बिहार विधानसभा चुनावः कार्यकर्ता बेटिकट और भाजपा, राजद और जदयू से आए लोग टिकट?, लिस्ट आते ही हंगामा, दावेदारों ने विरोध जताना शुरू किया
By एस पी सिन्हा | Updated: October 9, 2025 18:22 IST2025-10-09T18:14:25+5:302025-10-09T18:22:01+5:30
Bihar Assembly Elections: राष्ट्रीय अध्यक्ष उदय सिंह, कार्यकारी अध्यक्ष मनोज भारती, और पूर्व केंद्रीय मंत्री आर.सी.पी. सिंह ने उम्मीदवारों के नामों का ऐलान किया।

file photo
पटनाः बिहार विधानसभा चुनाव में अपनी किस्मत आजमाने उतरे प्रशांत किशोर की पार्टी के द्वारा पहली सूची जारी करते हुई विरोध का भी सामना करना पडा। टिकट बंटवारे के साथ ही पार्टी के कैंप ऑफिस में हंगामा शुरू हो गया। पटना के पाटलिपुत्र गोलंबर स्थित जन सुराज के कैंप ऑफिस में जब पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष उदय सिंह, कार्यकारी अध्यक्ष मनोज भारती, और पूर्व केंद्रीय मंत्री आर.सी.पी. सिंह ने उम्मीदवारों के नामों का ऐलान किया, तो वहां मौजूद कुछ टिकट के दावेदारों ने विरोध जताना शुरू कर दिया।
दरअसल, बेनीपट्टी सीट से टिकट की उम्मीद कर रहे अवध बिहारी झा को जनसुराज ने टिकट नहीं दिया, जिसके बाद उनके समर्थकों ने नाराजगी जाहिर करते हुए जनसुराज कार्यालय के बाहर नारेबाजी शुरू कर दी। समर्थकों ने आरोप लगाया कि पार्टी ने मेहनती और पुराने कार्यकर्ताओं की अनदेखी की है और बाहरी लोगों को प्राथमिकता दी है।
वहीं, कुछ समर्थक नालंदा के कुछ विधानसभा को लेकर नाराजगी जता रहे हैं। समर्थकों ने कहा कि आरसीपी सिंह के इशारों पर सूची जारी हुआ है। समर्थकों ने कहा कि देखते जाइए अब कैसे इस्तीफा का दौर चलता है। समर्थकों का कहना है कि झा को टिकट नहीं देना जनसुराज के मूल सिद्धांतों के खिलाफ है।
इस बीच प्रशांत किशोर ने कहा कि उन्होंने बिहार बदलने का जो संकल्प लिया था, उसका पालन किया है। उन्होंने कहा कि सूची को बिहार के लोग देखें और अपनी राय दें। कयास लगाने वाले लोगों को भी इसे देखना चाहिए। जनसुराज ने उन पार्टियों के प्रत्याशियों को भी टिकट दिया है, जिन्हें मुखिया लड़ने योग्य भी नहीं समझता।
वहीं, जनसुराज के प्रवक्ता ने कहा कि पार्टी ने उम्मीदवारों के चयन में पारदर्शिता बरती है। टिकट देने का फैसला सर्वे और जनता की राय के आधार पर लिया गया है। पहली सूची के बाद हुए इस हंगामे ने साफ कर दिया है कि जनसुराज के भीतर टिकट वितरण को लेकर असंतोष उभरने लगा है। अब देखना दिलचस्प होगा कि प्रशांत किशोर इस अंदरूनी असंतोष को कैसे संभालते हैं, जबकि चुनावी बिगुल पूरी तरह बज चुका है।