रांची: बिहार में एनडीए की जीत के बाद अब झारखंड के सत्ता समीकरण बदलने की चर्चा गर्म है। कांग्रेस से मोहभंग के बाद हेमंत सोरेन अब एनडीए के साथ आ सकते हैं। सूत्रों के अनुसार मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन और उनकी पत्नी ने दिल्ली में भाजपा के शीर्ष नेतृत्व से मुलाकात की। विश्वसनीय सूत्रों की मानें तो दिल्ली में दो दिन पहले झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) प्रमुख एवं मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन और उनकी पत्नी कल्पना सोरेन की भाजपा के एक शीर्ष नेता से मुलाकात हुई है। दावा यह भी है कि बातचीत केवल औपचारिक नहीं थी बल्कि साथ आने की प्रारंभिक सहमति बन चुकी है। संभावित गठबंधन में उपमुख्यमंत्री पद को लेकर भी बातचीत हुई है। उपमुख्यमंत्री की भूमिका के लिए बाबूलाल मरांडी या चंपई सोरेन के नाम पर चर्चा के संकेत है।
यह पूरा घटनाक्रम ऐसे समय में सामने आया है, जब झारखंड में सत्ता संतुलन बदलने की वास्तविक आवश्यकता नहीं दिखती है। झारखंड में फिलहाल झामुमो, कांग्रेस, राजद और वाम गठबंधन की सरकार है, जिनके पास 81 विधानसभा सीटों में से कुल 56 सीटें हैं। इस नए गठबंधन यानी झामुमो और भाजपा के बीच के गठबंधन पर आज कल चर्चाएं तेज हैं, जो यदि सच साबित हुआ तो राज्य की राजनीति में बड़ा उलटफेर कर सकता है।
संभावित नए परिदृश्य में झामुमो (34) और भाजपा (21) के साथ लोजपा, आजसू और जदयू की 1-1 सीट जोड़कर कुल आंकड़ा 58 तक पहुंच सकता है और बहुमत के लिए 41 सीटों की आवश्यकता है। दिसंबर 2025 के अनुसार झारखंड विधानसभा का वास्तविक संख्याबल अभी भी स्थिर है, जिसमें इंडिया ब्लॉक की सरकार 56 सीटों के साथ सत्ता में बनी हुई है और हेमंत सोरेन मुख्यमंत्री हैं।
सीटों का बंटवारा स्पष्ट है, झामुमो 34, कांग्रेस 17, राजद 4 और भाकपा-माले 1 सीट के साथ सरकार संभाल रही है। दरअसल, हेमंत सरकार वित्तीय संकट के कारण 'मइयां सम्मान' जैसी चुनावी वादों को पूरा करने में मुश्किलों का सामना कर रही है। पर्याप्त केंद्रीय निधि के बिना वादे पूरे करना कठिन है। इसलिए झामुमो के लिए भाजपा से हाथ मिलाना व्यावहारिक विकल्प है। दरअसल, विधानसभा चुनाव के बाद भाजपा आदिवासी समाज में अपनी पकड़ मजबूत करने के लिए झामुमो से तालमेल चाहती है।
हेमंत सोरेन और बाबूलाल मरांडी की हालिया 'चुप्पी' को राजनीतिक प्रेक्षक गठबंधन का संकेत मान रहे हैं। राजनीतिक गलियारों में चर्चा तेज है कि झारखंड में किसी भी क्षण नए गठबंधन और शक्ति-संतुलन की घोषणा हो सकती है। सियासी विश्लेषकों का मानना है कि यदि हेमंत सोरेन भाजपा के साथ गठबंधन करते हैं, तो यह इतिहास के सबसे अप्रत्याशित राजनीतिक कदमों में से एक होगा क्योंकि 2024 के चुनाव अभियान के दौरान दोनों दलों में टकराव चरम पर था और सोरेन ने भाजपा पर इंडिया जांच के दुरुपयोग का आरोप लगाकर जनसमर्थन हासिल किया था।
जानकारों के अनुसार यह परिस्थितियों, दबावों और मौके की समझ का खेल भी है। दरअसल, हाल के दिनों में हेमंत सरकार की मुश्किलें बढ़ी हैं क्योंकि विधानसभा चुनाव के दौरान किए गए कई वादे वित्तीय संकट के कारण अधर में लटके हुए हैं। मइयां सम्मान योजना के तहत महिलाओं को 2,500 रुपये प्रतिमाह देने और धान का समर्थन मूल्य बढ़ाकर 3,200 रुपये प्रति क्विंटल करने के वादे को पूरा करने में सरकार को दिक्कत आ रही है। केंद्र से पर्याप्त निधि के बिना इन्हें पूरा करना कठिन है। ऐसे में भाजपा से निकटता झामुमो के लिए व्यावहारिक विकल्प के रूप में सामने आ सकती है।
दूसरी ओर भाजपा भी अपने राजनीतिक समीकरण दुरुस्त करने के दौर से गुजर रही है। विधानसभा चुनाव में करारी शिकस्त के बाद पार्टी का आंतरिक आकलन है कि मौजूदा राजनीतिक संतुलन में लौटना आसान नहीं होगा। भाजपा की आदिवासी समाज में पकड़ कमजोर हुई है और राजनीतिक स्पेस भी सिकुड़ता दिख रहा है। ऐसे समय में झामुमो के साथ संभावित तालमेल भाजपा को नई ताकत दे सकता है। कम से कम यह संदेश तो अवश्य जाएगा कि पार्टी राज्य की प्रमुख सामाजिक श्रेणियों के साथ संवाद और साझेदारी के लिए तैयार है।
भाजपा के साथ सकारात्मक रिश्ते की चर्चा को हवा इससे भी मिलती दिख रही है कि झारखंड की राजनीति में अरसे से दो विपरीत ध्रुव माने जाने वाले हेमंत सोरेन और बाबूलाल मरांडी पिछले कुछ महीनों से असामान्य रूप से शांत हैं। न कोई तीखा हमला, न तीव्र आरोप। दोनों की चुप्पी ने राजनीतिक प्रेक्षकों को ज्यादा सजग कर दिया है। राजनीति में चुप्पी अक्सर संकेतों की भाषा होती है। यह रणनीतिक संयम का संकेत भी हो सकती है।
वहीं, इस संभावित नए समीकरण को लेकर चल रही चर्चाओं के बारे में पूछे जाने पर भाजपा के प्रवक्ता प्रदीप सिन्हा ने कुछ भी कहने से इंकार करते हुए कहा कि ऐसा कोई प्रस्ताव झामुमो की ओर से नही आया है। अगर ऐसा कोई प्रस्ताव आता है तो भाजपा का केन्द्रीय नेतृत्व विचार कर सकता है। जबकि झामुमो के प्रवक्ता सुप्रियो चक्रवर्ती ने कहा कि ऐसी कोई बात नही है। हमारे मुख्यमंत्री दिल्ली दौरे पर जरूर गए थे, लेकिन केन्द्रीय फंड के लिए उन्होंने केन्द्र सरकार के मंत्रियों से मुलाकात की है। भाजपा के साथ जाने का तो सवाल ही नहीं है क्योंकि यहां पूर्ण बहुमत की इंडिया गठबंधन की सरकार चल रही है।