लखनऊः बिहार विधानसभा का चुनाव प्रचार गति पकड़ने लगा है. शुक्रवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एनडीए के उम्मीदवारों के पक्ष में माहौल बनाने के लिए चुनावी मैदान में उतरे. वही दूसरी तरफ एनडीए को चुनौती देने वाले महागठबंधन के तेजस्वी यादव और मुकेश सहनी भी चुनाव प्रचार करने के लिए निकल पड़े हैं. लेकिन बिहार में एनडीए और महागठबंधन के लिए खतरा बनने का दावा करने वाली बहुजन समाज पार्टी (बसपा) की मुखिया मायावती अभी चुनाव प्रचार करने की जल्दी में नहीं हैं. उन्होने तय किया है कि छठ भभुवा हवाई अड्डे के मैदान में करेंगी.
इस जनसभा में रामगढ़ और कैमूर सीट के उम्मीदवारों के समर्थन में वोट देने की अपील मायावती करेंगी. पार्टी नेताओं के अनुसार, बिहार में मायावती करीब दो दर्जन चुनावी सभाओं को संबोधित करेंगी. बसपा नेताओं को बिहार की 25 सीटों पर इस बार जीत की उम्मीद है.
बसपा 25 सीटों पर जीत की उम्मीद
बिहार की सभी 243 विधानसभा सीटों पर उम्मीदवार उतारने का ऐलान मायावती ने किया है. पार्टी अब तक 128 प्रत्याशियों के नाम घोषित कर चुकी है. बीते चार वर्षों से बिहार में पार्टी संगठन को तैयार करने वाले बसपा के केंद्रीय कोआर्डिनेटर रामजी गौतम के अनुसार, इस बार बिहार में बसपा बड़ा धमका करेगी.
बसपा को यूपी की सीमा से सटे बिहार के गोपालगंज, कैमूर, चंपारण, सिवान और बक्सर जिले में कई बसपा प्रत्याशियों के चुनाव जीतने की उम्मीद है. रामजी गौतम का दावा है कि यूपी सीमा से सटे बिहार के इन जिलों में बसपा के कई प्रत्याशी एनडीए और महागठबंधन को धूल चटाएंगे.
इस जिलों में बसपा प्रत्याशियों की जीत की संभावनाओं को देखते हुए पार्टी ने अपने पूर्वांचल के तमाम नेताओं को बिहार चुनाव में समर्थन जुटाने की जिम्मेदारी दी है. जबकि बिहार के पार्टी पदाधिकारी भी इन सीटों पर जमीन मजबूत करने में जुटे हैं. पार्टी का यह प्लान है कि यूपी से सटे बिहार के इन जिलों की सीटों पर त्रिकोणीय मुकाबले के हालात बनाए जाएं.
ताकि दलित वोट बैंक के एकजुट होने पर उसके प्रत्याशी की राह आसान हो सके. इसी सोच के तहत रामजी गौतम और उनकी टीम बिहार की 25 सीटों पर अपनी पूरी ताकत लगा रही है. रामजी गौतम का कहना है कि यूपी की सीमा से गोपालगंज, कैमूर, चंपारण, सिवान और बक्सर आदि जिलों में रहने वालों से यूपी के गाजीपुर, बलिया, चंदौली, कुशीनगर, देवरिया और सोनभद्र जिले में रहने वालों के साथ गहरा सामाजिक ताना-बाना है. इन जिलों की 25 सीटों पर बसपा दलितों को एकजुट करके इन सीटों पर कब्जा करने की रणनीति के तहत आगे बढ़ रही है.
बसपा सुप्रीमो की चुनाव जनसभा के बाद उम्मीद है कि उक्त सीटों पर बसपा प्रत्याशियों की जीत का रास्ता मजबूत होगा. यह दावा रामजी गौतम और आकाश आनंद पार्टी प्रत्याशियों से कर रहे हैं. बिहार में दलित समाज के वोटों को अगर बसपा एकजुट करने में कामयाब रहती है तो चुनाव नतीजे दिलचस्प हो सकते हैं, यह दावा बिहार में राजनीति का जानकार कर रहे हैं.
बिहार में बसपा का अबतक का सफर
बिहार में बसपा को अभी तक आशातीत सफलता नहीं मिली है. हालांकि बिहार में बसपा ने वर्ष 1990 में अपना राजनीतिक सफर शुरू किया था. परंतु 35 वर्षों के इस सफर में कभी भी बसपा सत्ता के नजदीक नहीं पहुंच सकी. वर्ष 1990 में जब बसपा ने बिहार विधानसभा के चुनाव में हिस्सा लिया था, तब बिहार और झारखंड संयुक्त राज्य थे.
तब बिहार विधानसभा में सीटों की संख्या 324 थी. वर्ष 1990 के विधानसभा चुनाव में बसपा ने 164 सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे. तब पार्टी 0.73 फीसदी वोट मिले लेकिन एक सीट भी वह जीत नहीं सकी थी. फिर वर्ष 1995 के विधानसभा चुनाव में बसपा ने 161 सीटों पर उम्मीदवार उतारे और 1.34 फीसदी वोट हासिल कर दो सीटों पर जीत हासिल की थी.
वर्ष 2000 के विधानसभा चुनाव में बसपा ने 249 सीटों पर उम्मीदवार उतारे और पांच सीटों पर जीत हासिल कर 1.89 फीसदी वोट हासिल किए. वर्ष 2005 के विधानसभा चुनाव में बसपा ने 238 सीटों पर उम्मीदवार उतारे और 4.41 फीसदी वोट शेयर के साथ दो सीटें जीतने में सफल हुई.
इसके बाद अक्टूबर 2005 के विधानसभा चुनाव में 212 सीटों पर उम्मीदवार उतारने वाली बसपा 4.17 फीसदी वोट शेयर के साथ चार सीटें जीतने में कामयाब रही. 2010 और 2015 के विधानसभा चुनाव में पार्टी को 3.21% और 2.1 फीसदी वोट शेयर तो मिले, लेकिन कोई सीट जीतने में पार्टी कामयाब नहीं हुई.
2020 के विधानसभा चुनाव में बसपा ने 80 सीटों पर उम्मीदवार उतारे और एक सीट जीने में भी सफल हुई थी. बीते चुनाव में बसपा को 1.5 फीसदी वोट हासिल हुए थे और चैनपुर सीट पर बसपा प्रत्याशी जमा खां ने जीत दर्ज की थी, लेकिन बाद में पाला बदलकर जनता दल यूनाइटेड में शामिल हो गए.