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Bihar Congress Rajesh Kumar: खोई जमीन पाने की तलाश में जुटी कांग्रेस?, विधानसभा चुनाव में राजद के साथ सीट बंटवारा, राजेश कुमार के सामने अग्निपरीक्षा

By एस पी सिन्हा | Updated: March 19, 2025 18:16 IST

Bihar Congress Rajesh Kumar: आलाकमान बिहार विधानसभा चुनाव के पहले पुराने नेताओं के जगह पर नई पीढ़ी के उर्जावान नेताओं को प्रोमोट कर रही है।

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ठळक मुद्देराजद के साथ सीट बंटवारे पर भी सामंजस्य बिठाना होगा।जमीनी स्तर पर खड़ा करना, एक बड़ी चुनौती होगी।कांग्रेस यदि मजबूत होती है, तो निःसंदेह चुनावी लाभ भी मिलेगा।

Bihar Congress Rajesh Kumar: कांग्रेस ने बिहार में प्रदेश अध्यक्ष की कमान राजेश कुमार के हाथों में सौंप कर सियासी हलचल मचा दी है। लेकिन नए प्रदेश अध्यक्ष के सामने पिछले कई सालों से अपनी खोई जमीन की तलाश की चुनौती होगी। सियासी गलियारे मे चल रही चर्चाओं के अनुसार राजेश कुमार को ऐसे समय में बिहारकांग्रेस की जिम्मेवारी है, जब कुछ ही महीने बाद राज्य में विधानसभा का चुनाव होना है। बेहद कम समय में न केवल उन्हें पार्टी और संगठन को मजबूती देने पर काम करना होगा, बल्कि राजद के साथ सीट बंटवारे पर भी सामंजस्य बिठाना होगा।

पार्टी को जमीनी स्तर पर खड़ा करना, एक बड़ी चुनौती होगी। बताया जा रहा है कि राजद इस बार किसी हाल में कांग्रेस को 70 सीट देने के पक्ष में नहीं है। ऐसे में लालू यादव और तेजस्वी यादव से तालमेल बनाना उनके लिए बड़ी चुनौती होगी। पार्टी को और अधिक़ मजबूती देने के लिए जमीनी पकड़ वाले सभी जाति-वर्ग के नेताओं खासकर युवाओं को प्रदेश संगठन में महत्वपूर्ण जिम्मेवारी सौंपना भी एक बडी चुनौती होगी। कारण कि पार्टी में व्याप्त गुटबाजी पर लगाम लगाना आसान नही दिखता। हालांकि कांग्रेस यदि मजबूत होती है, तो निःसंदेह इसका चुनावी लाभ भी मिलेगा।

आलाकमान बिहार विधानसभा चुनाव के पहले पुराने नेताओं के जगह पर नई पीढ़ी के उर्जावान नेताओं को प्रोमोट कर रही है। इसकी पहली झलक युवा तुर्क कन्हैया कुमार को प्रोमोट करने के लिए शुरु की गई रोजगार दो यात्रा में दिखी और यात्रा के शुरू होने के चंद दिन बाद ही पार्टी ने प्रदेश अध्यक्ष की कमान राजेश कुमार के हाथों में सौंप दी।

बता दें कि कांग्रेस का एक बड़ा वर्ग भी बिहार में गठबंधन से अलग रहकर स्वतंत्र रूप से चुनाव लड़ने का पक्षधर रहा है। इस वर्ग का यह मानना रहा है कि गठबंधन में रहने से पार्टी को सीटों के मामले में लगातार समझौता करना पड़ा है। इससे पार्टी को नुकसान भी हुआ है। इनका मानना है कि पार्टी यदि स्वतंत्र होकर चुनाव लड़ते है तो नये लोगों को चुनाव लड़ने का मौका मिलेगी।

पार्टी का संगठन मजबूत होगा और गठबंधन की मजबूरी खत्म होगी। इस स्थिति में पार्टी बिहार में सत्ता में आने लायक स्थिति में भी आ सकती है। कांग्रेस के एक नेता ने नाम नहीं प्रकाशित करने की शर्त पर कहा कि बिहार में कांग्रेस को पुरानी पटरी पर लाने के लिए बड़े परिवर्तन की आवश्यकता है, केवल प्रभारी और प्रदेश अध्यक्ष बदलने से कुछ नहीं होगा।

पार्टी के कार्यकर्ता भी हताशा और निराशा में हैं। कांग्रेस की स्थिति यह है कि निवर्तमान प्रदेश अध्यक्ष अखिलेश सिंह अपने कार्यकाल में प्रदेश की कमिटी की घोषणा नहीं कर पाए। ऐसे में नए कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष को बिहार में कई मोर्चों पर लड़ाई लड़नी होगी। बिहार में कांग्रेस ने हाल ही में कई ऐसे कदम उठाए हैं।

जिनसे यह स्पष्ट संकेत मिलता है कि वह राजद के नेतृत्व यानी लालू यादव और तेजस्वी यादव को सियासी तौर पर नियंत्रण में रखने की रणनीति अपना रही है, जिससे वह पार्टी को हल्के में लेने की भूल न करें।बता दें कि वर्ष 2015 के विधानसभा चुनाव में पार्टी ने 27 सीटें जीतकर अपनी मजबूती का दावा भी पेश किया था, लेकिन पांच साल बाद हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस मात्र 19 सीटें ही जीत सकी।

पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस महागठबंधन में शामिल होकर राज्य के 243 विधानसभा सीटों में से 70 सीटों पर चुनाव लड़ी और उसके मात्र 19 प्रत्याशी ही विजयी हो सके। कांग्रेस के नेता एक बार फिर 70 सीटों की मांग कर रहे हैं। ऐसे में अगर राजद कांग्रेस की इच्छा मुताबिक सीटों की मांग को सहजता से स्वीकार नहीं करती है।

तो वह अपने दम पर चुनाव लड़ने का फैसला भी कर सकती है। दिल्ली में कांग्रेस पहले ही आम आदमी पार्टी के खिलाफ जाकर ऐसा कर चुकी है। बिहार में भी अगर गठबंधन को लेकर असहमति बनी रही, तो कांग्रेस राजद के लिए कड़ी चुनौती पेश कर सकती है।

टॅग्स :कांग्रेसबिहारमल्लिकार्जुन खड़गेराहुल गांधी
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