Babri Demolition Case: 28 साल बाद फैसला, सभी आरोपी बरी, देखिए कब क्या-क्या हुआ...

By सतीश कुमार सिंह | Updated: September 30, 2020 13:15 IST2020-09-30T13:09:07+5:302020-09-30T13:15:04+5:30

लाल कृ​ष्ण आडवाणी के वकील विमल श्रीवास्तव ने कहा कि सभी आरोपी बरी कर दिए गए हैं, साक्ष्य इतने नहीं थे कि कोई आरोप साबित हो सके। बाबरी मस्जिद के पक्षकार इकबाल अंसारी ने कहा कि कोर्ट ने आरोपियों को बरी कर दिया है ये अच्छी बात है, हम इसका सम्मान करते हैं। 

Babri Demolition Case Verdict after 28 years all accused acquitted time line | Babri Demolition Case: 28 साल बाद फैसला, सभी आरोपी बरी, देखिए कब क्या-क्या हुआ...

मामले 47 और एफआईआर फाइल किए गए, जिसके बाद कुल एफआईर की संख्या 49 है। (file photo)

Highlightsसीबीआई स्पेशल कोर्ट ने माना कि 1992 बाबरी मस्जिद विध्वंस पूर्व नियोजित नहीं था।विशेष अदालत के न्यायाधीश एस.के. यादव ने फैसला सुनाते हुए कहा कि बाबरी मस्जिद विध्वंस की घटना पूर्व नियोजित नहीं थी। आरोपियों के खिलाफ कोई पुख्ता सुबूत नहीं मिले, बल्कि आरोपियों ने उन्मादी भीड़ को रोकने की कोशिश की थी।

लखनऊः बाबरी विध्वंस मामले में सीबीआई की विशेष अदालत ने सभी आरोपियों को बरी किया है। सीबीआई स्पेशल कोर्ट ने माना कि 1992 बाबरी मस्जिद विध्वंस पूर्व नियोजित नहीं था।

लाल कृ​ष्ण आडवाणी के वकील विमल श्रीवास्तव ने कहा कि सभी आरोपी बरी कर दिए गए हैं, साक्ष्य इतने नहीं थे कि कोई आरोप साबित हो सके। बाबरी मस्जिद के पक्षकार इकबाल अंसारी ने कहा कि कोर्ट ने आरोपियों को बरी कर दिया है ये अच्छी बात है, हम इसका सम्मान करते हैं। 

विशेष अदालत के न्यायाधीश एस.के. यादव ने फैसला सुनाते हुए कहा कि बाबरी मस्जिद विध्वंस की घटना पूर्व नियोजित नहीं थी। यह एक आकस्मिक घटना थी। उन्होंने कहा कि आरोपियों के खिलाफ कोई पुख्ता सुबूत नहीं मिले, बल्कि आरोपियों ने उन्मादी भीड़ को रोकने की कोशिश की थी। विशेष सीबीआई अदालत के न्यायाधीश एस के यादव ने 16 सितंबर को इस मामले के सभी 32 आरोपियों को फैसले के दिन अदालत में मौजूद रहने को कहा था।

हालांकि वरिष्ठ भाजपा नेता एवं पूर्व उप प्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी, पूर्व केंद्रीय मंत्री मुरली मनोहर जोशी और उमा भारती, उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह, राम जन्मभूमि न्यास अध्यक्ष महंत नृत्य गोपाल दास और सतीश प्रधान अलग—अलग कारणों से न्यायालय में हाजिर नहीं हो सके। कल्याण सिंह बाबरी मस्जिद ढहाये जाने के वक्त उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री थे। राम मंदिर निर्माण ट्रस्ट के महासचिव चंपत राय भी इस मामले के आरोपियों में शामिल थे। मामले के कुल 49 अभियुक्त थे, जिनमें से 17 की मृत्यु हो चुकी है।

बाबरी विध्वंस के बाद से इस पूरे मामले के घटनाक्रम पर नजर डालिएः

6 दिसंबर, 1992ः उत्तर प्रदेश के अयोध्या में बाबरी मस्जिद गिराई गई।

विध्वंस को लेकर दो आपराधिक केस दर्ज किए गए. 197 नंबर के FIR में 'लाखों कारसेवकों' के खिलाफ केस दर्ज किया गया, जिसमें आईपीसी की धारा 153 A (धार्मिक आधार पर दुश्मनी फैलाना), 297 (श्मशान में अतिक्रमण करना), 332 (सरकारी कर्मचारी को उसके कर्तव्य से डिगाने के लिए जानबूझकर चोट पहुंचाना), 337 (दूसरों की जिंदगी और निजी सुरक्षा को खतरे में डालना), 338 (जिंदगी खतरे में डालकर गंभीर चोट पहुंचाना), 395 (डकैती) और 397 (लूटपाट, मौत का कारण बनने की कोशिश के साथ डकैती) के तहत केस दर्ज है।

FIR नंबर 198 में आठ लोगों के नाम हैं- लाल कृष्ण आडवाणी, एमएम जोशी, उमा भारती, विनय कटियार, साध्वी ऋतंभरा और विश्व हिंदू परिषद के नेता अशोक सिंघल, गिरिराज किशोर और विष्णु हरि डालमिया का नाम है। इन नेताओं के खिलाफ आईपीसी की धाराओं- 153 A (धार्मिक आधार पर दुश्मनी फैलाना), 153-B (दंगा कराने के इरादे से भड़काऊ गतिविधियां करना) और 505 (जनता को भड़काने के लिए भड़काऊ बयान देने) के तहत केस दर्ज कराया गया है, इसके अलावा मामले 47 और एफआईआर फाइल किए गए, जिसके बाद कुल एफआईर की संख्या 49 है।

13 अप्रैल, 1993ः यूपी के ललितपुर, जहां से सबसे पहले केस शुरू हुए थे, के स्पेशल मजिस्ट्रेट ने एफआईआर 197 में 'लाखों कारसेवकों' के खिलाफ आपराधिक साजिश रचने (धारा 120 B) का आरोप भी जोड़ा।

8 सितंबर, 1993ः यूपी सरकार ने एफआईआर संख्या 198, जिसमें बीजेपी और वीएचपी नेताओं के नाम थे, उसे छोड़कर बाकी मामलों को लखनऊ की स्पेशल कोर्ट को दे दिया. 198 केस का ट्रायल रायबरेली के एक कोर्ट को चला गया।

5 अक्टूबर, 1993ः सीबीआई ने लखनऊ कोर्ट में 48 आरोपियों के खिलाफ एक संयुक्त चार्जशीट फाइल किया. इसमें शिवसेना के पूर्व प्रमुख बाल ठाकरे और यूपी के पूर्व सीएम कल्याण सिंह का नाम था।

8 अक्टूबर, 1993ः यूपी सरकार ने 8 सितंबर की अधिसूचना में संशोधन किया, ताकि सारे 49 मामलों का ट्रायल लखनऊ कोर्ट में ही हो सके।

1996ः सीबीआई ने एफआईआर संख्या 198 में आडवाणी सहित दूसरे आठ बीजेपी और वीएचपी नेताओं के खिलाफ सप्लीमेंट्री चार्जशीट फाइल किया।

9 सितंबर, 1997ः लखनऊ स्पेशल कोर्ट के स्पेशल जज ने एफआईआर संख्या 198 में सभी आरोपी नेताओं के खिलाफ भी आपराधिक साजिश का आरोप तय करने को कहा।

12 फरवरी, 2001ःइलाहाबाद कोर्ट ने यूपी सरकार के अक्टूबर, 1993 की अधिसूचना को यह कहते हुए अवैध ठहराया कि एफआईआर संख्या 198 को लखनऊ कोर्ट 'बिना न्यायक्षेत्र' के भेजा गया।

4 मई, 2001ः लखनऊ कोर्ट ने आडवाणी, जोशी, उमा भारती, बाल ठाकरे सहित 21 आरोपियों पर अपनी कार्रवाई रोक दी. केस को फिर रायबरेली के कोर्ट में शिफ्ट कर दिया गया।

28 सितंबर, 2002ःसीबीआई ने 8 अक्टूबर, 1993 की अधिसूचना में न्याय-क्षेत्र से जुड़ी गलतियां सुधारने का आग्रह किया, जिसे यूपी सरकार ने खारिज कर दिया. सीबीआई ने यूपी सरकार के फैसले को चुनौती नहीं दी।

2002ः सीबीआई ने रायबरेली के कोर्ट में आडवाणी, जोशी, भारती और पांच अन्य के खिलाफ सप्लीमेंटी चार्जशीट दाखिल की. इसमें आईपीसी की धाराओं- 153 A (धार्मिक आधार पर दुश्मनी फैलाना), 153-B (दंगा कराने के इरादे से भड़काऊ गतिविधियां करना) और 505 (जनता को भड़काने के लिए भड़काऊ बयान देने) के अलावा  147 (दंगों के लिए दंड) और 149 (गैर-कानूनी सभा) करने के तहत केस दर्ज किया गया. हालांकि, इसमें आपराधिक साजिश की धारा का जिक्र नहीं था।

22 मई, 2010ः इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 21 आरोपियों के खिलाफ केस ड्रॉप करने के लखनऊ कोर्ट के फैसले को बरकरार रखा. कोर्ट ने कहा कि मामले में दो तरह के आरोपी थे- डायस पर मौजूद नेता और दूसरे कारसेवक. कोर्ट ने कहा कि दोनों वर्गों के आरोपियों के खिलाफ अलग तरह के आरोप हैं और उनकी संलिप्तता अलग तरीकों के अपराधों में थी. कोर्ट ने यह भी कहा कि एफआईआर संख्या 198 में आठ आरोपियों के खिलाफ कभी आपराधिक साजिश का आरोप नहीं लगा।

19 अप्रैल, 2017ः सुप्रीम कोर्ट ने अपराध संख्या 198/92 मामले को रायबरेली से लखनऊ ट्रांसफर कर दिया और लखनऊ कोर्ट को आडवाणी, विनय कटियार, उमा भारती, साध्वी ऋतंभरा, मुरली मनोहर जोशी और विष्णु हरि डालमिया के खिलाफ आपराधिक साजिश का आरोप तय करने को कहा. शीर्ष अदालत ने सीबीआई के 5 अक्टूबर, 1993 के संयुक्त चार्जशीट में चंपत राय, नृत्य गोपाल दास, कल्याण सिंह और अन्य, जिनके भी नाम थे, उनके खिलाफ आपराधिक साजिश रचने का तय करने का आदेश दिया. सुप्रीम कोर्ट ने बाबरी विध्वंस मामले में रोजाना सुनवाई करने और अगले दो सालों में फैसला सुनाने का आदेश दिया।

30 मई, 2017ः बीजेपी के वरिष्ठ नेता एलके आडवाणी, उमा भारती और मुरली मनोहर जोशी अन्य आरोपियों के साथ लखनऊ की स्पेशल सीबीआई कोर्ट के सामने पेश हुए।

मई, 2019ः स्पेशल जज ने केस के ट्रायल को निपटाने के लिए सुप्रीम कोर्ट से और छह महीने मांगे।

जुलाई, 2019ः सुप्रीम कोर्ट ने बाबरी विध्वंस केस की सुनवाई कर रहे स्पेशल सीबीआई जज का कार्यकाल फैसला आने तक बढ़ा दिया और ट्रायल पूरा करने के लिए नौ महीनों का वक्त दिया।

मई 2020ः सुप्रीम कोर्ट ने स्पेशल सीबीआई जज से ट्रायल पूरा करने और अगस्त, 2020 तक केस में फैसला सुनाने को कहा।

2 जुलाई, 2020ः बीजेपी नेता उमा भारती सीबीआई के स्पेशल जज के सामने पेश हुईं और बयान दर्ज कराया।

13 जुलाई, 2020ः यूपी के पूर्व सीएम और बीजेपी नेता कल्याण सिंह सीबीआई कोर्ट में पेश हुए और बयान दर्ज कराया।

23 जुलाई, 2020ः बीजेपी के मार्गदर्शक मंडल में शामिल वरिष्ठ नेता मुरली मनोहर जोशी ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए केस में अपना बयान दर्ज कराया।

24 जुलाई, 2020ः एलके आडवाणी ने भी वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए सीबीआई कोर्ट में अपना बयान दर्ज कराया। अगस्त, 2020- सुप्रीम कोर्ट ने स्पेशल सीबीआई कोर्ट से ट्रायल पूरा करने और 30 सितंबर तक फैसला सुनाने को कहा।

16 सितंबर, 2020ः स्पेशल सीबीआई कोर्ट ने बाबरी विध्वंस केस में आखिरी फैसला सुनाने के लिए 30 सितंबर, 2020 को आखिरी तारीख तय की।

30 सितंबर, 2020ः फैसला सुनाया गया और सभी आरोपी को बरी कर दिया गया। 

Web Title: Babri Demolition Case Verdict after 28 years all accused acquitted time line

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