वीआईपी प्रमुख मुकेश सहनी ने बढ़ा दी है महागठबंधन नेताओं की धड़कन, एनडीए के साथ जाने की हैं अटकलें
By एस पी सिन्हा | Updated: July 31, 2025 14:45 IST2025-07-31T14:42:59+5:302025-07-31T14:45:09+5:30
Bihar Elections 2025: 30 जुलाई को तेजस्वी यादव की ओर से महागठबंधन की बैठक बुलाई थी।

वीआईपी प्रमुख मुकेश सहनी ने बढ़ा दी है महागठबंधन नेताओं की धड़कन, एनडीए के साथ जाने की हैं अटकलें
Bihar Elections 2025: विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी) प्रमुख मुकेश सहनी ने यह कहकर सियासी गलियारे में हलचल मचा दी है कि उन्हें दुल्हा बनना है,बाराती नही। ऐसे में विधानसभा चुनाव से पहले मुकेश सहनी की सियासी "नाव" एक बार फिर से हिलोरे मार रही है। नाव उनका चुनाव सिन्ह भी है। सहनी के सियासी कदम इन दिनों को समझ नहीं आ रहे हैं। उनके बयान ने सियासी पारे को चढ़ा दिया है और सूबे की सियासी गलियारों में सहनी के भविष्य को लेकर अटकलबाजी शुरू हो गई है। आगामी विधानसभा चुनाव और महागठबंधन में अपनी भूमिका को लेकर उन्होंने मीडिया से खास बातचीत में कई बड़े दावे किए हैं। सहनी ने खुद को मुख्यमंत्री पद के ‘दूसरे दावेदार’ के तौर पर प्रस्तुत करते हुए यह भी कहा कि इस बार वे “दूल्हा बनना चाहते हैं, बाराती नहीं।”
ऐसे में यह कयास लगाये जाने लगे हैं कि क्या सहनी एक बार फिर से महागठबंधन को छोड़कर एनडीए में वापसी करने जा रहे हैं? दरअसल, महागठबंधन में मुकेश सहनी के तेवर अब धीरे-धीरे बगावती होते जा रहे हैं। सहनी ने राजद तेजस्वी यादव के आगे पहले 60 सीटों की डिमांड रखी और अब महागठबंधन की बैठक से दूरी बना ली है। 30 जुलाई को तेजस्वी यादव की ओर से महागठबंधन की बैठक बुलाई थी।
इसमें आगामी चुनाव की रणनीति तय की जानी थी, इतनी अहम बैठक को छोड़कर मुकेश सहनी दिल्ली चले गए। हालांकि उन्होंने इस बैठक में पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष को भेजा था, लेकिन सभी का ध्यान मुकेश सहनी की गैरमौजूदगी पर ज्यादा गया। इसी बीच केंद्रीय मंत्री जीतन राम मांझी के बेटे और हम अध्यक्ष संतोष मांझी ने सहनी को एनडीए में आने का ऑफर देकर सियासी पारे को और चढ़ा दिया है।
अब सवाल यह है कि मुकेश सहनी को किस गठबंधन में ज्यादा फायदा मिल सकता है। इस बीच सहनी ने महागठबंधन के सीट बंटवारे को लेकर स्पष्ट कहा कि उनकी पार्टी 60 सीटों से कम पर समझौता नहीं करेगी। उन्होंने कहा कि दो-चार सीट ऊपर-नीचे हो सकता है, लेकिन 50 या 45 तक आना संभव नहीं। गठबंधन के मंच पर सब तय होगा, लेकिन हमारा हिस्सा कम नहीं होगा।
सहनी का मानना है कि 243 सीटों में सभी को संतुलित ढंग से हिस्सेदारी दी जा सकती है। सहनी ने खुद को अति पिछड़ा वर्ग (ईबीसी) का बड़ा चेहरा बताते हुए दावा किया कि राज्य की 37 फीसदी आबादी इसी वर्ग की है, जिसे लंबे समय से नेतृत्व नहीं मिला। निषाद समाज (12 फीसदी आबादी) की राजनीतिक आवाज बनने का दावा करते हुए उन्होंने कहा कि अगर हम सरकार बनाने में सहयोग कर रहे हैं, तो उप-मुख्यमंत्री पद पर दावा जायज है।
उन्होंने अपने मंत्री रहते अनुभव को साझा करते हुए कहा कि मंत्री रहकर बहुत कुछ नहीं किया जा सकता, लेकिन अगर पहले से तय हो कि कौन कहां होगा, तो जनता को स्पष्ट संदेश जाएगा। हालांकि जानकारों का मानना है कि एनडीए में सहनी को 10 से ज्यादा सीटें नहीं मिल सकती हैं और उपमुख्यमंत्री पद का तो सवाल ही नहीं उठता है। ऐसे में सवाल उठता है कि सहनी फिर घाटे का सौदा क्यों करेंगे? इसका जवाब "गारंटी" माना जा रहा है।
सियासी जानकारों का कहना है कि महागठबंधन के साथ मुकेश सहनी को जीत का भरोसा नहीं है, जबकि एनडीए के साथ वह कामयाबी का स्वाद चख चुके हैं। पिछला विधानसभा चुनाव उन्होंने एनडीए में रहकर लड़ा था और 4 विधायकों के साथ खुद मंत्री बने थे।
वहीं लोकसभा चुनाव में महागठबंधन के साथ मैदान में उतरे और कुछ हासिल नहीं कर सके। इसी तरह का एक उदाहरण यूपी में भी देखने को मिला था। लोकसभा चुनाव में रालोद अध्यक्ष जयंत चौधरी को अखिलेश यादव ने 12 सीटें ऑफर की थीं, लेकिन जयंत ने सिर्फ 3 सीटों की डील पर भाजपा के साथ जाने का फैसला लिया था। आज वह केंद्र सरकार में मंत्री हैं, जबकि अखिलेश यादव सिर्फ सांसद हैं।