पटनाः बिहार विधानसभा चुनाव में मिली करारी हार के बाद महागठबंधन के घटक दलों के बीच कलह की आग भड़क उठी है। अब महागठबंधन के नेताओं में मतभेद खुलकर सामने आ गए हैं। दिल्ली के इंदिरा भवन में कांग्रेस के प्रत्याशियों के साथ हुई पार्टी आलाकमान की बैठक में कांग्रेस प्रत्याशियों ने आरोप लगाया कि इस बार चुनाव में जो पार्टी की हालात हुई है, वह राजद के साथ गठबंधन की वजह से हुई है। अगर पार्टी अकेले चुनाव लड़ती तो इससे बेहतर रिजल्ट आता। वहीं, कांग्रेस नेताओं के इस आरोप पर राजद के प्रदेश अध्यक्ष मंगनी लाल मंडल ने जोरदार पलटवार करते हुए कहा है कि इस चुनाव में कांग्रेस को जीतनी भी सीटें मिली हैं वह राजद की देन है। अगर राजद साथ नहीं होती तो उनका खाता भी नहीं खुलता।
शनिवार को मंगनी लाल मंडल ने कहा कि कांग्रेस चुनाव में मिली हार की समीक्षा किया है, सभी पार्टी समीक्षा कर रही हैं। राजद भी हार की समीक्षा कर रही है और भी गठबंधन की पार्टियां समीक्षा कर रही है। उन्होंने कहा कि कांग्रेस का यह विश्लेषण है, उनकी अलग होने की मर्जी है तो होंगे, गठबंधन में किसी को रोक कर नहीं रखा जा सकता है।
मंगनी लाल मंडल ने कहा कि उनकी (कांग्रेस) मर्जी है, अलग चलेंगे तो अच्छी बात है। जनाधार राजद का बिहार में है। जनाधार के बदौलत गठबंधन में कोई लोग हैं, किन को रहना है, नहीं रहना है वह तय करेंगे। असली कारण चुनाव में हर कैसे हुई उसका विश्लेषण लोगों ने किया होगा। अगर गठबंधन में रहने के कारण हार हुई है और अलग रहना चाहते हैं तो अच्छी बात है।
मंडल ने जोर देकर कहा कि बिहार में राजद का मजबूत जनाधार है जो सहयोगी दलों को फायदा पहुंचाता है। उन्होंने 2020 के चुनाव का जिक्र करते हुए तंज कसा और कहा कि 2020 में कांग्रेस ने 72 सीटें मांगी थीं, लेकिन 19 पर जीत हुई वह भी राजद की बदौलत। उधर, मंगनी लाल मंडल के इस बयान ने बिहार की विपक्षी राजनीति में हलचल पैदा कर दी है।
उन्होंने यह इशारा कर दिया कि अगर कांग्रेस महागठबंधन से किनारा करती है, तो राजद को इससे कोई खास आपत्ति नहीं होगी, क्योंकि पार्टी खुद को बिहार के जन-आधार के दम पर मजबूत मानती है। मंगनी लाल मंडल के बयान पर कांग्रेस ने तुरंत पलटवार किया। प्रदेश कांग्रेस प्रवक्ता असितनाथ तिवारी ने कहा कि अगर कांग्रेस की कोई ताकत नहीं है तो राजद गठबंधन में साथ क्यों है?
तिवारी ने राजद के दावों को खारिज करते हुए कहा कि हार की जिम्मेदारी सबकी है, न कि सिर्फ एक दल की। वहीं, कांग्रेस के एक अन्य प्रवक्ता ज्ञान रंजन ने मंडल को निशाने पर लेते हुए कहा कि मंडल जी को कुछ कहना है तो महागठबंधन की ऑर्डिनेशन कमेटी के अध्यक्ष तेजस्वी यादव से कहें. मीडिया में बयान देने का क्या मतलब है?
इस बीच, सत्ताधारी भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता सैयद शाहनवाज हुसैन ने तंज कसते हुए कहा कि दोनों दल चुनाव से पहले भी आपस में लड़ रहे थे, चुनाव बाद भी लड़ रहे हैं। भाजपा इसे विपक्ष की कमजोरी के रूप में पेश कर रही है। जबकि सियासी जानकार मानते हैं कि यह तकरार एनडीए के लिए फायदेमंद साबित हो सकती है।
बिहार की सियासत में अब सवाल उठ रहा है कि क्या यह छोटी-मोटी नोकझोंक है या गठबंधन टूटने का संकेत? उल्लेखनीय है कि बिहार विधानसभा चुनाव में 61 सीटों पर लड़ कर महज 6 सीटें जीतने के बाद कांग्रेस आलाकमान ने अपने सभी प्रत्याशियों को समीक्षा बैठक के लिए दिल्ली बुलाया था। जहां कांग्रेस के अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे और नेता राहुल गांधी ने 10-10 नेताओं के ग्रुप से मुलाकात किया।
उनसे फीडबैक लिया। इस दौरान सभी नेताओं ने एक स्वर में कहा कि अगर पार्टी चुनाव में अकेले उतरती तो नतीजे कुछ और होते क्योंकि राजद के साथ गठबंधन होने के कारण लोगों ने उन्हें वोट नहीं किया क्योंकि लोगों को लगता था कि अगर राजद सत्ता में वापस आती है तो बिहार में फिर से जंगलराज की वापसी हो सकती है।
वहीं, दूसरी तरफ पटना के राजद कार्यालय में भी समीक्षा बैठकों का दौर जारी है। राजद के कई वरिष्ठ नेता प्रदेश अध्यक्ष मंगनी लाल मंडल की मौजूदगी में राजद प्रत्याशियों के साथ बैठक करके हार की वजहों को तलाश रहे हैं कि आखिर किस वजह से पार्टी को चुनाव में इतनी बुरी हार का सामना करना पड़ा है?
सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक, कांग्रेस और राजद दोनों ही अपनी हार के लिए एक दूसरे को जिम्मेदार मान रहे हैं। राजद का तबका मानता है कि कांग्रेस के ज्यादा सीटों पर चुनाव लड़ने और उनके मतदाताओं का वोट शिफ्ट न होने के कारण राजद को इतनी बुरी हार मिली है।
वहीं, कांग्रेस का खेमा मानता है कि राजद के 1990 से लेकर 2005 तक के शासनकाल के दौरान जिस तरह से अराजकता बिहार में था उस वजह से लोग उनके गठबंधन को वोट नहीं करते हैं। ऐसे में दोनों पार्टियां अब नया विकल्प तलाश रही हैं।