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चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ को 21 रिटायर्ड जजों ने लिखी चिट्ठी, किया दबाव का जिक्र

By आकाश चौरसिया | Updated: April 15, 2024 11:56 IST

हाईकोर्ट के रिटायर्ड 21 जजों ने सुप्रीमकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश डी. वाई. चंद्रचूड़ को चिट्ठी लिखी और उसमें दबाव का जिक्र किया। इसके साथ ही चिट्ठी में ये भी बताया कि एक पक्ष के द्वारा फैसले अपने पक्ष में कराने की बात का खुलासा किया।

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ठळक मुद्देहाई कोर्ट के पूर्व जजों ने SC जस्टिस को लिखा पत्रइसमें उन सभी ने चिट्ठी में दबाव होने का बात उठाई 21 जजों ने कहा, 'न्यायपालिका को कमजोर करने का प्रयास किया जा रहा'

नई दिल्ली: हाईकोर्ट के पूर्व 21 जजों ने सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश धनंजय यशवंत चंद्रचूड़ को चिट्ठी लिखी। इसके साथ ही उन्होंने चिट्ठी में दबाव का जिक्र किया और  ये भी बताया कि न्यायपालिका को कमजोर करने का प्रयास किया जा रहा है। सीजेआई चंद्रचूड़ को 21 सेवानिवृत्त न्यायाधीशों द्वारा लिखे गए निंदनीय पत्र से एक गुट के कथित 'गलत सूचना फैलाने के प्रयास' और 'न्यायिक परिणामों को अपने पक्ष में प्रभावित करने के गुप्त प्रयासों' का पता चलता है। 

रिटायर्ड जजों ने कहा, यह हमारे संज्ञान में आया कि, कुछ लोग किसी न किसी तरह से राजनीतिक हित और फायदे के लिए ऐसा कर रहे। इतना ही नहीं ये तत्व न्यायिक प्रणाली में जनता के विश्वास को कम करने का प्रयास कर रहे हैं। हम उस विशेष बात पर चिंता जाहिर करते हैं, जिसमें गलत सूचना की रणनीति और न्यायपालिका के खिलाफ जनता की भावनाओं को भड़काने के बारे में चिंतित हैं। यह पूरी तरह से अनैतिक हैं बल्कि लोकतंत्र के मूलभूत सिद्धांतों के लिए हानिकारक भी है।

21 सेवानिवृत्त न्यायाधीशों द्वारा लिखे गए पत्र में कहा गया है, "किसी के विचारों से मेल खाने वाले न्यायिक निर्णयों की चयनात्मक रूप से प्रशंसा करने और न्यायिक समीक्षा और कानून के शासन के सार को कमजोर नहीं करने वाले निर्णयों की तीखी आलोचना करने का चलन है।"

2018 में भी कुछ ऐसा ही हुआ थासुप्रीम कोर्ट के 4 जजों ने उस समय जस्टिस दीपक मिश्र को पत्र लिखकर शीर्ष अदालत की ओर से दिए गए कुछ आदेशों को लेकर अपनी-अपन चिंता जताई थी। उन सभी का कहना था कि आए हुए आदेशों की वजह से न्यायपालिका के संचालन पर बुरा असर पड़ा। इस पत्र को लिखने में जस्टिस जे चेलमेश्वर, रंजन गोगोई, मदन लोकुर और कुरियन जोसफ शामिल थे। 

इस पत्र में उन 4 जजों ने अपनी नाराजगी और चिंता जाहिर की थी। इसके साथ सभी ने कुछ आदेशों को रेखांकित करते हुए कहा था कि, न्याय देने की पूरी कार्यप्रणाली और हाईकोर्ट की स्वतंत्रता के साथ-साथ भारत के सुप्रीम कोर्ट के काम करने के तौर-तरीकों को बुरी तरह प्रभावित किया। 

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