पेरिसः चाहे स्कूल में हों, काम पर हों या अपने खाली समय में, हम विविध सांस्कृतिक पृष्ठभूमि वाले लोगों से मिलते हैं। ‘‘सांस्कृतिक बुद्धिमत्ता’’ जो हमें विभिन्न सांस्कृतिक मानदंडों को समझने और उनके अनुसार ढलने में सक्षम बनाती है, सह-अस्तित्व को बढ़ावा देने के लिए एक आवश्यक यंत्र है। बुद्धिमान होने का क्या मतलब है? तर्कशास्त्र संबंधी परीक्षा उत्तीर्ण करना? समीकरण हल करना? अच्छी याददाश्त होना?
बुद्धिमत्ता को लंबे समय से ‘आईक्यू स्कोर’ तक सीमित कर दिया गया है। हालांकि, 1920 और 1940 के दशक की शुरुआत में ही एडवर्ड थार्नडाइक, लुईस थर्स्टन और रेमंड कैटेल जैसे अमेरिकी मनोवैज्ञानिक बुद्धि के विभिन्न रूपों के अस्तित्व पर प्रकाश डाल रहे थे। वर्ष 1980 के दशक में, एक अन्य अमेरिकी मनोवैज्ञानिक, रॉबर्ट स्टर्नबर्ग ने एक दृष्टिकोण प्रस्तावित किया,
जिसमें तीन पूरक आयामों को प्रतिष्ठित किया गया: विश्लेषणात्मक बुद्धिमत्ता (तर्क करना, तुलना करना, समस्याओं को सुलझाना), रचनात्मक बुद्धिमत्ता (कल्पना करना, नवीनता से निपटना) और व्यावहारिक बुद्धिमत्ता (अपने वातावरण के अनुकूल ढलना, प्रभावी ढंग से कार्य करना)।
उनके दृष्टिकोण के अनुसार, बुद्धिमान होना, सबसे पहले यह जानना है कि किसी दिए गए संदर्भ में, अपनी शक्तियों को जुटाकर और अपनी कमजोरियों की भरपाई करके अपने जीवन के लक्ष्यों को कैसे प्राप्त किया जाए। बहुसांस्कृतिक माहौल में बातचीत करना स्टर्नबर्ग के कार्य की निरंतरता में ही सांस्कृतिक बुद्धिमत्ता (सीक्यू) की अवधारणा उभरी।
शोधकर्ताओं ने सांस्कृतिक बुद्धिमत्ता के चार पूरक आयामों की पहचान की। मेटाकॉग्निटिव आयाम व्यक्ति के अपने सांस्कृतिक पूर्वाग्रहों के प्रति जागरूक होने और संदर्भ के अनुसार अपने सोचने और बातचीत करने के तरीके को समायोजित करने की क्षमता से मेल खाता है। उदाहरण के लिए, एक फ्रांसीसी प्रबंधक आलोचना को बहुत सीधे तौर पर व्यक्त करने का आदी हो सकता है।
जब उनका सामना ऐसे सांस्कृतिक परिवेश से आए वार्ताकारों से होता है जहां आलोचना अधिक स्पष्ट रूप से व्यक्त की जाती है। संज्ञानात्मक आयाम का तात्पर्य अन्य संस्कृतियों, उनके मानदंडों और प्रथाओं के बारे में सामान्य ज्ञान से है। प्रेरणात्मक आयाम सांस्कृतिक रूप से विविध लोगों के साथ बातचीत करने के लिए आवश्यक इच्छा और आत्मविश्वास को दर्शाता है।
उदाहरण के लिए, यह उन विद्यार्थियों में पाया जाता है जो स्वेच्छा से किसी अंतरराष्ट्रीय टीम में शामिल होना चुनते हैं, भले ही इसके लिए अधिक संचार प्रयासों की आवश्यकता हो। व्यावहारिक आयाम का तात्पर्य किसी भी विचार, अवधारणा या व्यवहार के वास्तविक जीवन में लागू होने वाले पहलू जो देखे, मापे जा सकते हैं और किसी व्यक्ति या समाज के लिए सीधे तौर पर उपयोगी हों।
एक आवश्यक कौशल अनेक अध्ययन सांस्कृतिक बुद्धिमत्ता के सकारात्मक प्रभावों की पुष्टि करते हैं। उदाहरण के लिए, यह बहुसांस्कृतिक टीम के नेतृत्व और प्रदर्शन में सुधार करता है, या यह ज्ञान साझा करने की सुविधा प्रदान करके सहयोग और नवाचार को प्रोत्साहित करता है।
शुरुआत में विदेश में कार्य करने वाले अधिकारियों को सहायता प्रदान करने के लिए तैयार की गई सांस्कृतिक बुद्धिमत्ता को अब कई संदर्भों में एक आवश्यक कौशल के रूप में मान्यता प्राप्त है: कार्यस्थल पर, स्कूल में तथा दैनिक जीवन में भी, जहां भी विभिन्न संस्कृतियों के लोग मिलते हैं। शोध यह भी दर्शाते हैं कि इस कौशल को सीखा और विकसित किया जा सकता है।
अंतर-सांस्कृतिक प्रशिक्षण हमें सांस्कृतिक अंतरों को बेहतर ढंग से समझने में मदद करता है। सांस्कृतिक बुद्धिमत्ता ज्यादातर छात्रों से संबंधित है, जिन्हें बहुसांस्कृतिक वातावरण में सीखने और काम करने के लिए कहा जाता है। इसे ध्यान में रखते हुए, हमने इंजीनियरिंग के छात्रों के बीच अंतरराष्ट्रीय गतिशीलता पर एक अध्ययन किया ताकि यह समझा जा सके कि यह अनुभव उनकी सांस्कृतिक बुद्धिमत्ता को कैसे मजबूत कर सकता है। विशेष रूप से, हमने वैज्ञानिक रूप से मान्यता प्राप्त प्रश्नावली का उपयोग करके उनकी सांस्कृतिक बुद्धिमत्ता का आकलन किया।
परिणाम स्पष्ट हैं: अंतरराष्ट्रीय गतिशीलता सांस्कृतिक बुद्धिमत्ता में उल्लेखनीय सुधार लाती है, विशेष रूप से उन लोगों में जिन्होंने पहले बहुत कम यात्रा की थी या जो अन्य संस्कृतियों के प्रति सहज रूप से खुले नहीं थे। हमारे निष्कर्ष अन्य शोधों के अनुरूप हैं जो दर्शाते हैं कि सांस्कृतिक बुद्धिमत्ता विदेश यात्रा के दायरे से कहीं आगे तक फैली हुई है।
यह पूर्वाग्रहों को कम करके शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व को बढ़ावा देता है, कार्यस्थल या स्कूल में बेहतर सहयोग को बढ़ावा देने में मदद करता है, और व्यक्तियों को अंतरराष्ट्रीय वातावरण में फलने-फूलने के लिए तैयार करता है। स्कूल और विश्वविद्यालय महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं: इन कौशलों को विकसित करके, वे न केवल पेशेवरों को प्रशिक्षित करने में योगदान देते हैं, बल्कि एक अधिक समावेशी समाज के निर्माण में भी योगदान देते हैं।