कोरोना की दूसरी लहर में रोजाना संक्रमितों की संख्या बढ़ रही है। हवा में वायरस से पीक आ गया या आना बाकी है, संक्रमण में गिरावट कब तक आएगी? देश के पास कोरोना ट्रीटमेंट का अनुभव, वैक्सीन और विशेषज्ञ हैं। कमी किस चीज कि है इन तमाम पहलुओं पर एम्स के निदेशक डा. रणदीप गुलेरिया ने बात की लोकमत संवाददाता एसके गुप्ता से, प्रस्तुत है बातचीत के प्रमुख अंश
प्रश्न - लांसेट की स्टडी आई है कि हवा में कोरोना वायरस है। यह कितना खतरनाक है और कैसे बचें?
उत्तर: कुछ दिन पहले यह स्टडी आई है, लेकिन कई तरह के शोध में छह-सात महीने पहले ही वैज्ञानिकों ने इसकी पुष्टि की है और हम लोग भी कह रहे हैं कि एयरबोर्न होने के साथ- साथ कोरोना संक्रमण ड्रापलेट से फैल रहा है। इसे ऐसे समझिए कि ड्रॉपलेट में 5 माइक्रोन साइज की बूंदें होती हैं, जो सतह पर गिरती हैं। सतह पर गिरने के कारण ही इन बूंदों को ड्रॉपलेट कहते हैं और यह दो गज की अधिकतम दूरी पर छींकने या खांसने से फैलता है। लेकिन एयरसोल कोरोना वायरस इससे भी सूक्ष्म है और वह हवा में काफी देर तक तैरता है।इसका मतलब यह है कि कोई कोरोना संक्रमित व्यक्ति अपने कमरे में छींकता है तो हवा में मौजूद कोरोना वायरस अन्य लोगों को भी संक्रमित करेगा। इससे बचाव यही है कि ऑफिस और घर में भी मास्क पहनकर रखिए और क्रॉस वेंटिलेशन रखिए। जिससे हवा के साथ आने वाला वायरस एक तरफ से आएगा और दूसरी तरफ कमरे की खिड़की से बाहर जाकर धूप या गर्म तापमान में मर जाएगा।
प्रश्न - अगर व्यक्ति अकेले में है तो क्या मास्क लगाना चाहिए?
उत्तर: अगर आप घर में अकेले हैं तो मास्क पहनने की जरूरत नहीं है बशर्ते घर में एयर वेंटिलेशन अच्छा होना चाहिए। एयरसोल वायरस से बचाव के लिए अपने घर और ऑफिस की खिड़कियां खुली रखें।
प्रश्न –हवा में संक्रमण को देखते हुए माना जा रहा है कि सिंगल मास्क की जगह डबल मास्क पहनना चाहिए। यह कितना सही है?
उत्तर: कुछ हद तक ऐसा माना जा रहा है कि अगर एयरसोल है तो हमें मास्किंग अच्छी करनी होगी, अगर हम एन-95 मास्क इस्तेमाल कर रहे हैं, जो चिकित्सक पहन रहे हैं। तो हमारा काम सिंगल मास्क से चल जाएगा। जरूरी है कि मास्क नाक और मुंह पर सही से फिट या चिपका हुआ हो, वरना आप सर्जिकल मास्क पहनकर उसके ऊपर एक ओर कपड़े का मास्क पहन सकते हैं। इससे मुंह और नाक सही से कवर हो जाएगी और वायरस के कण नाक-मुंह के जरिए आपके शरीर में प्रवेश नहीं कर सकेंगे।
प्रश्न -पीक आ गया या आना बाकी है?
उत्तर: अभी पीक नहीं है, लेकिन संक्रमण की दूसरी लहर काफी खतरनाक है। इसलिए सावधानी बरतनी जरूरी है।
प्रश्न – संक्रमण की दूसरी लहर में गिरावट कब से देखने को मिलेगी?
उत्तर: गिरावट में अभी तीन सप्ताह तक का समय लग सकता है। क्योंकि राज्यों ने जिस तरह से सख्ती और लॉकडाउन लगाया है, उससे लोग कोविड अनुकूल व्यवहार करने के लिए बाध्य हुए हैं। पिछले साल की तुलना में इस बार लोग घरों से ज्यादा बाहर हैं। बाजार, सड़क हर जगह पहले की तुलना में ज्यादा भीड़ है यही वजह है कि ज्यादा संख्या में लोग संक्रमित हो रहे हैं। राज्यों के प्रयासों को देखते हुए लग रहा है कि दो से तीन सप्ताह में गिरावट नजर आनी चाहिए।
प्रश्न – अस्पतालों में बेड की कमी है, कैसे तय करें कि अस्पताल में एडमिट होना है या घर पर ही उपचार हो जाएगा?
उत्तर: देश में 85 से 90 फीसदी लोगों में हल्का संक्रमण होता है। 10 से 15 फीसदी लोगों को ही अस्पताल में भर्ती होने की जरूरत पड़ती है। अगर होम आइसोलेशन में आप हैं तो आपके घर में पूरा सैटअप होना चाहिए। अलग कमरा और उसके साथ अटैच बाथरूम और खासतौर पर साफ-सफाई का खुद ध्यान रखें। अलग बर्तन रखें। अगर आपकी ऑक्सीजन 90 से कम होती है या दवाई लेने के बाद भी बुखार कम नहीं हो रहा है तो डॉक्टर से संपर्क करें। बच्चे की पसली चल रही है, डायरिया हो रहा है तो भर्ती करने की जरूरत है।
प्रश्न –पिछली बार की जगह इस बार ऑक्सीजन की ज्यादा जरूरत क्यों पड़ रही है?
उत्तर: पिछली बार की तुलना में रोगियों की संख्या बढ़ी है। पिछली बार रोगियों की संख्या करीब एक लाख थी तो इस बार करीब तीन लाख है। ऐसे में तीन गुणा मांग बढ़ी है। इसीलिए ऑक्सीजन की कमी है। अस्पतालों पर ज्यादा दबाव है। अस्पतालों में बेड नहीं हैं, आईसीयू बेड नहीं हैं। यह स्थिति हम ज्यादा समय तक संभाल नहीं पाएंगे। इसलिए हमें केस जल्द से जल्द कम करने पडेंगे।
प्रश्न –रेमडेसिविर और प्लाज्मा थैरेपी कोरोना उपचार में कितने इफेक्टिव हैं?
उत्तर: दोनों ट्रीटमेंट स्ट्रेटजी ज्यादा इफेक्टिव नहीं हैं। साल भर हुई स्टडी में अभी तक यह नजर नहीं आया कि दोनों ट्रीटमेंट स्ट्रेटजी मृत्यु को कम करती हैं या किसी की जान बचाती हैं। रेमडेसिविर की बात करें तो कई बड़ी स्टडी हुई हैं, जैसे डब्ल्यूएचओ के रिकवरी ट्रायल हुए तो उसमें निगेटिव परिणाम सामने आए, जिसमें यह नहीं दिखा पाए कि रेमडेसिविर जान बचा सकती है। स्टडी में यह सामने आया था कि रेमडेसिविर लेने से हॉस्पिटल एडमिशन डयूरेशन चार दिन कम हो जाता है। आपकी रिकवरी थोडी जल्द हो जाती है। यह कोई मैजिक बुलेट नहीं है जिससे आपका जीवनकाल बढ़ जाएगा। प्लाज्मा की बात करें शुरू में हमने बहुत प्लाज्मा बैंक शुरू किए। आईसीएमआर ने भी स्टडी की ओर बाहर भी कई स्टडी हुई। उन स्टडी में भी प्लाज्मा को इतना कारगर नहीं बताया है। फिर भी यह ट्रीटमेंट स्ट्रेटजी हैं और हम इनका इस्तेमाल करते हैं। हम कई और स्ट्रेटजी का इस्तेमाल भी कर रहे हैं, जैसे स्टेरॉयड और ऑक्सीजन है। लेकिन ऐसा नहीं है कि प्लाज्मा थैरेपी या रेमडेसिविर न देने से मृत्यु दर बढ़ी हो।
प्रश्न-एक मई से 18 साल से ऊपर के लोगों को वैक्सीन लगेगी। राज्यों में वैक्सीन की कमी है, इस स्थिति से कैसे निपटेंगे?
उत्तर: इस स्थिति से निपटने के लिए खरीद और संरक्षण राज्यों के लिए खोल दिया गया है। विदेशी कंपनियों की ऐसी वैक्सीन जिन्हें यूएस, यूरोप, जापान या डब्ल्यूएचओ से मंजूरी है, उन वैक्सीन पर नियामक एजेंसी डीजीसीआई जल्द फैसला लेगी, यह तय हुआ है। हाल ही में स्पुतनिक-V को इमरजेंसी इस्तेमाल की मंजूरी दी गई है। इससे नई वैक्सीन मिलने से देश में वैक्सीन का पुल बढ़ेगा। जिससे देश में 18 साल से ऊपर के लोगों को धीरे-धीरे वैक्सीनेट किया जा सकेगा।
प्रश्न –पिछले अनुभव पर क्या हम कह सकते हैं कि अब कोरोना का इलाज हमारे पास है?
उत्तर: हम यह कह सकते हैं कि हमने वैक्सीन तो बना ली। लेकिन हम कोई ऐसा एंटी वायरल ड्रग नहीं बना पाए जो वायरस को मार सके। यह एक सच्चाई है कि हमारे पास जो दवाई हैं चाहे रेमडेसिविर, आईवरवैक्टिन, एचसीक्यू की बात करें कोई भी ऐसी दवा नहीं है कि हमने इसे लिया और हमारे शरीर का वायरस खत्म हो गया। हमारे पास कुछ दवाएं हैं जो वायरस पर प्रभावी हैं, क्लोटिंग रोक पाते हैं। शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता ही है जो वायरस की रोकथाम पर काम कर रही है। जिस तेजी से हमने रिसर्च कर वैक्सीन बनाई ऐसे ही हमें जल्द एंटी वायरस दवा बनाने की जरूरत है।