पटना:बिहार विधानसभा ने अपने स्वर्णिम इतिहास के 100 साल पूरे कर लिए हैं. आज से ठीक 100 साल पहले 7 फरवरी 1921 को बिहार विधान सभा की पहली बैठक आयोजित हुई थी. पहले सत्र और उसके लिए अधिसूचित भवन में पहली बैठक का आयोजन किया गया था.
उसके पहले बिहार उड़ीसा विधान परिषद कहलाता था. बिहार विधानसभा मार्च, 1920 में बनकर तैयार हुआ था. इस भवन में काउंसिल की पहली बैठक सात फरवरी, 1921 को हुई थी, जिसे लार्ड सत्येन्द्र प्रसन्न सिन्हा ने गवर्नर के रूप में संबोधित करते हुए भवन का उद्घाटन किया था.
बिहार विधानसभा भवन का समृद्ध इतिहास
बिहार विधानसभा का भवन अपनी झोली में बेशुमार यादगारियां संजो रखी हैं. रोमन (इतावली) डिजाइन की खूबियों को समेटे इस भवन ने कई सरकारें, कई मुख्यमंत्री, कई विधानसभा अध्यक्ष देखे.
आजादी के बाद सत्रहवीं विधानसभा आते-आते हजारों की संख्या में नए-पुराने सदस्यों को इसने पुष्पित-पल्लवित होते देखा. अंग्रेजी शासन में ही बिहार बंगाल प्रेसीडेंसी का हिस्सा बन चुका था पर बिहार के लोग अपनी सक्रियता एवं कर्मठता के बूते अपनी अलग पहचान कायम रखने में सफल रहे.
बिहार को बंगाल से अलग करने की मांग लगातार उठती रही. इसको लेकर सबसे महत्वपूर्ण दिन 12 दिसम्बर 1911 था. उस दिन ब्रिटिश सम्राट जॉर्ज पंचम ने दिल्ली दरबार में भारतीय परिषद अधिनियम 1909 के आधार पर बिहार एवं उड़ीसा को मिलाकर बंगाल से पृथक राज्य बनाने की घोषणा की.
22 मार्च 1912 को बिहार बना अलग राज्य
बिहार के लिए मुख्यालय पटना निर्धारित हुआ. 22 मार्च 1912 को बंगाल से अलग होकर बिहार एवं उड़ीसा राज्य अस्तित्व में आया. सर चार्ल्स स्टुअर्ट बेली इस राज्य के पहले उप राज्यपाल बने.
नये राज्य के विधायी प्राधिकार के रूप में 43 सदस्यीय विधान परिषद का गठन किया गया. इसमें 24 सदस्य निर्वाचित एवं 19 सदस्य उप राज्यपाल द्वारा मनोनीत थे. यही परिषद संख्या बल में परिवर्तनों से गुजरते हुए 243 सदस्यों के साथ आज बिहार विधानसभा के रूप में हम सबके सामने है.
इस विधायी परिषद की पहली बैठक 20 जनवरी 1913 को बांकीपुर स्थित पटना कॉलेज के सभागार में हुई थी. पटना कॉलेज देश का सातवां सबसे पुराना महाविद्यालय है.
प्राप्त जानकारी के अनुसार भारत सरकार के अधिनियम 1919 द्वारा भारत में नये शासन पद्धति की शुरुआत हुई. इसके अनुसार केन्द्रीय स्तर पर द्विसदनीय विधायिका का प्रावधान किया गया, जिसे संघीय विधानसभा एवं राज्य परिषद का नाम दिया गया.
यह कालांतर में लोकसभा एवं राज्यसभा के रूप में तब्दील हुआ. इसी अधिनियम द्वारा प्रांतों में द्वितंत्रीय शासन व्यवस्था की शुरुआत की गई. इसमें प्रशासनिक विषयों को दो श्रेणियों आरक्षित एवं हस्तांतरित में बांटा गया. बिहार एवं उड़ीसा को पूर्ण राज्य का दर्जा प्रदान करते हुए उप राज्यजपाल की नियुक्ति की गई.
लॉर्ड सत्येन्द्र प्रसन्न सिन्हा प्रांत के पहले गवर्नर
लॉर्ड सत्येन्द्र प्रसन्न सिन्हा इस प्रांत के पहले गवर्नर नियुक्त हुए. बिहार एवं उडीसा प्रांतीय परिषद में निर्वाचित एवं मनोनीत सदस्यों की संख्या (क्रमश: 76 एवं 27) 103 कर दी गई. इस विधायी परिषद के लिए एक भवन एवं सचिवालय की जरूरत के मद्देनजर 1920 में भवन का निर्माण आरंभ हुआ.
यही परिषद भवन आज बिहार विधानसभा का मुख्य भवन है. यहां पहली बैठक 7 फरवरी 1921 को सर वाल्टर मोड की अध्यक्षता में हुई. बिहार के पहले राज्यपाल लॉर्ड सत्येन्द्र प्रसन्न सिन्हा ने इसे संबोधित किया.