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विधानसभा चुनावः 6 सीट नहीं दिया तो 24 पर करेंगे नुकसान?, सीमांचल में ओवैसी की धमक?, मुस्लिम मतदाताओं में बिखराव से महागठबंधन को नुकसान, तेजस्वी-राहुल को टेंशन

By एस पी सिन्हा | Updated: September 26, 2025 15:07 IST

बिहार की कुल आबादी 13 करोड़ से अधिक है। मुस्लिम समुदाय की हिस्सेदारी लगभग 17 फीसदी है। पांच में से चार विधायक राजद का दामन थाम लिया था।

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ठळक मुद्दे2020 के चुनाव में इस समुदाय के करीब 75 फीसदी वोट महागठबंधन को मिले थे।मुस्लिम मतदाताओं ने इस बार तेजस्वी यादव की टेंशन बढ़ा दी है। ओवैसी ने मुख्य रूप से राजद पर खूब निशाना साध रहे हैं।

पटनाः बिहार विधानसभा चुनाव से पहले ही जारी सियासी हलचल के बीच सीमांचल ईलाके में ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने अपनी गतिविधि को तेज कर राजद नेता तेजस्वी यादव की मुश्किलें बढ़ा दी है। सीमांचल इलाके में खुद ही मोर्चा संभाले हुए ओवैसी ने मुख्य रूप से राजद पर खूब निशाना साध रहे हैं। उन्होंने कहा कि राजद से उनकी पार्टी ने केवल 6 सीटें मांगी थी, लेकिन वो इसके लिए भी तैयार नहीं है। दरअसल, मुस्लिम मतदाताओं ने इस बार तेजस्वी यादव की टेंशन बढ़ा दी है। बता दें कि बिहार की सियासत में मुस्लिम मतदाताओं की अहम भूमिका रही है। बिहार की कुल आबादी 13 करोड़ से अधिक है। इसमें मुस्लिम समुदाय की हिस्सेदारी लगभग 17 फीसदी है। 2020 के चुनाव में इस समुदाय के करीब 75 फीसदी वोट महागठबंधन को मिले थे।

जबकि लगभग 17 फीसदी वोट एआईएमआईएम के खाते में गए। यही बंटवारा कई सीटों पर महागठबंधन को भारी पड़ा। इस बार भी अभी तक एआईएमआईएम के साथ तेजस्वी की पार्टी ने हाथ नहीं मिलाया है। 2024 लोकसभा चुनाव में मुस्लिम मतदाताओं ने एआईएमआईएम से दूरी बनाते हुए 83 फीसदी तक समर्थन महागठबंधन को दिया।

लेकिन 2025 विधानसभा चुनाव में उनकी नाराजगी भी साफ झलक रही है। इसबीच इस बार प्रशांत किशोर भी चुनावी मैदान में हैं। वे मुस्लिम समुदाय को अधिक प्रतिनिधित्व देने की बात कर रहे हैं। हालांकि प्रशांत किशोर ने यह ऐलान किया है कि जिस सीट पर महागठबंधन के द्वारा मुस्लिम उम्मीदवार उतारा जाएगा, वहां उनके द्वारा किसी मुस्लिम उम्मीदवार को नही उतारा जाएगा।

इसबीच एक निजी मीडिया केन्द्र के द्वारा कराए गए सर्वे के मुताबिक मुस्लिम मतदाता इस बार सतर्क हैं। वे ये तय कर रहे हैं कि क्या पूरा समर्थन महागठबंधन को ही दें या कुछ और विकल्प पर भी विचार करें। सर्वे के अनुसार मुस्लिम समुदाय में असंतोष की एक बड़ी वजह है-राजनीतिक प्रतिनिधित्व की कमी।

राहुल गांधी और तेजस्वी यादव की हाल की "मतदाता अधिकार यात्रा” में मुस्लिम नेताओं को पर्याप्त जगह न मिलने से असंतोष बढ़ा है। समुदाय का एक बड़ा हिस्सा टिकट बंटवारे में अधिक हिस्सेदारी और उपमुख्यमंत्री की मांग कर रहा है। उल्लेखनीय है कि सीमांचल के पूर्णिया, कटिहार, किशनगंज और अररिया जिले में ओवैसी की उपस्थिति 2015 से ही है। 2020 के विधानसभा चुनाव में उन्होंने अररिया, किशनगंज और पूर्णिया से 5 सीटें जीतकर राजद को बड़ा झटका दिया था। बाद में पांच में से चार विधायक राजद का दामन थाम लिया था।

अब ओवैसी के सामने फिर से नई चुनौती है। जन सुराज पार्टी बनने के बाद इस बार सीमांचल में विधानसभा चुनाव का समीकरण काफी बदल गया है। इसलिए एआईएमआईएम राजद से गठबंधन के फिराक में है, ताकि सियासी जमीन को और मजबूत कर सके। दरअसल, सीमांचल क्षेत्र में मुस्लिम मतदाता निर्णायक भूमिका निभाते है। इसमें मुसलमान लगभग 17.7 फीसदी हैं।

सीमांचल की सीटों पर उनका प्रतिशत 40 से 70 फीसदी तक पहुंचता है। एआईएमआईएम ने बिहार में 2015 में चुनावी कदम रखा था। 2019 के लोकसभा चुनाव में पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष और विधायक अख्तरुल ईमान ने लगभग 3 लाख वोट हासिल किए थे, वह तीसरे स्थान पर रहे थे। यहीं से पार्टी की जमीन तैयार हो गई।

लेकिन सफलता 2019 के किशनगंज विधानसभा उप-चुनाव जीतकर मिली। इस परिणाम ने सभी को चौंका दिया। साल 2020 में एआईएमआईएम ने सीमांचल की 5 विधानसभा सीटें जीतकर राजद को बड़ा झटका दिया। इसमें मुख्य रूप से अमौर, कोचाधामन, जोकीहाट, बायसी, बहादुरगंज और किशनगंज शामिल हैं।

सीमांचल में महागठबंधन को केवल एक सीट ही मिली थी, जबकि मुस्लिम बहुल क्षेत्र होने के बावजूद राजद की इस इलाके में पकड़ कमजोर दिखाई दी। ओवैसी का कहना है कि राजद ने सीमांचल की उपेक्षा की है। ओवैसी-राजद हाथ मिलाते हैं या नहीं, यह सीमांचल की मतदाता राजनीति और विधानसभा सीटों के समीकरण पर निर्णायक असर डालेगा।

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