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भागलपुर में लव स्कूल खोलेंगे मटुकनाथ चौधरी, छात्रों को देंगे प्रेम की दीक्षा, जानें इसके बारे में...

By एस पी सिन्हा | Updated: February 22, 2021 20:29 IST

प्रोफेसर पद से रिटायर होने के बाद मटुकनाथ भागलपुर जिले के पैतृक गांव जयरामपुर में रह रहे हैं। प्रेम के बारे में छात्रों को पढ़ाया जाएगा। 

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ठळक मुद्देबिहार के साथ-साथ देश और विदेश के छात्र-छात्राएं प्रेम की पढ़ाई-पढ़ सकेंगे। मटुकनाथ हंसते हुए कहते हैं कि विश्व में एक मात्र लवगुरु ओशो हैं। दुनिया का एकमात्र और सबसे बडे़ लव गुरु ओशो हैं और मैंने उनसे ही प्रेम का पाठ सीखा है।

पटनाः जूली के साथ अपने प्रेम प्रसंग की वजह से बिहार सहित पूरे देश में लवगुरु के नाम से मशहूर प्रोफेसर मटुकनाथ चौधरी अब ओशो के नाम पर अप्रैल में अपने गांव में लव विद्यालय खोलने जा रहे हैं.

यह विद्यालय भागलपुर जिले के उनके पैतृक गांव जयरामपुर में होगा। मटुकनाथ ने कहा है कि इस स्कूल का नाम ओशो इंटरनेशनल स्कूल होगा। उन्होंने इस साल अप्रैल में स्कूल के शुरू हो जाने की उम्मीद जताई है. अपनी प्रेमिका जूली से दूर हुए लवगुरु मटुकनाथ अब अपने पैतृक गांव जयरामपुर में रहते हैं।

देश और विदेश के छात्र-छात्राएं प्रेम की पढ़ाई-पढ़ सकेंगे

अप्रैल से शुरू होने वाले इस विद्यालय में बिहार के साथ-साथ देश और विदेश के छात्र-छात्राएं प्रेम की पढ़ाई-पढ़ सकेंगे। ओशो के नाम पर विद्यालय खोले जाने के सवाल पर मटुकनाथ हंसते हुए कहते हैं कि विश्व में एक मात्र लवगुरु ओशो हैं। उन्हीं से मैं भी प्रेम का ज्ञान प्राप्त करता हूं, मैं उनके सामने कुछ भी नही हूं, लेकिन जब दुनिया मुझे भी लवगुरु कहती है तो कुछ तो आधार होगा। लेकिन मैं ओशो जैसा लवगुरु नहीं हो सकता हूं, शिष्य जरूर हो सकता हूं, इसलिए ओशो के नाम पर विद्यालय खोल रहा हूं।

दुनिया का एकमात्र और सबसे बडे़ लव गुरु ओशो हैं

उन्होंने कहा कि दुनिया का एकमात्र और सबसे बडे़ लव गुरु ओशो हैं और मैंने उनसे ही प्रेम का पाठ सीखा है। उनकी तुलना में मैं कुछ भी नहीं हूं। फिर भी, लोग मुझे लव गुरु के रूप में पहचानते हैं। मटुकनाथ ने आगे कहा कि मैं उनके समान लव गुरु नहीं हो सकता, लेकिन हां मैं निश्चित रूप से उनका छात्र हूं।

जूली अब उनका साथ छोड़ सात समुंदर पार त्रिनिदाद में बस गई हैं

इसलिए, मैंने उनके नाम (ओशो) पर एक स्कूल खोलने का फैसला किया है। इस विद्यालय में जूली के भी रखे जाने के सवाल पर उन्होंने कहा कि अब जूली की आने की संभावना नहीं के बराबर है क्योंकि जूली अब उनका साथ छोड़ सात समुंदर पार त्रिनिदाद में बस गई हैं। उन्होंने कहा कि जूली एक आश्रम में सन्यासी की भांति रहती हैं। कभी कभार उनसे फोन पर बातचीत हो जाती है।

पिछले साल उन्होंने मुझे बुलाया था, लेकिन अब वो भारत आना नहीं चाहती। उदासी वाली स्थिती में मटुकनाथ ने कहा कि जूली की तबियत अब ठीक नहीं है, अब वो दुनिया से पूरी तरह से दूर हो गई हैं। खुद को अकेला कर एकाकी जीवन जी रही हैं।उनकी प्रेमिका जूली की ऐसी हालत क्यों हो गई? जूली से मोबाइल पर संपर्क जरूर रहता है, हम एक-दूसरे का हालचाल पूछते रहते हैं।

साल 2020 में वह अपनी जूली को लाने सात समुंदर पार पहुंच गए थे

यह पूछे जाने पर जूली से दूर रहने पर उन्हें क्या पीड़ा होती है? इस पर उन्होंने कहा कि कोई पीड़ा नहीं होती है। मैंने खुद को समझा लिया है और अब विद्यालय में खुद को पूरी तरह से झोंक दिया है। मटुकनाथ ने कहा कि साल 2020 में वह अपनी जूली को लाने सात समुंदर पार पहुंच गए थे, उस समय जूली के एक संदेश ने उन्हें त्रिनिदाद एंड टोबैगो के सेंटगस्टीन तक पहुंचा दिया।

लवगुरु ने कहा कि गृहस्थ से होकर ही संन्यास तक का रास्ता जाता है। इसके विपरीत जूली बिना गृहस्थ आश्रम जिए संन्यास की ओर चल पड़ीं। उनके स्वास्थ्य खराब होने की यह सबसे बड़ी वजह रहीं। जूली फिर से गृहस्थ आश्रम में जीवन जीना चाहती हैं और इस वजह से उन्होंने पटना वापस लाने का संदेश भेजा था।

जूली अब चल-फिर रही हैं

जूली को उनके हाल पर छोड़ने की खबरों का खंडन करते हुए प्रो. मटुकनाथ ने कहा कि उनके प्रति शत्रु भाव रखने वाले लोगों ने ऐसा प्रचारित करने की कोशिश की. लेकिन जूली को वापस लाने पर उनका जवाब उन्हें मिल जाएगा. वे अपने शुभचिंतकों को बताना चाहते हैं कि जूली अब चल-फिर रही हैं. खाना-पीना सामान्य हो चुका है और जल्द ही पटना में रहकर स्वास्थ्य लाभ करेंगी।

लवगुरु ने बताया कि जूली के भीतर वैराग्य का भाव 2014 से ही दिखने लगा था। वे भजनों पर नृत्य करती थीं और चिंतन-मनन में लीन रहती थीं। वर्ष 2016 तक वे आध्यात्मिक वातावरण में डूबने के लिए पटना से कभी-कभार वृंदावन, होशियारपुर व बाकी धर्मस्थलों पर जाया करती थीं।

प्रो. मटुकनाथ ने बताया कि इस बीच वे फोन के जरिए संपर्क में भी रहीं. लेकिन अचानक जूली का फोन आना बंद हो गया। बाद में उन्हें जानकारी मिली कि वे अस्वस्थ हालत में त्रिनिदाद एंड टोबैगो पहुंच गई हैं। वे किसी को जीवित बुद्ध मानने लगी थीं और उनका अनुसरण करते हुए यहां इस हालत तक पहुंच गईं।

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