2016 में भारत के रजिस्ट्रार जनरल ने संसदीय समिति को बताया था कि जाति के 98 फीसदी आंकड़ों में कोई खामी नहीं है
By विशाल कुमार | Updated: September 28, 2021 11:10 IST2021-09-28T10:56:31+5:302021-09-28T11:10:38+5:30
केंद्र सरकार ने पिछले हफ्ते सुप्रीम कोर्ट में दायर अपने हलफनामे में डेटा को अनुपयोगी ठहरा दिया. सरकार ने कहा कि 1931 में सर्वेक्षण की गई कुल जातियों की संख्या 4,147 थी, जबकि एसईसीसी के आंकड़े बताते हैं कि 46 लाख से अधिक विभिन्न जातियां हैं.

प्रतीकात्मक तस्वीर.
नई दिल्ली: केंद्र सरकार ने पिछले हफ्ते सुप्रीम कोर्ट को बताया कि 2011 की सामाजिक-आर्थिक जाति जनगणना (एसईसीसी) में शामिल जाति के आंकड़े अनुपयोगी थे, लेकिन 2016 में भारत के रजिस्ट्रार-जनरल और जनगणना आयुक्त ने ग्रामीण विकास पर स्थायी समिति को बताया था कि व्यक्तिगत जाति और धर्म पर आधारित 98.87 फीसदी डेटा में कोई खामी नहीं थी.
द हिंदू की रिपोर्ट के अनुसार, बीपीएल सर्वेक्षण (अब एसईसीसी) पर समिति द्वारा की गई सिफारिशों पर सरकार द्वारा की गई कार्रवाई का विश्लेषण करते हुए अपनी रिपोर्ट में गृह मंत्रालय के तहत आने वाले भारत के रजिस्ट्रार-जनरल और जनगणना आयुक्त के हवाले से कहा गया था कि डेटा की जांच की गई है और व्यक्तियों की जाति और धर्म पर 98.87 फीसदी डेटा त्रुटि मुक्त है.
भारत के महापंजीयक के कार्यालय ने कहा था कि 118 करोड़ की कुल सर्वेक्षण की गई आबादी में से लगभग 1.34 करोड़ व्यक्तियों के डेटा में त्रुटियां देखी गई हैं.
हालांकि, पूरी तरह से अलग रुख अपनाते हुए सरकार ने पिछले हफ्ते सुप्रीम कोर्ट में दायर अपने हलफनामे में डेटा को अनुपयोगी ठहराने के लिए कई कारणों गिनाए.
सरकार ने कहा कि 1931 में सर्वेक्षण की गई कुल जातियों की संख्या 4,147 थी, जबकि एसईसीसी के आंकड़े बताते हैं कि 46 लाख से अधिक विभिन्न जातियां हैं.
हलफनामे में कहा गया कि यह मानते हुए कि कुछ जातियां उप-जातियों में विभाजित हो सकती हैं, लेकिन कुल संख्या इस हद तक तेजी से नहीं बढ़ सकती है.
हालांकि, राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के राज्यसभा सदस्य मनोज के झा ने कहा कि त्रुटि आंकड़ों में नहीं, बल्कि सरकार के फैसले में है.
झा ने कहा कि बिहार में विपक्ष के नेता के रूप में तेजस्वी यादव ने कहा कि सरकार संख्या के डर से पूरी कवायद को रोक रही है. संख्या एक दुखद कहानी प्रकट करेगी.
पूर्व सूचना एवं प्रसारण मंत्री और लोकसभा सदस्य मनीष तिवारी ने कहा कि जैसा कि आरजीआई ने स्वीकार किया है कि 98 फीसदी डेटा त्रुटि रहित था, तो एसईसीसी कराने में करदाताओं के पैसे खर्च किए जाने के बाद सरकार के पास इसे रोकने का कोई कारण नहीं है.
तिवारी ने कहा कि तथ्य यह है कि यूपीए सरकार जाति जनगणना को लेकर बहुत उत्साहित नहीं थी. हालांकि, एक जुझारू विपक्ष के सामने, यह एसईसीसी कराने के लिए सहमत हो गया जो कि सावधानीपूर्वक किया गया था. चूंकि 98 फीसदी डेटा त्रुटि रहित है, इसलिए सरकार को इसे जनता के सामने रखना चाहिए.
बता दें कि, जातिगत जनगणना के मुद्दे पर नरेंद्र मोदी सरकार फंसी हुई है क्योंकि सहयोगी जनता दल (यू) और अपना दल बार-बार अन्य पिछड़ी जातियों (ओबीसी) की गिनती की मांग कर रहे हैं.
विपक्ष भी इस मुद्दे को जोर शोर से उठा रहा है और अधिकतर दल इसके साथ हैं. रविवार को झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने जातिगत जनगणना की मांग के साथ एक सर्वदलीय बैठक लेकर केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात की थी. वहीं, इस मुद्दे पर मुखर राजद विरोध प्रदर्शन आयोजित करने की तैयारी कर रही है.