पटना: बिहार विधानसभा चुनाव में 61 सीटों पर चुनाव लड़ने वाली कांग्रेस को मात्र 6 सीटों पर ही संतोष करना पड़ा है। चुनाव के दौरान के दौरान कांग्रेस के राज्य इकाई में जिस तरह से नाराजगी और विद्रोह की स्थिति बनी थी, उस दौरान अगर कांग्रेस का राष्ट्रीय नेतृत्व संकट मोचक के तौर पर अपने महासचिव अविनाश पांडेय को संकट मोचक बनाकर नहीं भेजती तो शायद यह 6 सीट पाना भी कांग्रेस के लिए मुश्किल ही था। लेकिन अविनाश पांडेय ने कांग्रेस नेताओं को जगा-जगा कर चुनाव मैदान में झोंक दिया। इसी का परिणाम कहा जा सकता है कि कांग्रेस 6 सीट जीतने में सफल हो पाई।
इस चुनाव परिणाम ने यह साफ कर दिया कि कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी द्वारा निकाली गई ‘वोटर अधिकार यात्रा’ राजनीतिक प्रभाव पैदा करने में पूरी तरह विफल रही। यह यात्रा जिन जिलों से होकर गुजरी, उन इलाकों में भी महागठबंधन का प्रदर्शन उतना ही कमजोर रहा जितना राज्य के अन्य हिस्सों में। 17 अगस्त को सासाराम से शुरू हुई यह यात्रा मतदाता सूची में कथित गड़बड़ी और विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) के विरोध में निकाली गई थी। दावा किया गया था कि यह यात्रा लोकतंत्र की रक्षा का व्यापक अभियान बनेगी, मगर परिणामों ने इस दावे को सियासी भ्रम साबित कर दिया।
सासाराम में जहां से यात्रा की शुरुआत हुई, वहां महागठबंधन को करारी हार मिली। राजद के उम्मीदवार सतेंद्र शाह को राष्ट्रीय लोक मोर्चा की स्नेहलता ने मात दी। इसके बाद यात्रा का दूसरा बड़ा पड़ाव औरंगाबाद था। यहां भी कांग्रेस और राजद दोनों को निराशा हाथ लगी। कुटुंबा सीट पर तो कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष राजेश कुमार राम तक चुनाव हार गए।
गयाजी शहर में राहुल गांधी की उपस्थिति वाली सभा को कांग्रेस ने टर्निंग पॉइंट बताया था, लेकिन नतीजों में भाजपा के वरिष्ठ नेता व मंत्री प्रेम कुमार ने फिर से विजय हासिल कर यह दावा खारिज कर दिया। यात्रा में सीमांचल और अन्य इलाकों में भारी भीड़ जुटी थी, मगर यह भीड़ वोटों में तब्दील नहीं हो सकी।
एआईएमआईएम का उभार और राजद का पारंपरिक वोट बैंक खिसकने से महागठबंधन की स्थिति और बिगड़ गई। वहीं विधानसभा चुनाव प्रचार के दौरान जिस सीट के पोखर में राहुल गांधी ने मछली पकड़ी थी। वहां भी उनकी पार्टी के उम्मीदवार को हार का मुंह देखना पड़ा। बता दें कि चुनाव प्रचार के दौरान राहुल गांधी पार्टी उम्मीदवार के पक्ष में बेगूसराय में चुनाव प्रचार करने गए थे।
बेगूसराय विधानसभा सीट से कांग्रेस ने अमिता भूषण को चुनाव मैदान में उतारा था। बेगूसराय में चुनाव प्रचार के दौरान राहुल गांधी ने तालाब में छलांग लगाई थी। वह मछुआरों के साथ मछली पकड़ने तालाब में उतरे थे। राहुल गांधी के साथ वीआईपी प्रमुख और महागठबंधन के उपमुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार मुकेश सहनी, कांग्रेस नेता कन्हैया कुमार और अन्य नेता मौजूद थे।
बेगूसराय में चुनाव प्रचार के दौरान राहुल गांधी का पोखर में उतरने के दौरान का वीडियो खूब वायरल भी हुआ था। बेशक राहुल गांधी ने मछली पकड़ने की कोशिश की थी, लेकिन बेगूसराय विधानसभा सीट के चुनाव नतीजों में कांग्रेस को मछली हाथ नहीं लगी है। इस सीट से कांग्रेस उम्मीदवार अमिता भूषण 30632 मतों से चुनाव हार गई हैं।
बेगूसराय विधानसभा सीट पर कांग्रेस उम्मीदवार अमिता भूषण दूसरे स्थान पर रही हैं जबकि भाजपा के कुंदन कुमार ने 119506 वोट हासिल कर के जीत दर्ज की है। उल्लेखनीय है कि बिहार की राजनीति में कांग्रेस का लगातार घटता हुआ प्रभाव अब किसी आकस्मिक पराजय की कहानी नहीं, बल्कि लंबे समय से जारी संरचनात्मक विफलताओं का परिणाम बन चुका है।
कभी आधी सदी तक सत्ता पर काबिज रहने वाली यह राष्ट्रीय पार्टी आज इस मुकाम पर खड़ी है, जहां कई विधानसभा क्षेत्रों में मुख्य विपक्ष की भूमिका निभाने की बात कौन कहे, अब उसका झंडा उठाने वाला कार्यकर्ता भी ढूंढना मुश्किल हो गया है। राहुल गांधी के अथक प्रयास के बाद भी इस विधानसभा चुनाव में दो अंकों की भी सफलता नहीं मिली।
कांग्रेस की गिरावट का सूत्रपात 1990 के दशक में शुरू हुआ। इसके बाद वह राजद के सहारे चलने वाली कमजोर सहयोगी पार्टी के रूप में सीमित हो गई। 2005 में जब एनडीए सत्ता में आया तब कांग्रेस के भीतर यह स्वीकार्यता लगभग स्थापित हो गई कि बिहार में स्वतंत्र चुनावी लड़ाई की उसकी क्षमता खत्म हो चुकी है।
पार्टी की रणनीति गठबंधन के भरोसे टिकट हासिल करने और जीतने की बनकर रह गई। यह रणनीति भी उसे मजबूती की ओर नहीं ले गई। 2015 का विधानसभा चुनाव कांग्रेस के लिए अपवाद साबित हुआ। महागठबंधन के तहत नीतीश कुमार और लालू प्रसाद की जोड़ी ने उसे राजनीतिक ऑक्सीजन दिया। 47 सीटों पर लड़कर 27 सीट जीतना कांग्रेस के लिए दो दशकों की सबसे बड़ी सफलता थी।
यह सफलता पार्टी के अपने संगठन की नहीं, बल्कि गठबंधन की ताकत का प्रतिफल थी। 2020 में 71 सीटें मिलने के बावजूद कांग्रेस केवल 19 सीटें ही जीत सकी। यह उसकी कमजोर जमीनी पकड़ की सबसे स्पष्ट तस्वीर थी। ताजा चुनाव ने पार्टी की स्थिति को और भी दयनीय बना दिया है।
हाल यह है कि कई क्षेत्रों में कांग्रेस को मिले मत नोटा से भी कम रहे। ऐसे में यह दर्शाता है कि मतदाताओं के मन में पार्टी अब ‘विकल्प’ के रूप में भी मौजूद नहीं है। स्थानीय स्तर पर नेतृत्व का अभाव, निष्क्रिय संगठन और लगातार घटते जनाधार ने कांग्रेस को बिहार में लगभग अप्रासंगिक बना दिया है।
सियासत के जानकारों का मानना है कि कांग्रेस के लिए अब चुनौती सीटें बढ़ाने की नहीं, बल्कि अपनी प्रासंगिकता बनाये रखने की है। इसके लिए उसे तत्काल संगठनात्मक पुनर्निर्माण, सक्रिय कैडर तैयार करने और नये सामाजिक समीकरणों में अपनी भूमिका तय करने की जरूरत है।
वहीं, चुनाव परिणाम पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव अविनाश पांडेय ने कहा कि यह चुनाव परिणाम पूर्व निर्धारित था। यह मात्र औपचारिकता थी। जिसका परिणाम सामने है। उन्होंने इस चुनाव परिणाम के लिए चुनाव आयोग को कटघरे में खड़ा करते हुए कहा कि चुनाव आयोग की जो विकृतियां है, उसमें सुधार की आवश्यकता है, अन्यथा लोगों का विश्वास लोकतंत्र से उठ जायेगा।
उन्होंने कहा कि लोकतंत्र को मजबूत करने लिए ठोस कदम उठाने होंगे ताकि लोगों का विश्वास कायम रहे। अविनाश पांडेय ने कहा कि अब हमारा यह प्रयास होगा कि संगठन को और मजबूत किया जाये। इसके लिए हम लोग जुट जायेंगे।