लखनऊः उत्तर प्रदेश में सीटों के तालमेल को लेकर अखिलेश यादव का कांग्रेस पर दबाव बनाने का प्लान परवान नहीं चढ़ पा रहा है. हालांकि अखिलेश यादव बार-बार यह कह रहे हैं कि यूपी में मुख्य विपक्षी पार्टी होने के कारण वही इंडिया गठबंधन के दलों को यूपी में सीटें बांटेंगे.
उनके इस ऐलान के बाद भी कांग्रेस की तरफ से सीटों के तालमेल को लेकर कोई बातचीत सपा के बीच शुरू नहीं हुई है. दूसरी तरफ कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अजय राय ने सपा के मुखिया के खिलाफ मोर्चा खोल रखा है. और अब तो कांग्रेस ने समाजवादी पार्टी (सपा) के बड़े नेताओं के लिए अपने दरवाजे खोल दिए हैं.
कांग्रेस के इस राजनीतिक फैसले के तहत सपा से चार बार सांसद रहे रवि वर्मा ने कांग्रेस का हाथ थामने का ऐलान कर दिया है. रवि वर्मा की तरह ही सपा के कई अन्य बड़े नेता कांग्रेस में जाने का मन बना रहे हैं. चर्चा है कि पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों का परिणाम आने के बाद सपा और बसपा के कई बड़े नेता कांग्रेस का हाथ थाम लेंगे.
इसलिए रवि वर्मा ने छोड़ा सपा का साथ:
अब आते हैं रवि वर्मा के पाला बदलने पर. सपा के संस्थापक सदस्यों में शामिल रहे हैं रवि वर्मा. उन्होंने सपा से इस्तीफा दे दिया है. अब वह 6 नवंबर को कांग्रेस का हाथ थामेंगे. बताया जाता है कि रवि वर्मा पार्टी में अपने को अलग थलग पड़ा हुआ महसूस करने लगे थे.
पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव उनकी मुलाक़ात मुश्किल से होना और अखिलेश यादव का उनसे किसी मामले में राय ना लेना भी इसकी वजह थी. जिसके चलते उन्हे पार्टी में घुटन महसूस होने लगी और उन्होंने गोला गोकर्णनाथ में हुए कार्यकर्ता सम्मेलन में ना जाकर अपनी नाराजगी का इजहार किया.
इसके बाद भी पार्टी मुखिया की तरफ से उन्हे मनाने का प्रयास नहीं किया गया तो उन्होंने कांग्रेस का हाथ थामने का फैसला कर लिया.रवि वर्मा का कहना है कि मुलायम सिंह जी के समय में पार्टी में सामूहिक रूप से रायशुमारी कर फैसला लेने की जो परंपरा थी वह अब खत्म हो गई है. ऐसे में उन्होने कांग्रेस के शीर्ष नेताओं से हुई वार्ता के बाद सपा से दूर जाने का फैसला कर लिया.
सपा के लिए झटका, कांग्रेस के लिए फायदेमंदः
रवि वर्मा का कांग्रेस में शामिल होना एक बड़ा झटका माना जा रहा है. रवि वर्मा वर्ष 1998 से वर्ष 2004 तक लखीमपुर खीरी लोकसभा सीट से लगातार तीन बार सपा के टिकट पर सांसद बने. वह एक बार राज्यसभा सदस्य भी रहे. उनके पिता बाल गोविंद वर्मा और माता ऊषा वर्मा भी लखीमपुर खीरी सीट से सांसद रह चुकी हैं.
इस तरह से लखीमपुर खीरी संसदीय सीट पर रवि वर्मा का परिवार दस बार प्रतिनिधित्व कर चुका है. उनकी बेटी पूर्वी वर्मा वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में लखीमपुर खीरी सीट से उतरी थी, लेकिन भाजपा के अजय मिश्र टेनी से जीत नहीं सकीं. रवि वर्मा कुर्मी समाज के बड़े नेता माने जाते हैं.
रुहेलखंड के बड़े नेताओं में उन्हें गिना जाता है. उनके प्रभाव से बरेली, शाहजहांपुर, धौरहरा, सीतापुर, पीलीभीत, मिश्रिख जैसी संसदीय सीटों पर सियासी समीकरण बदल सकते हैं. इसलिए उनका कांग्रेस में जाना सपा के लिए झटका है और कांग्रेस के लिए फायदेमंद. रवि वर्मा की मदद से कांग्रेस रुहेलखंड में अपनी मौजूदगी जताने में सफल हो सकती है.