पटना: बिहार विधानसभा चुनाव में महागठबंधन के द्वारा वीआईपी प्रमुख मुकेश सहनी को उपमुख्यमंत्री का चेहरा बनाए जाने के फैसले के बाद सियासत में नया बवंडर उठ खड़ा हुआ है। इसको लेकर तेजस्वी यादव सोशल मीडिया पर ट्रोलिंग से परेशान हो गए हैं। दरअसल, एनडीए ने महागठबंधन पर सवाल उठाते हुए कहा कि महज 2 प्रतिशत आबादी वाले समाज से उपमुख्यमंत्री बनाना तुष्टिकरण की राजनीति है। वहीं, 18 प्रतिशत मुस्लिम आबादी वाले समाज को दरकिनार करने की बात कहकर भाजपा और चिराग पासवान ने महागठबंधन को घेरने की कोशिश की।
वहीं, सोशल मीडिया पर ट्रोल होने और लगाए जा रहे आरोपों को लेकर तेजस्वी यादव ने तीखा पलटवार किया है। उन्होंने कहा कि भाजपा को अब अति पिछड़ों और मुसलमानों दोनों से परेशानी होने लगी है। जब हमने एक अति पिछड़े समाज के बेटे को उपमुख्यमंत्री का चेहरा बनाया, तो भाजपा के लोग हमें ट्रोल करने लगे हैं। भाजपा के लोग अति पिछड़ा समाज से नफरत करने लगे हैं। ये वही पार्टी है जो वोट के समय सामाजिक न्याय की बात करती है, लेकिन असली प्रतिनिधित्व मिलने पर घबरा जाती है।
तेजस्वी यादव ने भाजपा के नेताओं की ओर से उठाए जा रहे सवालों पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि जिनको प्रधानमंत्री कभी पाकिस्तान भेजने की बात करते थे, अब उन्हें भाजपा वाले उपमुख्यमंत्री बनाने की बात करने लगे हैं। उनकी यह इच्छा भी हम लोग पूरा करेंगे। बता दें कि चिराग पासवान ने सवाल उठाया कि 2 फीसद जनसंख्या वाले मुकेश सहनी को उपमुख्यमंत्री घोषित किया गया। जबकि 18 प्रतिशत आबादी वाले मुस्लिम समाज को दरकिनार कर दिया गया।
महागठबंधन मुसलमानों को बस वोट बैंक के रूप में उपयोग करती है। चिराग पासवान ने अपने पिता की राजनीतिक जीवन को याद करते हुए लिखा कि 2005 में मेरे नेता, मेरे पिता रामविलास पासवान जी ने मुस्लिम मुख्यमंत्री बनाने के लिए अपनी पार्टी तक कुर्बान कर दी थी, लेकिन तब भी मुसलमानों ने उनका साथ नहीं दिया। आज 2025 में भी राजद न मुस्लिम मुख्यमंत्री देने को तैयार है, न उपमुख्यमंत्री! अगर आप वोट बैंक बनकर रहेंगे, तो सम्मान और भागीदारी कैसे मिलेगी?”
उल्लेखनीय है कि बिहार में मुसलमानों की जनसंख्या राज्य में करीब 17.7 फीसदी है, यानी लगभग हर पांचवां वोटर मुस्लिम है, लेकिन इस बार न भाजपा, न जदयू और न ही राजद या कांग्रेस, किसी ने भी मुसलमानों को पहले जैसा प्रतिनिधित्व नहीं दिया। सूबे की कुल 243 विधानसभा सीटों में मुस्लिम उम्मीदवारों की संख्या इस बार 60 के करीब है। लेकिन दिलचस्प ये है कि गठबंधन में शामिल बड़े दलों ने ही सबसे कम टिकट दिए हैं।
नीतीश कुमार की जदयू ने 101 उम्मीदवारों की लिस्ट में सिर्फ 4 मुस्लिम नाम शामिल किए हैं, जिनमें दो महिलाएं हैं। वहीं भाजपा, जो 101 सीटों पर चुनाव लड़ रही है, उसने एक भी मुस्लिम उम्मीदवार को टिकट नहीं दिया। हम और रालोपा ने एक भी मुस्लिम उम्मीदवार को टिकट नहीं दिया है। चिराग पासवान ने भी मुस्लिम उम्मीदवार को टिकट नहीं दिया।
जदयू ने 2020 में 10 मुस्लिम प्रत्याशी उतारे थे, मगर एक भी सीट जीत नहीं पाई थी। शायद यही कारण है कि 2025 में सीटें आधी करने का फैसला लिया गया। वहीं, राजद की 143 उम्मीदवारों की सूची में सिर्फ 18 मुस्लिम नाम हैं। 2020 में यह आंकड़ा भी यही था, मगर तब पार्टी ने 8 मुस्लिम उम्मीदवार जिताने में सफलता पाई थी।
कांग्रेस ने अपने 60 प्रत्याशियों में 10 मुस्लिमों को टिकट देकर थोड़ा संतुलन साधने की कोशिश की है, भाकपा-माले ने 2 मुस्लिम उम्मीदवार उतारे हैं, जबकि मुकेश सहनी की वीआईपी ने भी मुस्लिम उम्मीदवार को टिकट नहीं दिया है।