नई दिल्लीः बिहार में महागठबंधन में सीट बंटवारे को लेकर जारी गतिरोध के बीच कांग्रेस की केंद्रीय चुनाव समिति (सीईसी) ने बुधवार को राज्य विधानसभा चुनाव के लिए 25 सीट पर अपने उम्मीदवारों के नाम पर मुहर लगाई। हालांकि, सूत्रों का कहना है कि महागठबंधन के घटक दलों के साथ सीट बंटवारे पर सहमति बन जाने के बाद ही उम्मीदवारों की घोषणा किए जाने की संभावना है। पार्टी मुख्यालय ‘इंदिरा भवन’ में आयोजित इस बैठक में कांग्रेस संसदीय दल की प्रमुख सोनिया गांधी, पार्टी अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे और पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी डिजिटल माध्यम से जुड़े।
पार्टी के संगठन महासचिव केसी वेणुगोपाल तथा कई अन्य नेता बैठक में शामिल हुए। खड़गे अस्पताल से छुट्टी मिलने के बाद बेंगलुरु में स्वास्थ्य लाभ ले रहे हैं। उन्हें हाल ही में पेसमेकर लगाया गया था। राहुल गांधी इन दिनों दक्षिणी अमेरिका महाद्वीप के चार देशों के दौरे पर हैं। बैठक उस वक्त हुई जब उसके सहयोगी राष्ट्रीय जनता दल (राजद) और वाम दलों के साथ सीट बंटवारे पर बातचीत अंतिम दौर में है।
हालांकि, सीट की संख्या और ‘‘अपनी पसंद की सीट मिलने’’ को लेकर गतिरोध बना हुआ है। कांग्रेस अध्यक्ष खड़गे ने उम्मीद जताई कि इस मुद्दे को सुलझा लिया जाएगा। सीईसी की बैठक के बाद कांग्रेस सांसद मोहम्मद जावेद ने कहा, ‘‘कम से कम 25 सीट पर उम्मीदवारों के नामों को स्वीकृति दी गई है।’’
सूत्रों ने बताया कि जिन सीट पर विचार हुआ और उम्मीदवारों के नामों को स्वीकृति दी गई, वे ऐसी सीट हैं जो कांग्रेस के खाते में आना लगभग तय हैं। बिहार प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष राजेश कुमार राम ने कहा कि कांग्रेस कितने सीट पर चुनाव लड़ेगी, इसकी घोषणा महागठबंधन के सहयोगी दलों के साथ सहमति बनने के बाद की जाएगी।
कांग्रेस विधायक दल के नेता शकील अहमद खान ने कहा कि अभी एक दौर की बातचीत होनी है, उसके बाद सीट बंटवारे की घोषणा की जाएगी। राज्य विधानसभा चुनाव के लिए आगामी छह नवंबर और 11 नवंबर को दो चरणों में मतदान होगा तथा मतगणना 14 नवंबर को होगी।
कई मैराथन बैठकों के बाद भी टल जा रही है तारीख
बिहार विधानसभा चुनाव से पहले महागठबंधन के भीतर सीट बंटवारे को लेकर जारी खींचतान थमने का नाम नहीं ले रहा है। कांग्रेस और वाम दलों की बढ़ी हुई सीट मांगों ने राजद की चुनौती बढा दी है, जबकि वीआईपी प्रमुख मुकेश सहनी की उपमुख्यमंत्री दावेदारी ने सियासी समीकरण को और पेचीदा बना दिया है।
झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) और पारस गुट की रालोजपा की संभावित एंट्री ने इस गणित में नए वेरिएबल जोड़ दिए हैं। यह स्थिति केवल सीट बंटवारे का विवाद नहीं, बल्कि महागठबंधन के भीतर शक्ति संतुलन के पुनर्निर्धारण की प्रक्रिया भी है। सीटों के बंटवारे को लेकर बुधवार को भी हुई मैराथन बैठक बगैर किसी निष्कर्ष के समाप्त हो गई।
इस बीच विकासशील इंसान पार्टी के प्रमुख मुकेश सहनी ने दावा करते हुए कहा कि कल या परसों सीटों की घोषणा कर दी जाएगी। उन्होंने साफ किया कि महागठबंधन में 90 प्रतिशत चीजें तय हो चुकी हैं, 10 प्रतिशत यानी कुछ सीटों के उम्मीदवार को लेकर बात चल रही है। उन्होंने यह भी कहा कि महागठबंधन के कई उम्मीदवार तो क्षेत्र में पहुंचकर प्रचार में भी जुट गए हैं।
राजद, कांग्रेस या वीआईपी में सभी कुछ तय है। आधी सीटों पर सब कुछ फैसला हो चुका है। उन्होंने फिर दोहराया कि बिहार में महागठबंधन की सरकार बनेगी और तेजस्वी यादव मुख्यमंत्री बनेंगे और अति पिछड़े, मल्लाह का बेटा उपमुख्यमंत्री होगा। बता दें कि 2020 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस 70 सीटों पर लड़ी थी और उसे 19 सीटों पर जीत मिली थी।
बावजूद इसके, वह इस बार 70–75 सीटों की मांग पर अड़ी है। यह मांग उसके पिछले चुनावी प्रदर्शन की तुलना में कहीं अधिक है, लेकिन पार्टी अपनी सीट संख्या को घटाना नहीं चाहती। इसके पीछे दो प्रमुख कारण हैं। पहला पार्टी बिहार में अपनी संगठनात्मक उपस्थिति बनाए रखना चाहती है ताकि राष्ट्रीय स्तर पर इंडिया ब्लॉक में अपनी साख न घटे।
दूसरा कांग्रेस इस बार खुद को ‘निर्णायक सहयोगी’ के रूप में प्रोजेक्ट कर रही है, न कि ‘जूनियर पार्टनर’ के रूप में। वहीं, वाम दलों (भाकपा, माकपा, भाकपा-माले) को सीमित सीटों पर लड़ने के बावजूद 16 सीटों पर सफलता मिली थी, जिसमें भाकपा-माले ने 12 सीटें जीती थीं। इसी प्रदर्शन को आधार बनाकर उन्होंने इस बार 60 से अधिक सीटों की मांग रख दी है।
भाकपा महासचिव डी राजा ने 24 और दीपांकर भट्टाचार्य ने 35 सीटों की दावेदारी कर राजद की रणनीति को असंतुलित कर दिया है। वाम दलों की यह मांग केवल चुनावी सीटों की नहीं, बल्कि महागठबंधन के वैचारिक एजेंडे में हिस्सेदारी बढ़ाने का संकेत भी है। ऐसे में राजद के सामने समस्या यह है कि यदि वह कांग्रेस और वाम दलों की मांग मानती है,
तो उसके अपने हिस्से में सीटों की संख्या 120–125 से घटकर 100–105 तक सिमट सकती है। इससे न केवल उसका राजनीतिक वर्चस्व कमजोर होगा, बल्कि उम्मीदवार चयन में भी आंतरिक असंतोष बढ़ेगा। उधर, मुकेश सहनी ने सीट मांग में लचीलापन दिखाते हुए 60 से घटाकर 20 सीटों पर बात मानने का संकेत दे दिया है। लेकिन उपमुख्यमंत्री पद की दावेदारी पेश कर राजद की मुश्किलें बढ़ा दे रहे हैं।
इस तरह कांग्रेस और वाम की मांगों के बीच एक नए दबाव बिंदु के रूप में उभरा है। ऐसे में सवाल उठता है कि यदि राजद वीआईपी को उपमुख्यमंत्री पद की दावेदारी को स्वीकार कर लेता है, तो कांग्रेस की असंतुष्टि बढ़ सकती है। वहीं अगर कांग्रेस को यह पद दिया जाता है, तो सहनी नाराज हो सकते हैं। ऐसे में महागठबंधन में सीट शेयरिंग का मामला आसानी से सुलझता नजर नहीं आ रहा है।