अल्लूरी सीताराम राजू: आदिवासियों का मसीहा जिसने कहा “मैं बस दो साल की लड़ाई में अंग्रेजों को भगा सकता हूँ”

By लोकमत समाचार हिंदी ब्यूरो | Published: July 4, 2018 08:37 AM2018-07-04T08:37:22+5:302018-07-04T08:37:22+5:30

साल 1882 में अंग्रेजों ने विशाखापट्टनम और आस पास के क्षेत्रों में महाराष्र्ग फॉरेस्ट एक्ट लागू किया जिसके कुछ बेहद मनमाने प्रावधान थे।

 Alluri Sitarama Raju birthday special tribal leader fought british for india freedom | अल्लूरी सीताराम राजू: आदिवासियों का मसीहा जिसने कहा “मैं बस दो साल की लड़ाई में अंग्रेजों को भगा सकता हूँ”

अल्लूरी सीताराम राजू: आदिवासियों का मसीहा जिसने कहा “मैं बस दो साल की लड़ाई में अंग्रेजों को भगा सकता हूँ”

विभव देव शुक्ल
 
उन्नीस सौ बीस के दशक में जब देश का एक बड़ा हिस्सा अंग्रेजों से आज़ादी के लिए जूझ रहा था। ठीक उस दौर में विशाखापट्टनम और गोदावरी ज़िले के आस पास मुख्य धारा से अलग एक लड़ाई चल रही थी। यह लड़ाई भी अंग्रेजो के खिलाफ ही थी लेकिन इसे आम नागरिक नहीं बल्कि आदिवासी लड़ रहे थे और इस अनसुनी लड़ाई के अगुआ थे ‘अल्लूरी सीताराम राजू’। दरसल उस दौरान समाज का हर हिस्सा अंग्रेजों के अत्याचार से गुज़र रहा था जिसकी वजह से आदिवासियों के साथ क्या गलत हो रहा था इसकी भनक किसी को नहीं थी?
 
अब प्रश्न उठता है, क्या गलत हो रहा था? साल 1882 में अंग्रेजों ने विशाखापट्टनम और आस पास के क्षेत्रों में महाराष्र्ग फॉरेस्ट एक्ट लागू किया जिसके कुछ बेहद मनमाने प्रावधान थे। इस नियम के तहत आदिवासियों को वन्य क्षेत्रों में घूमने पर रोक लगा दी गई। जबकि उस क्षेत्र के आदिवासी पोडू (अलग अलग स्थान पर जाना) कृषि किया करते थे इसके अलावा वह रोज़ के लिए लकड़ी इकट्ठा करते थे। इन दोनों के बिना आदिवासियों का अस्तित्व खतरे में था और अंग्रेजों ने उनके इन दोनों कामों पर रोक लगा दी।
 
क्या था रम्पा रिबैलियन 1922? और कैसे अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई को तैयार हुए आदिवासी? 
 
राम राजू जल्द ही आदिवासियों को यह समझाने में कामयाब रहे कि अंग्रेजों के खिलाफ अहिंसक लड़ाई से कोई परिणाम हाथ नहीं लगेगा। लेकिन सवाल यह था कि बड़े स्तर पर लड़ाई लड़ते कैसे? तब राम राजू की मुलाक़ात गोविन्द गुरु और मोतीलाल तेजावत से हुई जिनके साथ उन्होंने आन्दोलन के लिए पैसे और संसाधन जुटाए। आदिवासियों को गुरिल्ला युद्ध और तमाम हथियारों का प्रशिक्षण दिया और बहुत कम समय में आंदोलनकारियों की बड़ी फ़ौज खड़ी कर दी। इतना कुछ अंग्रेजों की नाक के नीचे हुआ और आश्चर्यजनक रूप से आन्दोलन की पूरी योजना बनाने के दौरान वह अंग्रेजों की गिरफ्त से बाहर ही रहे।
 
खुद के तैयार किए 300 विद्रोहियों के साथ राम राजू ने 22 अगस्त 1922 को विशाखापट्टनम के चिंतापल्ली पुलिस स्टेशन पर हमला कर दिया। ठीक उसी समय कृष्णादेवी पेटा और ओमांगी देवी पुलिस स्टेशन पर भी हमला हुआ। जिसके कुछ समय बाद ही विशाखापट्टनम, राजमुंदरई, पार्वतीपुरम और कोरापुट में भारी संख्या में पुलिस बल तैनात कर दिया गया। अब तक अंग्रेज़ भी समझ चुके थे कि राम राजू उनके लिए कहीं बड़ा ख़तरा हैं जिसके बाद उन पर 10,000 रुपये का इनाम रख दिया गया।

अंततः 7 मई 1924 को लम्बी मुठभेड़ के बाद राम राजू पुलिस की गोली से मारे गए। राम राजू ने अपने पूरे जीवन में एक ही साक्षात्कार दिया और उसमें कहा कि “मैं बस दो साल की लड़ाई में अंग्रेजों को भगा सकता हूँ”। राम राजू को समझने के लिए उनके इस कथन से बेहतर और कुछ नहीं हो सकता है।

(विभव देव शुक्ल लोकमत न्यूज में इंटर्न हैं।)

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