अयोध्या विवादः सुप्रीम कोर्ट का फैसला, बड़ी बेंच में नहीं जाएगा मस्जिद में नमाज का मामला
By रामदीप मिश्रा | Updated: September 27, 2018 15:23 IST2018-09-27T14:10:06+5:302018-09-27T15:23:20+5:30
Ayodhya Namaz in Mosque Verdict LIVE Updates in Hindi: प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा और न्यायमूर्ति अशोक भूषण तथा न्यायमूर्ति एस अब्दुल नजीर की पीठ अपना फैसला सुनाया। पीठ ने 20 जुलाई को इसे सुरक्षित रख लिया था।

अयोध्या विवादः सुप्रीम कोर्ट का फैसला, बड़ी बेंच में नहीं जाएगा मस्जिद में नमाज का मामला
नई दिल्ली, 27 सितंबर: अयोध्या विवाद से जुड़े 'मस्जिद में नमाज पढ़ना इस्लाम का आंतरिक हिस्सा है या नहीं' मसले पर सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुनाया है। उसने अपने फैसले में बताया है कि यह फैसला बड़ी बेंच के पास नहीं जाएगा। दरअसल 1994 में सुप्रीम कोर्ट का एक फैसला आया था जिसमें कहा गया था कि मस्जिद इस्लाम का अभिन्न हिस्सा नहीं है। 24 साल पुराने इस फैसले पर मुस्लिम याचिका कर्ताओं ने पुनर्विचार करने की अपील की थी।
प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा और न्यायमूर्ति अशोक भूषण तथा न्यायमूर्ति एस अब्दुल नजीर की पीठ अपना फैसला सुनाया। पीठ ने 20 जुलाई को इसे सुरक्षित रख लिया था। वहीं, कोर्ट ने कहा है कि अयोध्या मामले (टाइटल सूट) पर अब 29 अक्टूबर से सुनवाई शुरू होगी।
लाइव अपडेट...
- सुप्रीम कोर्ट ने का कहा कि अब जमीन विवाद पर सुनवाई की जाएगी।
- मस्जिद में नमाज का मुद्दा संविधान पीठ को नहीं जाएगा।
- 1994 के इस्माइल फारूकी के केस पर जस्टिस अशोक भूषण ने कहा कि हर फैसला अलग हालात में होता है।
- इस मामले में बताया गया कि न्यायमूर्ति अशोक भूषण और सीजेआई दीपक मिश्रा एक राय है, जबकि न्यायमूर्ति एस नाज़ीर दूसरी राय रखते हैं।
क्या है मुस्लिम पक्ष का कहना
मुस्लिम पक्ष का कहना था कि 1994 में इस्माइल फारुकी केस में सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि मस्जिद में नमाज पढ़ना इस्लाम का अभिन्न अंग नहीं है। इसलिए इस फैसले पर दोबारा विचार किया जाएगा। इसलिए इस पर सुनवाई होनी चाहिए। बता दें कि इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुरक्षित कर लिया था।
क्या है विवाद
अयोध्या में छह दिसंबर, 1992 को विवादित ढांचे के विध्वंस की घटना से संबंधित दो मुकदमे हैं। अयोध्या का राममंदिर-बाबरी मस्जिद विवाद सुप्रीम कोर्ट में अभी लंबित है। पहले मुकदमे में अयोध्या की जमीन किसकी है, इस पर अभी सुनवाई होनी बाकी है। हिंदू और मुस्लिम दोनों पक्षों ने 2010 के इलाहाबाद हाई कोर्ट के उस फैसले को मानने से मना कर दिया था, जिसमें कहा गया था कि इस जमीन को बांट दिया जाए। हाई कोर्ट ने जमीन को 2:1 के अनुपात में बांटने का फैसला किया गया था। जिसको दोनों पक्षों ने अस्वीकार कर दिया था। हाई कोर्ट ने ने मध्यकालीन स्मारक को विध्वंस करने की कार्रवाई को ‘अपराध’ बताते हुये कहा था कि इसने संविधान के ‘धर्मनिरपेक्ष ताने बाने’ को हिला कर रख दिया।