राष्ट्रीय राजनीति की तरह कर्नाटक की राजनीति में भी बीजेपी का भाग्योदय 1990 के दशक में ही हुआ। 1994 के विधान सभा चुनाव में जनता दल को 224 में से 115 सीटों पर जीत मिली लेकिन बीजेपी के लिए बड़ी बात ये थी कि 40 सीटों जीतकर उसने 34 सीटें जीतने वाली कांग्रेस को पीछे धकेल दिया था। बीजेपी विधान सभा में मुख्य विपक्षी पार्टी बनी और येदियुरप्पा नेता विपक्ष चुने गये। 1983 से ही लगातार चार बार  विधान सभा चुनाव जीत चुके येदियुरप्पा 1999 में अपनी परंपरागत सीट शिकारीपुरा से चुनाव हार गये। नतीजा ये हुआ कि उन्हें पहली बार विधान परिषद का सदस्य बनना पड़ा। 1999 के बाद इसी सीट से वो अब तक लगातार चार बार विधायक चुने जा चुके हैं। 

साल 2004 के कर्नाटक चुनाव में पहली बार बीजेपी राज्य की सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी। उसे 224 में से 79 सीटों पर जीत मिली। कांग्रेस को 65 और जेडीएस को 58 सीटें मिली थीं। राज्य में कांग्रेस और जेडीएस की गठबंधन सरकार बनी। कांग्रेस और जेडीएस का गठबंधन ज्यादा नहीं चला। करीब डेढ़ साल बाद ही गठबंधन सरकार गिर गयी और जेडीएस के एचडी कुमारस्वामी बीजेपी के समर्थन से मुख्यमंत्री बने। येदियुरप्पा उप-मुख्यमंत्री और वित्त मंत्री बने। जेडीएस और बीजेपी में 20-20 महीने तक मुख्यमंत्री पद रखने का समझौता हुआ था। कुमारस्वामी ने अपना कार्यकाल पूरा होते ही इरादा बदल दिया और बीजेपी के हाथ में सत्ता देने से इनकार कर दिया। बीजेपी ने जेडीएस को दिया समर्थन वापस ले लिया और राज्य में राष्ट्रपति शासन लग गया। येदियुरप्पा के लिए कुमारस्वामी का धोखा फायदेमंद साबित हुआ। साल 2008 में जब राज्य विधान सभा के चुनाव हुए तो बीजेपी को 110 सीटें मिलीं। कांग्रेस को 80 और जेडीएस को महज 28 सीटें मिलीं। संदेश साफ था कि जनता की सहानुभूति बीजेपी को मिली थी। येदियुरप्पा के नेतृत्व में बीजेपी की सरकार बनी।

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साल 2011 में कर्नाटक के लोकायुक्त ने भूमि आवंटन और खदान आवंटन में मुख्यमंत्री येदियुरप्पा पर सवाल उठाया। येदियुरप्पा पर पद के दुरुपयोग और भ्रष्टाचार से जुड़े पांच मुकदमे दर्ज हुए। बीजेपी के राष्ट्रीय नेतृत्व के दबाव में उन्होंने पहले मुख्यमंत्री पद और फिर पार्टी छोड़ दी। बाद में येदियुप्पा सभी मामलों में बरी हो गये लेकिन उन्हें बड़ा राजनीतिक नुकसान हो चुका था। उन्होंने अलग पार्टी तो बना ली थी लेकिन उन्हें एक बार फिर से खुद को साबित करना था। 2013 का विधान सभा चुनाव उनके लिए अग्निपरीक्षा जैसा था जिसमें वो पास हो गये। 2013 के कर्नाटक चुनाव में अकेले येदियुरप्पा की वजह से बीजेपी को करीब 10 प्रतिशत लिंगायत वोटों का नुकसान उठाना पड़ा जिसकी वजह से कांग्रेस को बहुमत मिल गया। 2013 के कर्नाटक चुनाव में कांग्रेस को 120 सीटों पर जीत मिली। बीजेपी और जेडीएस को 40-40 सीटों पर। सिद्धारमैया राज्य के सीएम बने। येदियुप्पा की केजेपी को महज छह सीटों पर जीत मिली लेकिन उसे करीब नौ प्रतिशत वोट मिले थे नतीजतन बीजेपी की सीटें करीब एक तिहाई हो कर रह गईं। बीजेपी को येदियुरप्पा की ताकत का जायका मिल गया था।

येदियुरप्पा ने जब सीएम की कुर्सी और बीजेपी की सदस्यता छोड़ी थी तो पार्टी की कमान नितिन गडकरी के हाथ में थी। जनवरी 2013 में बीजेपी की कमान राजनाथ सिंह के हाथ में आयी। उसी साल के आखिर तक ये चर्चा जोर पकड़ने लगी कि येदियुरप्पा की बीजेपी में वापसी हो सकती है। जनवरी 2014 में येदियुरप्पा की बीजेपी में घर वापसी हो गयी। मई 2014 में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में हुए चुनाव में येदियुरप्पा शिमोगा संसदीय  सीट से पहली बार संसदीय चुनाव में उतरे और तीन लाख से अधिक वोटों से जीत हासिल की। बीजेपी को लोक सभा में मिली सीटों के हिसाब से उसे करीब 120 विधान सभाओं में जीत मिली थी। यानी राज्य की राजनीति में येदियुरप्पा फैक्टर फिर से साबित हो गया था।
कर्नाटक की राजनीति में बीजेपी को येदियुरप्पा की कितनी जरूरत है ये एक बार फिर मई 2017 में साबित हुआ। जब राष्ट्रीय राजनीति में एक से बढ़कर एक कद्दावर बीजेपी नेता नरेंद्र मोदी और अमित शाह की जोड़ी के आगे छोटे पड़ते जा रहे थे कर्नाटक में उलटी बयार चल रही थी। मई 2017 में बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने साफ कर दिया कि  2018 में होने वाले विधान सभा चुनाव में पार्टी के सीएम उम्मीदवार येदियुरप्पा ही होंगे।

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असम में सर्बानंद सोनोवाल जैसे अपवाद को छोड़ दिया जाए तो बीजेपी के मौजूदा ट्रेंड को देखते हुए ये लीक से अलग हटकर फैसला था। उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, बिहार, हरियाणा, उत्तराखंड, त्रिपुरा और पंजाब जैसे राज्यों में सीएम उम्मीदवार की घोषणा किए बिना ही चुनाव में उतरी थी। बीजेपी पीएम नरेंद्र मोदी के चेहरे पर ही ज्यादातर राज्यों में चुनाव में उतरती रही है। लेकिन कर्नाटक में उसने 74 साल के येदियुरप्पा को करीब एक साल पहले ही मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित कर दिया। राष्ट्रीय राजनीति में पीएम मोदी ने अनाधिकारिक तौर पर बीजेपी नेताओं के रिटायरमेंट की उम्र 75 वर्ष घोषित कर रखी है लेकिन येदियुरप्पा के आगे मोदी और शाह को शायद झुकना पड़ा। यानी कर्नाटक में मोदी-शाह के पास इसी बसंत में 75 साल पूरा करने वाले येदियुरप्पा का कोई विकल्प नहीं था। 

मौजूदा विधान सभा चुनाव में बीजेपी को 40 से 104 तक ले जाकर येदियुरप्पा ने साबित कर दिया है कि कर्नाटक बीजेपी के हीरो वही हैं। येदियुरप्पा ने पार्टी के प्रदर्शन से पीएम मोदी और शाह के भरोसे पर खरे उतरे हैं लेकिन तीसरी बार कर्नाटक के सीएम बनने के बाद अभी उन्हें बहुमत की अग्निपरीक्षा से होकर गुजरना है। देखते हैं कर्नाटक विधान सभा में ऊँट किस करवट बैठता है।

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