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1984 के सिख विरोधी दंगे: सुप्रीम कोर्ट से दोषी सज्जन कुमार को नहीं मिली कोई राहत, अब जमानत याचिका पर जुलाई में होगी सुनवाई

By रामदीप मिश्रा | Updated: May 13, 2020 12:26 IST

सज्जन कुमार को जिस मामले में उच्च न्यायालय ने दोषी ठहराते हुए सजा दी वह एक-दो नवंबर 1984 को दिल्ली छावनी के राज नगर पार्ट-1 इलाके में पांच सिखों की हत्या और राज नगर पार्ट-2 में एक गुरुद्वारे को जलाने से संबंधित है। 

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ठळक मुद्देसुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को 1984 के सिख विरोधी दंगा मामले में उम्रकैद की सजा पाए पूर्व कांग्रेस नेता सज्जन कुमार को कोई राहत नहीं दी है। कोर्ट ने कहा है कि उनकी जमानत याचिका पर जुलाई महीने में विचार किया जाएगा।

नई दिल्लीः सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को 1984 के सिख विरोधी दंगा मामले में उम्रकैद की सजा पाए पूर्व कांग्रेस नेता सज्जन कुमार को कोई राहत नहीं दी है। कोर्ट ने कहा है कि उनकी जमानत याचिका पर जुलाई महीने में विचार किया जाएगा। बता दें, 31 अक्टूबर 1984 को दो सिख अंगरक्षकों द्वारा तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद सिख विरोधी दंगे भड़क गए थे।

इससे पहले 14 फरवरी को सुप्रीम कोर्ट ने सज्जन कुमार को अंतरिम जमानत देने से इनकार कर दिया था और कहा कि वह ग्रीष्मावकाश के दौरान उसकी जमानत याचिका पर सुनवाई करेगा। चिकित्सीय आधार पर अंतरिम जमानत का अनुरोध करने वाले सज्जन कुमार को दिल्ली उच्च न्यायालय ने 17 दिसंबर, 2018 को उम्र कैद की सजा सुनायी थी।सज्जन कुमार की ओर से बहस कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता विकास सिंह से कोर्ट ने कहा था कि बहुत से मामले हैं। लेकिन यह मामला भिन्न है और आप को हाईकोर्ट ने दोषी ठहराया है। आप (विकास सिंह) ग्रीष्मावकाश के दौरान विस्तार से बहस कीजिये। सिंह ने कहा था कि कुमार इस मुकदमे की पूरी सुनवाई के दौरान जमानत पर रहे हैं और निचली अदालत ने इस मामले में बरी कर दिया था परंतु उच्च न्यायालय ने इस निर्णय को निरस्त कर दिया था।  सिंह ने सज्जन कुमार के लिये अंतरिम राहत पर शीघ्र विचार करने का अनुरोध करते हुए कहा था कि अपीलकर्ता का वजन 67 किलोग्राम था और पिछले करीब 13 महीने से उनका 13 किलोग्राम वजन कम हो गया है। अगर उन्हें कुछ हो गया तो कौन इसके लिये जिम्मेदार होगा।

दंगा पीडि़तों की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता दुष्यंत दवे ने अमेरिका में 9/11 के बाद नफरत फैलाने के अपराध में दोषी दो व्यक्तियों के मामले का हवाला दिया था और कहा था कि उन्हें हत्या के अपराध में छह महीने के भीतर ही मौत की सजा सुनाई गई थी और मृत्यु दंड घटाने का उनका अनुरोध अस्वीकार कर दिया गया था। 

दवे ने कहा था कि यह (सिख विरोधी दंगों के दौरान) ऐसा मामला है जिसमे 4000 लोगों का नरसंहार हुआ और गुजरात दंगों के दौरान 2000 व्यक्तियों की हत्या की गयी थी। इस मामले में एक सांसद संलिप्त था और इसमें न्यायमूर्ति नानावटी आयोग की रिपोर्ट के आधार पर नरसंहार के 21 साल बाद प्राथमिकी दर्ज की गई थी। 

शीर्ष अदालत ने पिछले साल छह नवंबर को निर्देश दिया था कि कांग्रेस के इस पूर्व नेता के स्वास्थ्य की जांच एम्स के चिकित्सकों का दल करे और उनके स्वास्थ्य के बारे में अपनी रिपोर्ट पेश करे। न्यायालय ने पिछले साल पांच अगस्त को कहा था कि वह सज्जन कुमार की जमानत याचिका पर 2020 में विचार करेगा क्योंकि यह 'साधारण मामला' नहीं है और इसमें विस्तार से सुनवाई की जरूरत है। 

सज्जन कुमार को जिस मामले में उच्च न्यायालय ने दोषी ठहराते हुए सजा दी वह एक-दो नवंबर 1984 को दिल्ली छावनी के राज नगर पार्ट-1 इलाके में पांच सिखों की हत्या और राज नगर पार्ट-2 में एक गुरुद्वारे को जलाने से संबंधित है। (समाचार एजेंसी भाषा के इनपुट के साथ)

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