बिहार में जातीय जनगणना पर नीतीश सरकार को हाई कोर्ट से फिर से लगा झटका, पुनर्विचार याचिका खारिज
By एस पी सिन्हा | Published: May 9, 2023 02:08 PM2023-05-09T14:08:52+5:302023-05-09T14:09:01+5:30
पटना: बिहार में जातीय जनगणना पर नीतीश कुमार ने नेतृत्व वाली सरकार को पटना हाईकोर्ट से फिर झटका लगा है। मुख्य न्यायाधीश की खंडपीठ ने नीतीश सरकार के जातीय गणना पर रिव्यू पिटीशन खारिज कर दिया। मुख्य न्यायाधीश के वी चन्द्रन की खंडपीठ ने इन मामलों पर सुनवाई की तिथि 3 जुलाई, 2023 ही रखा। इससे पहले गणना पर 4 मई को पटना हाईकोर्ट ने रोक लगा दी थी। सरकार ने अपनी याचिका में मांग की थी कि इस पर जल्द सुनवाई की जाए।
बिहार सरकार की तरफ से महाधिवक्ता पीके शाही ने जल्द सुनवाई की याचिका दायर की थी और कहा था कि ताकि जातीय गणना का बांकी काम कराया जा सके। लेकिन कोर्ट ने मामले में जल्द सुनवाई से इंकार कर दिया। इससे पहले मुख्य न्यायाधीश के वी चन्द्रन की खंडपीठ ने अंतरिम आदेश पारित करते हुए राज्य सरकार को निर्देश दिया था कि राज्य सरकार इस दौरान इक्कठी की गई आंकड़ों को शेयर व उपयोग फिलहाल नहीं करेगी।
दरअसल, 5 मई को राज्य सरकार की ओर से जाति आधारित गणना एवं आर्थिक सर्वेक्षण को चुनौती देने वाली लोकहित याचिकाओं की सुनवाई 3 जुलाई से पहले करने के लिए याचिका दायर की गई थी। यह याचिका सामान्य प्रशासन विभाग की ओर से दायर की गई थी। बिहार सरकार की ओर से दायर याचिका में कहा गया था कि 4 मई को लोकहित याचिकाओं में उठाए गए सभी मुद्दों पर हाई कोर्ट ने अपना फैसला सुना दिया है। ऐसे में फैसला करने के लिए अब कोई भी मुद्दा शेष नहीं रहता। इस कारण इन याचिकाओं की सुनवाई 3 जुलाई से पहले करके इनका निष्पादन कर दिया जाए।
मुख्य न्यायाधीश के. विनोद चंद्रन की खंडपीठ के समक्ष महाधिवक्ता पीके शाही ने मामले को गर्मी छुट्टियों से पहले सूचीबद्ध करने की गुहार लगाई थी, जिसे मानते हुए कोर्ट ने मामले को इस सप्ताह सूचीबद्ध करने के लिए कहा था। इससे पहले पटना हाईकोर्ट ने स्पष्ट कर दिया था कि प्रथम दृष्टया राज्य सरकार के पास जाति आधारित गणना कराने का वैधानिक अधिकार नहीं है। कार्यपालिका के पास जातीय जनगणना कराने का क्षेत्राधिकार नहीं है। कोर्ट ने ये भी कहा कि जातीय जनगणना से जनता की निजता का उल्लंघन होता है।