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दुर्घटना, आत्महत्या के कारण 2014 से 2018 के बीच CAPF के 2,200 जवानों की हुई मौत, बीते साल 28 जवानों ने की आत्महत्या

By भाषा | Published: January 19, 2020 11:56 AM

2014 में पहली बार सीएपीएफ संबंधी यह आंकड़ा एकत्र किया था। उस साल दुर्घटना के कारण 1,232 जवानों की मौत हुई थी और 175 लोगों ने आत्महत्या की थी। ब्यूरो ने बताया कि दुर्घटना के कारण 2015, 2016 और 2017 में क्रमश: 193, 260 और 113 कर्मियों की मौत हुई जबकि 2015 में 60, 2016 में 74 और 2017 में 60 लोगों ने आत्महत्या की।

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ठळक मुद्देएनसीआरबी ने सीमा सुरक्षा बल, केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल, केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल, भारत-तिब्बत सीमा पुलिस, सशस्त्र सीमा बल के अलावा असम राइफल्स और राष्ट्रीय सुरक्षा गार्ड के आंकड़ों को शामिल किया है।एनआरसीबी की ताजा रिपोर्ट के अनुसार एक जनवरी 2018 को सीएपीएफ के जवानों की वास्तविक संख्या 9,29,289 थी।

देश में 2014 से 2018 के बीच पांच वर्ष में आत्महत्या और दुर्घटनाओं के कारण केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बल (सीएपीएफ) के करीब 2,200 जवानों की मौत हुई है। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़ों के अनुसार 2018 में हादसों में सीएपीएफ के 104 जवानों की मौत हुई जबकि 28 लोगों ने आत्महत्या कर ली। इस साल कुल 132 लोगों की मौत हुई।

ब्यूरो ने 2014 में पहली बार सीएपीएफ संबंधी यह आंकड़ा एकत्र किया था। उस साल दुर्घटना के कारण 1,232 जवानों की मौत हुई थी और 175 लोगों ने आत्महत्या की थी। ब्यूरो ने बताया कि दुर्घटना के कारण 2015, 2016 और 2017 में क्रमश: 193, 260 और 113 कर्मियों की मौत हुई जबकि 2015 में 60, 2016 में 74 और 2017 में 60 लोगों ने आत्महत्या की। आंकड़ों के अनुसार 2014 से 2018 के बीच हादसों में 1,902 और आत्महत्या के कारण 397 जवानों की मौत हुई, यानि कुल 2,199 जवान मारे गए।

एनसीआरबी ने सीमा सुरक्षा बल, केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल, केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल, भारत-तिब्बत सीमा पुलिस, सशस्त्र सीमा बल के अलावा असम राइफल्स और राष्ट्रीय सुरक्षा गार्ड के आंकड़ों को शामिल किया है। एनआरसीबी की ताजा रिपोर्ट के अनुसार एक जनवरी 2018 को सीएपीएफ के जवानों की वास्तविक संख्या 9,29,289 थी।

एनसीआरबी के अनुसार सीएपीएफ के जवानों की हादसे में हुई मौत के कारणों का यदि विश्लेषण किया जाए, तो पता चलता है कि 2018 में 31.7 प्रतिशत (104 में से 33 लोगों की) मौत ‘अभियान या मुठभेड़ या कार्रवाई के दौरान हुईं’। इसके बाद 21.2 प्रतिशत (22 जवानों की मौत ‘अन्य कारणों से हुई’। सड़क और रेल हादसों के कारण इनमें से 20.2 प्रतिशत जवानों की जान गई। 

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