'चूड़ा- दही’ खाने के बाद क्या बिहार में सियासत करवट लेने वाली है?, महागठबंधन में सहज नहीं महसूस कर रहे मुख्यमंत्री नीतीश
By एस पी सिन्हा | Updated: January 6, 2024 15:37 IST2024-01-06T15:34:24+5:302024-01-06T15:37:55+5:30
Bihar Politics News: बिहार में सरकार का नेतृत्व कर रही जदयू में बड़ा बदलाव हो गया है। कमान मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने अपने हाथों में ले ली है।

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Bihar Politics News: मकर संक्रांति का 'चूड़ा- दही’ खाने के बाद क्या बिहार में सियासत करवट लेने वाली है? कारण कि इस बार मकर संक्रांति से पहले ही राज्य का सियासी पारा चढ़ा हुआ है। विपक्षी एकता को लेकर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के चेहरे पर जो उम्मीद दिख रही थी, वह अब मायूस दिखने लगे हैं।
ऐसे में बिहार के सियासी गलियारों में चर्चा तेज है कि मकर संक्रांति के बाद बिहार की राजनीति में कुछ बड़ा होने वाला है। बिहार की राजनीति के जानकारों का कहना है कि विपक्ष के इंडी गठबंधन में दाग लग चुका है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार महागठबंधन के साथ बहुत सहज नहीं महसूस कर रहे हैं क्योंकि राजद अब भी नहीं बदली है।
इसलिए देखना होगा कि वह 14- 15 जनवरी को ‘चूड़ा दही’ के बाद क्या करेंगे? उल्लेखनीय है कि मकर संक्रांति के मौके पर बिहार में सियासी दलों और नेताओं में 'चूड़ा दही’ पार्टी देने की परंपरा रही है। 14 जनवरी को किस नेता की पार्टी में कौन शामिल हुआ है, उससे कई बार भविष्य की राजनीति की तस्वीर भी दिखती है।
ऐसे में बिहार में महागठबंधन में दरार की खबरों के बीच राज्य का सियासी पारा चढ़ा हुआ है, इस लिहाज से भी इस साल मकर संक्रांति की पार्टी खास हो सकती है। बता दें कि बिहार में सरकार का नेतृत्व कर रही जदयू में बड़ा बदलाव हो गया है। पार्टी की कमान मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने अपने हाथों में ले ली है।
लोकसभा चुनावों के पहले के इस बदलाव को नीतीश का बड़ा कदम माना जा रहा है। दावा किया गया कि ललन सिंह को उनके पद से हटाने की वजह उनकी राजद प्रमुख लालू यादव के साथ बढ़ती निकटता है। भाजपा सांसद सुशील मोदी ने तो यहां तक दावा किया कि ललन सिंह जदयू के कुछ विधायकों को तोड़कर लालू के साथ ले जाना चाह रहे थे।
जानकारों का मानना है कि लालू यादव चाहते हैं कि नीतीश कुमार केंद्र की राजनीति में व्यस्त हो जाएं और बिहार की सत्ता तेजस्वी यादव को सौंप दें। मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में पिछले दिनों हुए विधानसभा चुनावों को लोकसभा चुनाव से जोड़कर देखा जाने लगा है।
बता दें कि नीतीश कुमार की जदयू एनडीए की पुरानी साझेदार रही है। नीतीश कुमार और भाजपा के बीच ये रिश्ता साल 1996 में शुरू हुआ था। ऐसे में देखना होगा की बिहार की सियासत दही चूड़ा के भोज के बाद किस करवट बैठती है।