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अमरनाथ यात्रा: पिघलता हिमलिंग बना विवाद का मुद्दा, श्राइन बोर्ड ने बताया प्राकृतिक नियम, पर्यावरणविद् बोले संख्या कम करो

By सुरेश एस डुग्गर | Updated: July 27, 2023 18:24 IST

अमरनाथ यात्रा श्राइन बोर्ड के अधिकारियों ने इसके पिघलने की प्रक्रिया से पल्ला झाड़ते हुए कहा है कि यह प्राकृतिक प्रक्रिया है पर कश्मीर के पर्यावरणविद इसे मानने को तैयार नहीं हैं जिनका कहना था कि क्षमता से अधिक श्रद्धालुओं को यात्रा में शामिल होने की अनुमति देने से ऐसा हुआ है।

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ठळक मुद्दे श्राइन बोर्ड के अधिकारियों ने इसके पिघलने की प्रक्रिया को प्राकृतिक नियम बतायाबोर्ड की दलील को कश्मीर के पर्यावरणविद मानने को तैयार नहींउनका मानना है कि क्षमता से अधिक श्रद्धालुओं को यात्रा में शामिल होना है वजह

जम्मू:अमरनाथ यात्रा का प्रतीक हिमलिंग पिघल कर एक फुअ का रह गया है। और ऐसे में हर बार रक्षा बंधन से पहले ही भक्तों के सांसों की गर्मी से तेजी से पिघलता अमरनाथ यात्रा का प्रतीक हिमलिंग एक बार फिर विवाद का मुद्दा बन गया है। अमरनाथ यात्रा श्राइन बोर्ड के अधिकारियों ने इसके पिघलने की प्रक्रिया से पल्ला झाड़ते हुए कहा है कि यह प्राकृतिक प्रक्रिया है पर कश्मीर के पर्यावरणविद इसे मानने को तैयार नहीं हैं जिनका कहना था कि क्षमता से अधिक श्रद्धालुओं को यात्रा में शामिल होने की अनुमति देने से ऐसा हुआ है।

पिछले कई सालों से जिस तेजी से हिमलिंग पिघल रहा है उसे रोकने की खातिर किए जाने वाले उपाय नाकाफी साबित हो रहे हैं। दरअसल गुफा में क्षमता से अधिक श्रद्धालुआंें के पहुंचने से हिमलिंग को नुक्सान पहुंच रहा है क्योंकि लाखों भक्तों की गर्म सांसों को हिमलिंग सहन नहीं कर पा रहा है। श्राइन बोर्ड के अधिकारी अप्रत्यक्ष तौर पर भक्तों की सांसों की थ्यूरी को मानते हैं पर प्रत्यक्ष तौर पर वे इसे कुदरती प्रक्रिया करार देते थे।

श्राइन बोर्ड के अधिकारी कहते थे कि ग्लोबल वार्मिंग भी इसे प्रभावित कर रही है। वे इससे इंकार करते थे कि गुफा में क्षमता से अधिक श्रद्धालु पहुंच रहे हैं। वर्ष 1996 के अमरनाथ हादसे के बाद नीतिन सेन गुप्ता कमेटी की सिफारिश थी कि 75 हजार से अधिक श्रद्धालुओं को यात्रा में शामिल न होने दिया जाए। पर ऐसा कभी नहीं हो पाया। इस बार 27 दिनों में पौने चार लाख श्रद्धालु गुफा में पहुंचे हैं।

इस पर पर्यावरणविद खफा हैं। वे कहते हैं कि यात्रियों की संख्या में बेतहाशा वृद्धि न सिर्फ हिमलिंग को पिघलाने में अहम भूमिका निभा रही है, यात्रा मार्ग के पहाड़ों के पर्यावरण को भी जबरदस्त क्षति पहुंचा रही है। इन पर्यावरणविदों का कश्मीर के अलगाववादी भी समर्थन करते रहे हैं। दिवंगत सईद अली शाह गिलानी गुट ने तो यात्रा को 15 दिनों तक सीमित करने और यात्रियों की संख्या कम करवाने को कई बार मुद्दा बनाया है।

श्राइन बोर्ड श्रद्धालुओं की संख्या को कम करने को राजी नहीं दिखता है। पर वह हिमलिंग के संरक्षण की योजनाओं पर अमल करने का इच्छुक जरूर दिखता है। श्राइन बोर्ड श्रद्धालुओं की संख्या को कम करने की बजाय यात्रा को सारा साल चलाने के पक्ष में भी समर्थन जुटाने में जुटा हुआ है, जो माहौल को और बिगाड़ रहा है इसके प्रति कोई दो राय नहीं है।

यात्रा शुरू होने के बाद भक्तों के अलावा गुफा के आस-पास बड़ी तादाद में सुरक्षाकर्मी भी मौजूद हैं। भारी भीड़ की वजह से अमरनाथ गुफा के आसपास का तापमान और बहुत बढ़ गया है, हालांकि श्राइन बोर्ड ने दावा किया था कि पिछले दो तीन साल में उन्होंने कुछ ऐसे उपाय किए हैं, जिससे गुफा तापमान ना बढ़े।

जब 28 जून को बाबा बर्फानी ने पहली बार दर्शन दिए थे तब शिवलिंग का आकार करीब 18 फीट का था। और धीरे - धीरे वह अब लगभग पूरी तरह से पिघल गया है। हालांकि अधिकारी कहते थे कि ये अभी भी एक फीट के करीब विद्यमान है। ये पहला मौका नहीं है जब बाबा बर्फानी पहली बार अपने भक्तों से रूठे हों, इससे पहले भी कई बार ऐसा हो चुका है।

अभी तक करीब पौने चार लाख भक्त बर्फानी बाबा के दर्शन कर चुके हैं, जबकि सरकार चाहती है कि चार लाख और भक्त अमरनाथ पहुंचें। हर दिन हजारों श्रद्धालु पवित्र गुफा में बाबा बर्फानी के दर्शन कर रहे हैं। दर्शन करके लौटते भक्त बताते है कि महादेव का धीरे धीरे यूं अंतर्ध्यान होना उनकी क्रोधलीला है।

टॅग्स :अमरनाथ यात्राजम्मू कश्मीररक्षाबन्धनEnvironment Department
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