पटनाः कांग्रेस नेता राहुल गांधी और राजद नेता तेजस्वी यादव के नेतृत्व में बिहार में निकाला गया मतदाता अधिकार यात्रा के समापन पर पटना में राहुल गांधी, तेजस्वी यादव, मुकेश सहनी, डी.राजा, झामुमो प्रमुख हेमंत सोरेन और भाकपा-माले महासचिव दीपंकर भट्टाचार्य जैसे इंडिया गठबंधन के दिग्गज मंच पर थे, लेकिन पूर्णिया के सांसद पप्पू यादव एवं कांग्रेस नेता कन्हैया कुमार मंच के नीचे ही रह गए। इस दौरान पप्पू यादव और कन्हैया कुमार को मंच पर चढ़ने से रोक दिया गया। इसको लेकर बिहार में सियासत गर्मा गई है। जानकारों की मानें तो पप्पू यादव और कन्हैया कुमार की अनदेखी तेजस्वी यादव पर भारी पड सकती है। कन्हैया कुमार और पप्पू यादव को मंच पर जगह नहीं देने के पीछे की वजह राजद की नाराजगी बताई जा रही है।
राजद नहीं चाहती की कांग्रेस में वैसे नेताओं का उभार हो जो आगे चलकर तेजस्वी के लिए चुनौती पेश बने। जबकि राहुल गांधी की मतदाता अधिकार यात्रा में पप्पू यादव और कन्हैया कुमार साथ रहे। लेकिन तेजस्वी यादव की मौजूदगी की वजह से उन दोनों को ज्यादा तवज्जो नही दी गई।
सियासत के जानकारों की मानें तो राहुल गांधी ने जिस तरह से कांग्रेस को संगठन के स्तर पर मजबूत करने की कोशिश की और बिहार में मतदाता अधिकार यात्रा सहित कई मौकों पर अपनी उपस्थिति दर्ज कराई है, ऐसे माना जाने लगा है कि वे राज्य में कांग्रेस को अलग पहचान देने की तरफ बढ़ रहे हैं। अब वह के ’हां’ में ’हां’ मिलाने के मूड में नहीं हैं।
लेकिन आज कन्हैया और पप्पू यादव के साथ जो हुआ उसने स्थिति साफ कर दी है। इसका असर टिकट बंटवारे में भी दिखेगा। कन्हैया कुमार को राहुल गांधी की टीम का नेता माना जाता है। उनको समय-समय पर पार्टी जिम्मेदारियां दे रही है। कांग्रेस की युवा पीढ़ी के नेताओं में कन्हैया की डिमांड सबसे अधिक है।
बिहार में कांग्रेस के पास कन्हैया के अलावा अभी ऐसा कोई युवा नेता नहीं है, जो लंबी दूरी का घोड़ा बन सके। बिहार में जितनी जरूरत कांग्रेस को कन्हैया की है, उतनी ही जरूरत कन्हैया को कांग्रेस की भी है। कन्हैया कुमार युवा हैं। वहीं राजद की कोशिश युवाओं की सियासत में तेजस्वी को प्रमुख चेहरे के तौर पर स्थापित करने की है और इस कोशिश में कन्हैया कुमार चुनौती भी बन सकते हैं।
तेजस्वी और उनकी पार्टी कन्हैया को कथित तौर पर पसंद नहीं करती, तो उसके पीछे इन सभी फैक्टर्स के साथ ही मुस्लिम समुदाय के बीच लोकप्रियता भी वजह हो सकती है। 2019 के लोकसभा चुनाव में भाकपा ने कन्हैया कुमार को बेगूसराय सीट से गिरिराज सिंह के खिलाफ चुनाव मैदान में उतारा था। तब गठबंधन के बावजूद राजद ने अपना उम्मीदवार दे दिया था।
वहीं, 2024 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस कन्हैया के लिए बेगूसराय सीट चाहती थी, लेकिन मिली नहीं। मजबूरन कांग्रेस को उन्हें उत्तर पूर्वी दिल्ली सीट से उतारना पड़ा। कन्हैया कुमार की अगुवाई में पिछले दिनों हुई 'पलायन रोको, नौकरी दो' पदयात्रा से भी तेजस्वी और उनकी पार्टी असहज नजर आई थी।
वहीं, पप्पू यादव की बात करें तो पिछले साल हुए लोकसभा चुनाव से पहले उन्होंने लालू यादव से मुलाकात की थी। लालू यादव ने उनसे अपनी पार्टी का राजद में विलय करने और मधेपुरा सीट से चुनाव लड़ने के लिए कहा था। पप्पू यादव पूर्णिया सीट से मैदान में उतरने की तैयारी कर रहे थे। दरअसल, कोसी-सीमांचल के इलाके में पप्पू यादव की अच्छी पकड़ मानी जाती है।
कोसी नदी के किनारे नेपाल और बांग्लादेश की सीमा के करीब बसे पूर्णिया, अररिया, सुपौल, मधेपुरा, सहरसा, किशनगंज और कटिहार के इलाके आते हैं। इनकी राजनीतिक ताकत का अंदाजा इस बात से भी लगता है कि वो कई बार निर्दलीय विधानसभा से लेकर लोकसभा चुनाव तक जीत चुके हैं। मुस्लिम और यादव बाहुल्य कोसी और सीमांचल के बेल्ट में पप्पू यादव मजबूत पकड़ रखते हैं।
मुस्लिम-यादव समीकरण राजद की सियासत का भी आधार माना जाता है। तेजस्वी यादव को पप्पू पसंद नहीं हैं, तो उसके पीछे यादव पॉलिटिक्स की पिच पर लालू यादव की छाया से बाहर निकल खुद को स्थापित करने की उनकी चाहत भी वजह बताई जाती है। बिहार जातीय सर्वे-2023 के आंकड़े के मुताबिक, बिहार में मुस्लिमों के बाद सबसे ज्यादा आबादी यादव समाज की है।
14.26 फीसदी। पप्पू यादव और लालू यादव दोनों इसी समाज से आते हैं। लालू यादव तेजस्वी यादव को अपनी विरासत सौंप चुके हैं। जबकि, पप्पू यादव की अपनी स्वतंत्र पहचान हैं। तेजस्वी महागठबंधन की तरफ से मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार हैं। ऐसे में लालू परिवार नहीं चाहता कि कोई दूसरा यादव नेता आसपास रहे।
2024 लोकसभा चुनाव में पप्पू यादव ने कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ने की कोशिश की, लेकिन राजद ने सीट नहीं दिया। उसने जदयू से राजद में आईं बीमा भारती को टिकट दिया। इसके खिलाफ पप्पू यादव निर्दलीय लड़े और जीते। बताया जा रहा है कि इससे बढ़ी तल्खी अब तक कम नहीं हुई है। बिहार में राजद गठबंधन का नेतृत्व करता है और तेजस्वी यादव 2025 के चुनाव में मुख्यमंत्री चेहरा बनना चाहते हैं।
सियासत के जानकारों का कहना है कि इस स्थिति में राजद, पप्पू यादव और कन्हैया कुमार जैसे नेताओं को मंच पर जगह देकर संभावित प्रतिद्वंद्वियों को बढ़ावा नहीं देना चाहती है। वहीं, राहुल गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस की यह कोशिश है कि वह बिहार में खुद को अधिक सशक्त और नेतृत्वकारी दिखाए। इस प्रक्रिया में पुराने दौर नेताओं को किनारे कर दिया जा रहा है।
मतदाता अधिकार यात्रा के समापन के दिन पप्पू यादव का साउंड सिस्टम के पास के पास बैठे दिखे। मार्च के दौरान उनको गाड़ी पर भी नहीं चढ़ने दिया गया जिससे उनकी भारी फजीहत हो गई। पप्पू यादव की ‘बेइज्जती’ के ये दोनों दृश्य सोशल मीडिया में वायरल हो गए और सवाल उठने लगे कि बिहार की सियासत में पप्पू यादव की हैसियत क्यों सिमट रही है?
ऐसे में पप्पू यादव ने अपनी सफाई देते हुए कहा कि मंच गठबंधन का तय था कि कौन नेता बोलेगा? एसआईआर पर बात होनी चाहिए। देश के लोग सपना देखने लगे की राहुल गांधी हैं, तो हम सुरक्षित हैं। पप्पू यादव ने कहा कि राहुल गांधी एक बड़े जनसेवक हैं। पप्पू यादव ने कहा कि मंच पर नहीं चढ़ने का हमको दर्द नहीं है, पप्पू यादव के साथ हमेशा ऐसा होता है।
कांग्रेस के मुख्यमंत्री के चेहरा क्या पप्पू यादव होंगे इस पर पप्पू यादव ने कहा कि कांग्रेस की लीडरशिप जाने की कौन मुख्यमंत्री होगा? यात्रा के समापन के दौरान कांग्रेस की राजनीतिक रणनीति भी चर्चा में रही। पटना की सड़कों पर तेजस्वी यादव की तस्वीरें अपेक्षाकृत छोटी थीं, जबकि राहुल गांधी, प्रियंका गांधी वाड्रा और कांग्रेस नेताओं के बड़े कटआउट लगाए गए।
इस पर सवाल उठने लगे कि कांग्रेस कहीं अपनी अलग राजनीतिक चाल तो नहीं चल रही? लालू यादव के कटआउट लगभग गायब रहे। सिर्फ डाक बंगला चौराहे पर लालू यादव का एक कटआउट जरूर लगाया गया था। वहीं, गांधी मैदान में भी इस बार तेजस्वी और लालू यादव के कटआउट नहीं लगाए गए।
यात्रा के समापन समारोह में कांग्रेस और महागठबंधन के सभी बड़े नेता एक साथ मंच पर जरूर दिखे, लेकिन कटआउट की राजनीति ने अलग ही तस्वीर पेश की। लालू यादव की अनुपस्थिति और उनके कटआउट का न होना इस बात का संकेत माना जा रहा है कि कांग्रेस कहीं न कहीं अपनी सियासी चाल चल रही है। पटना में रहने के बावजूद लालू यादव और राबड़ी देवी ने मंच पर जाना मुनासिब नहीं समझा।
यही नही राजद के अधिकतर विधायक और सांसद भी गायब रहे। हालांकि का कहना है कि ड्राइविंग सीट पर तेजस्वी यादव ही हैं। राजद विधायक फतेह बहादुर ने इस विवाद पर सफाई देते हुए कहा कि तेजस्वी यादव बिहार की राजनीति में ड्राइविंग सीट पर हैं और इंडिया गठबंधन के कोआर्डिनेशन कमेटी के अध्यक्ष हैं। उन्होंने कहा कि इसमें किसी तरह की दूरी या असहमति की बात नहीं है, बल्कि पूरा गठबंधन एकजुट है।