Amarnath Yatra: अमरनाथ यात्रा की शुरुआत 30 जून से हो रही है। जम्मू-कश्मीर हालात को देखते हुए केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने मंगलवार को अमरनाथ यात्रा की तैयारियों पर दो अलग-अलग मैराथन बैठक की। वार्षिक तीर्थयात्रा दो साल के अंतराल के बाद शुरू होने वाली है।
यह ऐसे वक्त में हो रही है, जब केंद्र शासित प्रदेश में हाल में कश्मीरी पंडितों समेत अन्य लोगों की लक्षित हत्याएं की गई हैं। वार्षिक तीर्थयात्रा के लिए साजो-सामान पर चर्चा के लिए स्वास्थ्य, दूरसंचार, सड़क परिवहन, नागरिक उड्डयन, आईटी मंत्रालयों के शीर्ष अधिकारियों ने बैठक में भाग लिया।
सुबह करीब 11.30 बजे शुरू हुई पहली मुलाकात करीब 45 मिनट तक चली। तीर्थयात्रा पहलगाम और बालटाल के जुड़वां मार्गों से आयोजित की जाती है। पहली बैठक समाप्त होने के तुरंत बाद शुरू हुई दूसरी बैठक अमरनाथ यात्रा की सुरक्षा, सुरक्षा कर्मियों की तैनाती, खतरे का आकलन और उससे जुड़े अन्य बिंदुओं को लेकर थी।
बैठक करीब डेढ़ घंटे तक चली। जम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल मनोज सिन्हा और केंद्रीय गृह सचिव अजय भल्ला के साथ-साथ वरिष्ठ अधिकारियों ने भी दोनों बैठकों में शिरकत की। राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (एनएसए) अजीत डोभाल, सेना प्रमुख जनरल मनोज पांडे, इंटेलिजेंस ब्यूरो के प्रमुख अरविंद कुमार और जम्मू-कश्मीर के पुलिस प्रमुख दिलबाग सिंह बैठक में शामिल हुए।
यह यात्रा 3,888 मीटर की ऊंचाई पर स्थित गुफा मंदिर तक की जाती है, जो भगवान शिव को समर्पित है। वार्षिक अमरनाथ यात्रा 2020 और 2021 में कोरोना वायरस महामारी के कारण नहीं हो सकी थी। साल 2019 में, अनुच्छेद 370 के ज्यादातर प्रावधानों को निरस्त करने से ठीक पहले इसे संक्षिप्त कर दिया गया था। यह सरकार के लिए बड़ी सुरक्षा चुनौती है।
इस तीर्थयात्रा में लगभग तीन लाख श्रद्धालुओं के भाग लेने की संभावना है और यह यात्रा 11 अगस्त को संपन्न हो सकती है। अधिकारियों ने बताया कि हरेक यात्री को उनकी गतिविधियों और सुरक्षा पर नजर रखने के लिए ‘रेडियो फ्रीक्वेंसी आइडेंटिफिकेशन’ (आरएफआईडी) टैग दिए जाएंगे। इससे पहले आरएफआईडी टैग सिर्फ तीर्थयात्रियों की गाड़ियों को दिए जाते थे।
अधिकारियों ने बताया कि यात्रा के दो मार्गों पर अर्धसैनिक बलों के कम से कम 12,000 जवानों के साथ-साथ जम्मू-कश्मीर पुलिस के हजारों कर्मियों को भी तैनात किए जाने की उम्मीद है। तीर्थयात्रा का एक मार्ग पहलगाम से है और दूसरा बालटाल होते हुए है। ड्रोन कैमरे सुरक्षा बलों को यात्रियों की सुरक्षा सुनिश्चित करने में मदद करेंगे।
अगस्त 2019 में जम्मू कश्मीर का विशेष राज्य का दर्जा खत्म किए जाने के बाद से घाटी में गैर मुस्लिमों और बाहरी लोगों पर हमले की घटनाओं में वृद्धि हुई है। बडगाम जिले में 12 मई को सरकारी कर्मचारी राहुल भट की आतंकवादियों ने उनके कार्यालय के अंदर घुसकर हत्या कर दी थी।
कश्मीरी पंडित भट के कत्ल के एक दिन बाद, पुलिस कांस्टेबल रियाज अहमद ठोकर की पुलवामा जिले में उनके आवास पर आतंकवादियों ने गोली मारकर हत्या कर दी थी। पिछले हफ्ते जम्मू में कटरा के पास एक बस में आग लगने से चार श्रद्धालुओं की मौत हो गई थी और कम से कम 20 अन्य जख्मी हो गए थे।
पुलिस को शक है कि आग लगाने के लिए शायद “स्टिकी’’ (चिपकाने वाले) बम का इस्तेमाल किया गया था। भट की हत्या के बाद कश्मीरी पंडित समुदाय के सदस्यों ने विरोध प्रदर्शन शुरू कर दिए है। उन्होंने घाटी में प्रदर्शन किया और अपने समुदाय के सरकारी कर्मचारियों को सुरक्षित स्थानों पर स्थानांतरित करने तथा उनकी सुरक्षा बढ़ाने की मांग की है।
जम्मू-कश्मीर की प्रमुख राजनीतिक पार्टियों के साझा मंच ‘‘गुपकर घोषणापत्र गठबंधन’’ ने रविवार को कश्मीरी पंडित कर्मचारियों से अपील की कि वे घाटी छोड़कर नहीं जाएं। गठबंधन ने कहा कि यह उनका घर है और यहां से उनका जाना ‘‘सभी के लिए पीड़ादायक होगा।’’
(इनपुट एजेंसी)