बिहारः नीतीश कैबिनेट से इस्तीफा देने वाले तीसरे मंत्री, विधान परिषद की सदस्यता पर खतरा नहीं, 11 महीने तक रहेंगे विधायक, राजद सहयोग से बने हैं एमएलसी
By एस पी सिन्हा | Published: June 13, 2023 05:39 PM2023-06-13T17:39:16+5:302023-06-13T17:48:00+5:30
बिहार सरकार के मंत्री संतोष सुमन ने अपनी पार्टी हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा (हम) का मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के दल जद (यू) में विलय के लिए ‘‘दबाव’’ बनाए जाने का आरोप लगाते हुए मंगलवार को अचानक कैबिनेट से त्यागपत्र दे दिया।
पटनाःबिहार में मंत्री पद छोड़ने वाले संतोष सुमन के विधान परिषद की सदस्यता पर कोई खतरा नहीं है। संतोष सुमन मजे में 11 महीने तक विधान पार्षद बने रहेंगे। कारण कि उनकी विधान परिषद की सदस्यता छह मई 2024 तक है। संतोष सुमन को राजद के सहयोग से विधायक कोटे से विधान परिषद का सदस्य बनाया गया था।
संतोष सुमन 7 मई 2018 को विधान परिषद के सदस्य बने थे। उधर, संतोष सुमन के इस्तीफे के बाद यह माना जा रहा है कि विपक्षी दलों की महाबैठक के अगुआ बने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को बड़ा झटका लगा है। 23 जून से पहले ही विपक्षी एकता की हवा तब निकल गई, जब देश भर के विपक्षी दलों को गोलबंद करने निकले मुख्यमंत्री नीतीश अपना घर को भी सुरक्षित नहीं रख सके।
कार्तिक मास्टर और सुधाकर सिंह इस्तीफा दे चुके हैं
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के पिछले साल अगस्त में भाजपा से अलग होकर राजद के साथ मिल कर सरकार बनाने के बाद से संतोष तीसरे मंत्री हैं जिन्होंने कैबिनेट से इस्तीफा दिया है। इससे पहले विभिन्न कारणों से राजद कोटे से मंत्री कार्तिक मास्टर और सुधाकर सिंह इस्तीफा दे चुके हैं।
जदयू की सहयोगी पार्टी हम ने बगावत कर दिया है। पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष सह नीतीश कैबिनेट में एससी-एसटी कल्याण विभाग के मंत्री डॉ. संतोष कुमार सुमन ने इस्तीफा देने के बाद नीतीश कुमार पर गंभीर आरोप लगाए हैं। संतोष का यह कहना कि राज्यपाल से मिलना गुनाह है क्या? केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से मिलना गुनाह है क्या?
जीतन राम मांझी ने हम पार्टी की स्थापना की थी
जनहित के मुद्दे को लेकर राष्ट्रपति और गृह मंत्री से मिले थे, हम छोटी पार्टी हैं तो कोई रोक लगा देंगे, महागठबंधन को सीधे-सीधे चुनौती है। नीतीश कुमार के साथ रहने से हमारी पार्टी का अस्तित्व खतरे में था। इसलिए हमने इस्तीफा दे दिया है। सुमन हम के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं। उनके पास पास अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति कल्याण विभाग था।
सुमन के पिता एवं प्रदेश के मुख्यमंत्री रह चुके जीतन राम मांझी ने हम पार्टी की स्थापना की थी। सुमन ने कहा, “मैंने अपना इस्तीफा मुख्यमंत्री को भेज दिया है और अपनी बात रखने के लिए व्यक्तिगत रूप से विजय कुमार चौधरी (जदयू के वरिष्ठ नेता एवं मंत्री) से मिला हूं। मुझे उम्मीद है कि मेरा इस्तीफा स्वीकार कर लिया जाएगा। हालांकि, हमलोग महागठबंधन से बाहर नहीं हो रहे हैं।"
जीतन राम मांझी के बेटे का इस्तीफा महागठबंधन में मौजूद खाई का सबूतः शाहनवाज हुसैन
भाजपा प्रवक्ता सैयद शाहनवाज हुसैन ने कहा कि जीतन राम मांझी के बेटे का इस्तीफा महागठबंधन में मौजूद खाई का सबूत है। महागठबंधन को लोगों ने खारिज कर दिया है और यह अगले साल लोकसभा चुनाव में स्पष्ट होगा और एक साल बाद विधानसभा चुनाव में महागठबंधन की हार होगी।
महागठबंधन के सबसे बड़े घटक दल राजद के प्रवक्ता मृत्युंजय तिवारी ने कहा, "जीतन राम मांझी अपने दबाव की रणनीति और चालबाज़ी के लिए जाने जाते हैं। हालांकि हमारी सरकार इस फैसले से प्रभावित नहीं होगी, यह एक ऐसा कदम है जिसका उन्हें पछतावा होगा"। सुमन जहां बिहार विधान परिषद की सदस्य हैं, वहीं बिहार विधानसभा में हम के मांझी समेत कुल चार विधायक हैं।
हम को छोड़ कर महागठबंधन के सदस्यों की संख्या अब भी 160
प्रदेश के 243 सदस्यीय विधानसभा में सरकार के बने रहने के लिए 122 सदस्यों की आवश्यकता होती है। हम को छोड़ कर महागठबंधन के सदस्यों की संख्या अब भी 160 है। इसमें कांग्रेस और वामपंथी दल भी शामिल हैं । तिवारी ने कहा, “इस साल की शुरुआत में पूर्णिया में महागठबंधन की रैली में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने मांझी को गुमराह करने की भाजपा की कोशिशों के बारे में बात की थी। लगता है वह झांसे में आ गये हैं। जद (यू) द्वारा विलय के दबाव के दावों में दम नहीं है"।
गौरतलब है कि करीब एक महीने पहले जब मांझी ने राष्ट्रीय राजधानी में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात की थी, तभी से अटकलों का बाजार गर्म हो गया था और इसके बाद पिता-पुत्र की जोड़ी ने "लोकसभा चुनाव में हम के लिए कम से कम पांच सीटों" की बार-बार मांग की गई।
इस बीच, एक मंत्री और जद (यू) के एक वरिष्ठ नेता लेशी सिंह ने मांझी को याद दिलाया "यह नीतीश कुमार के आशीर्वाद के कारण ही था कि वह मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुंचे"। लेशी सिंह का इशारा 2014 में उस राजनीतिक उथल-पुथल की ओर था, जब नीतीश कुमार ने लोकसभा चुनाव में जद (यू) की हार के लिए नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था।
मांझी, जिन्हें तब एक कम महत्वपूर्ण मंत्री के रूप में देखा जाता था, को उनके गुरु के समर्थन से मुख्यमंत्री के रूप में नियुक्त किया गया था। दलित नेता आठ महीने तक प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे थे । उनके कार्यकाल के दौरान पार्टी के भीतर कई विवाद हुये और इसे गुटीय झगड़ों का सामना करना पड़ा, और जब नीतीश ने मुख्यमंत्री के रूप में लौटने का फैसला किया तो उन्होंने विद्रोह कर दिया।