बिहार में उच्च शिक्षा व्यवस्था पर गंभीर सवाल, कुलपति ने खोला पोल, राजभवन की कार्यप्रणाली सवालों के घेरे में

By एस पी सिन्हा | Published: November 23, 2021 09:42 PM2021-11-23T21:42:12+5:302021-11-23T21:43:02+5:30

मौलाना मजहरूल हक अरबी फारसी विश्वविद्यालय और पाटलिपुत्र विश्वविद्यालय में भी फर्जीवाडे़ का मामला सामने आया है. 

bihar Serious question higher education system Vice Chancellor opened pol  functioning of Raj Bhavan in question | बिहार में उच्च शिक्षा व्यवस्था पर गंभीर सवाल, कुलपति ने खोला पोल, राजभवन की कार्यप्रणाली सवालों के घेरे में

पटना की रिद्धि-सिद्धि आउटसोर्सिंग एजेंसी को 19 अगस्त को 45 मैनपावर आपूर्तिं के लिए टेंडर फाइनल किया गया.

Highlightsराज्यपाल फागू चौहान और प्रदेश के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को पत्र लिखकर इस बाद की जानकारी दी है.विश्वविद्यालय के प्रभारी कुलपति ने आनन-फानन में ऐसे टेंडर को स्‍वीकृति दी, जिसमें गड़बड़ी की आशंका है. विश्वविद्यालय का प्रभार ललित नारायण मिथिला विश्‍वविद्यालय के कुलपति प्रो. एसपी सिंह को दिया गया था.

पटनाः बिहार में बदहाल उच्च शिक्षा व्यवस्था में अब लूट-खसोट की नदियां बहने लगी हैं. कुछ दिन पहले ही मगध विश्वविद्यालय के कुलपति  डॉ राजेन्द्र प्रसाद के घर और दूसरे ठिकानों पर हुई छापेमारी में करोड़ों रुपए नगदी सहित कई महत्वपूर्ण दस्तावेज मिलने का मामला अभी सुर्खियों में है.

अब मौलाना मजहरूल हक अरबी फारसी विश्वविद्यालय और पाटलिपुत्र विश्वविद्यालय में भी फर्जीवाडे़ का मामला सामने आया है. मौलाना मजहरूल हक अरबी फारसी विश्वविद्यालय के कुलपति ने तो खुद राज्यपाल फागू चौहान और प्रदेश के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को पत्र लिखकर इस बाद की जानकारी दी है.

विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. कुद्दुस ने मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर आरोप लगाया है कि कर्मचारी और कॉपी के लिए फर्जी भुगतान करने का उनपर दबाव बनाया जा रहा है. अपने पत्र में उन्होंने दो मोबाइल नंबर का जिक्र करते हुए कहा कि लखनऊ के अतुल श्रीवास्तव नामक व्यक्ति ने राजभवन के नाम पर फोन कर भुगतान करने का दबाव बनाया.

उन्होंने कहा कि अतुल खुद को राजभवन का करीबी बताता है और बार-बार फोन कर भुगतान करने का दबाव बना रहा है. कुलपति ने उत्तर पुस्तिका खरीद के टेंडर में कार्यकारी/प्रभारी कुलपति प्रो. सुरेंद्र प्रताप की भूमिका की जांच की भी मांग की है. कुलपति ने अपने पत्र में लिखा है कि विश्वविद्यालयों में लूट का खेल चल रहा है. इस खेल में बडा गिरोह कार्य कर रहा है.

उन्‍होंने आरोप लगाया है कि उनके योगदान से ठीक पहले विश्वविद्यालय के प्रभारी कुलपति ने आनन-फानन में ऐसे टेंडर को स्‍वीकृति दी, जिसमें गड़बड़ी की आशंका है. उन्‍होंने अपने पत्र में यह भी जिक्र किया कि प्रभारी कुलपति द्वारा चयनित एजेंसी को भुगतान करने के लिए उन पर दबाव बनाया जा रहा है.

बता दें कि इस विश्वविद्यालय का प्रभार ललित नारायण मिथिला विश्‍वविद्यालय के कुलपति प्रो. एसपी सिंह को दिया गया था. उनके पास कुछ और भी विश्वविद्यालय का प्रभार रहा है. राज्यपाल व मुख्यमंत्री को भेजे गए पत्र के अनुसार पटना की रिद्धि-सिद्धि आउटसोर्सिंग एजेंसी को 19 अगस्त को 45 मैनपावर आपूर्तिं के लिए टेंडर फाइनल किया गया. इसके बाद एजेंसी की ओर से 80 मैनपावर के भुगतान के लिए बिल भेज दिया गया. जब भुगतान के लिए फाइल रोकी गई, तब अतुल श्रीवास्तव नाम के एक व्यक्ति ने राजभवन के पीबीएक्स नंबर से खुद को अधिकारी बताकर भुगतान के लिए दबाव बनाया.

इसके बाद भी जब भुगतान का आदेश नहीं किया गया, तब पुरानी तिथि से ही एक और 80 मैनपावर आपूर्ति का पत्र कुलसचिव ने कुलपति के समझ रखा. कुलपति प्रो. कुद्दुस ने अपने लैटर में इस बात का जिक्र किया है कि पहले सात रुपये पर प्रति कॉपी की दर से लखनऊ के बीके ट्रेड्स के यहां छपाई होती थी.

कार्यकारी कुलपति प्रो. सुरेन्द्र प्रताप सिंह ने इसे बढ़ाकर 16 रुपये प्रति कॉपी कर दी. साथ ही एक लाख 60 हजार कॉपी का ऑर्डर दे दिया. जब कॉपी छप कर आई तो 28 लाख रुपये का बिल भेजा गया. कुलपति ने जब घालमेल देख तो एजेंसी को आपूर्ति से मना कर दिया. यह बात भी सामने आई है कि यही एजेंसी मगध विश्वविद्यालय में भी कापी उपलब्ध कराती थी.

जिसमें मगध विश्वविद्यालय के यहां छापेमारी हुई थी. प्रो. कुद्दुस ने बताया कि उस समय परीक्षा की तारीख घोषित हो चुकी थी, इस परीक्षा के चलते 22 लाख रुपये का भुगतान मजबूरी में कर दिया गया. हालांकि, जीएसएम मापदंड का पालन नहीं करने पर छह लाख रुपये का भुगतान रोक दिया गया.

अब इसी छह लाख रुपए के लिए राजभवन से कुलपति को एजेंसी को पेमेंट के लिए विजय सिंह नाम के व्यक्ति ने भी फोन किया. कुलपति के इस पत्रके बाद हडकंप मच गया है. वहीं, दूसरा मामला बिहार के पाटलिपुत्र विश्वविद्यालय का है. इस विश्वविद्यालय का भवन अब तक नहीं बना पाया है, पर किताब और आलमीरा की खरीद के लिए 5 करोड़ की राशि खर्च कर दी गई है और इन किताबों को रखने के लिए आर्यभट्ट ज्ञान विश्वविद्यालय में 50 लाख का किराया पर जगह लिया गया है. यह खरीद पूर्व कुलपति जीएस जायसवाल के आदेश पर हुआ है.

यहां के शिक्षकों और छात्रों ने आरोप लगाया हैं कि किताब की खरीददारी में मानकों का पालन नहीं किया गया. सिलेबस और समसामयिक मुद्दों के इतर किताबें खरीद ली गईं है. ताजा संस्करण की बजाए पुरानी किताबें भी खरीद ली गई हैं, जो बिल्कुल ही अनुपयोगी है. दरअसल विश्वविद्यालयों में पुस्तकों की खरीद टेंडर के जारी होती है, पर यह खरीद बिना टेंडर के ही की गई है. 

यहां उल्लेखनीय है अभी कुछ ही दिनों पहले बोधगया स्थित मगध विश्वविद्यालय के कुलपति डा. राजेंद्र प्रसाद के ठिकानों पर निगरानी विभाग ने छापा मारा था. उन पर करीब 30 करोड रुपए की बंदरबांट का आरोप है. विशेष निगरानी इकाई (एसवीयू) ने बोधगया स्थित विवि कार्यालय के साथ ही उनके आधिकारिक आवास और यूपी के गोरखपुर में उनके निजी आवास पर भी छापेमारी की थी.

इस मामले में भी कुलपति पर कार्रवाई नहीं होने को लेकर राजभवन पर सवाल उठ रहे हैं. कई संगठन इस मामले में राजभवन से तत्‍काल कार्रवाई की मांग कर रहे हैं. यहां तक कि राज्य के शिक्षा मंत्री विजय कुमार चौधरी ने भी राजभवन से कार्रवाई की मांग की है.  उधर, राजभवन और राज्‍य सरकार के बीच दूरी साफ नजर आने लगी है. कई विश्‍वविद्यालयों के कुलपति पर भ्रष्‍टाचार के आरोप लगने के बाद राज्यपाल फागू चौहान द्वारा आज राजभवन में आयोजित चांसलर अवार्ड समारोह में शिक्षा मंत्री और विभाग के कोई अधिकारी शामिल नहीं हुए.

यहां तक की सरकार के भी कोई प्रतिनिधि इस आयोजन में शामिल नहीं हुए. शिक्षा मंत्री विजय कुमार चौधरी ने राजभवन में आयोजित समारोह में शामिल नहीं होने के सवाल पर कहा कि चांसलर अवार्ड की स्थापना और फिर इसकी चयन प्रक्रिया को कुलाधिपति कार्यालय ने तय किया है. इसमें न सरकार से सलाह ली गई और न ही शिक्षा विभाग से.

इस पूरी प्रक्रिया में राज्यपाल और कुलाधिपति कार्यालय सिर्फ शामिल है. प्रदेश कांग्रेस ने भी आरोप लगाया है कि बिहार के विश्वविद्यालयों में अरबों रूपए का हेराफेरी हुआ है. उसने सीबीआई जांच की मांग की है. मीडिया प्रभारी राजेश राठौर ने मांग किया किया है कि मौलाना मजहरूल हक अरबी फारसी विश्वविद्यालय के कुलपति के पत्र को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार गंभीरता से लें और सीबीआई जांच कराएं.

उन्होंने सवाल किया है कि आखिर विश्वविद्यालयों में फर्जीवाड़ा के खेल के पीछे कौन है. पिछले दिनों एक वीसी के यहां छापे पडे़. कई सौ करोड़ की संपत्ति बरामद हुई, लेकिन आज तक उनकी गिरफ्तारी नहीं हुई है. राठौर ने यह भी कहा है कि आखिर बिहार के विश्वविद्यालयों में फर्जीवाड़ा के पीछे लखनऊ डॉन कौन है, इसकी जांच होनी चाहिए. तभी बिहार का विश्वविद्यालय और उच्च शिक्षा बच पाएगा.

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