मोटापे की नई दवाएं 'चमत्कारी इलाज' नहीं, विशेषज्ञ

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Updated: November 6, 2025 12:37 IST2025-11-06T12:37:42+5:302025-11-06T12:37:47+5:30

इक्कीसवीं सदी में मोटापा सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक बनकर उभरा है। यह एक दीर्घकालिक रोग है जो शारीरिक, मानसिक और सामाजिक रूप से कई जटिलताएं उत्पन्न करता है।

New obesity drugs are not a miracle cure, say experts | मोटापे की नई दवाएं 'चमत्कारी इलाज' नहीं, विशेषज्ञ

मोटापे की नई दवाएं 'चमत्कारी इलाज' नहीं, विशेषज्ञ

Highlightsमोटापे की नई दवाएं 'चमत्कारी इलाज' नहीं, विशेषज्ञ

इक्कीसवीं सदी में मोटापा सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक बनकर उभरा है। यह एक दीर्घकालिक रोग है जो शारीरिक, मानसिक और सामाजिक रूप से कई जटिलताएं उत्पन्न करता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के अनुसार, 1990 से 2022 के बीच मोटापे का वैश्विक प्रसार दोगुना हो गया और अब यह दुनिया भर में, 88 करोड़ वयस्क और 16 करोड़ बच्चों सहित एक अरब से अधिक लोगों को प्रभावित कर रहा है । फ्रांस भी इससे अछूता नहीं है। एक अनुमान के अनुसार, देश में करीब 80 लाख लोग मोटापे से ग्रस्त हैं। इसकी दर 1997 में 8.5 प्रतिशत से बढ़कर 2012 में 15 प्रतिशत और 2020 में 17 प्रतिशत हो गई। हाल में विकसित नई दवाएं- ग्लूकागन-लाइक पेप्टाइड-1 (जीएलपी-1) एनालॉग्स- चिकित्सकों के लिए नई उम्मीदें लेकर आई हैं, लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि केवल इन दवाओं के भरोसे मोटापे पर काबू नहीं पाया जा सकता।

डब्ल्यूएचओ के अनुसार, अधिक वजन और मोटापा शरीर में असामान्य या अत्यधिक वसा संचय है जो स्वास्थ्य के लिए जोखिमपूर्ण होता है। 25 से अधिक बॉडी मास इंडेक्स (बीएमआई) को अधिक वजन और 30 से अधिक को मोटापा माना जाता है। अब तक मोटापे के इलाज में जीवनशैली सुधार, संतुलित आहार, शारीरिक गतिविधि, मनोवैज्ञानिक सहयोग और जटिलताओं की रोकथाम मुख्य उपाय रहे हैं। गंभीर मामलों में बेरिएट्रिक सर्जरी भी विकल्प रही है। मोटापे की पुरानी दवाओं जैसे डेक्सफेनफ्लुरामीन (आइसोमेराइड) और बेनफ्लुओरेक्स (मेडिएटर) को हृदय और फेफड़ों पर गंभीर दुष्प्रभावों के कारण बाजार से हटा लिया गया था। अब चिकित्सकों के पास नई श्रेणी की दवाएं हैं- जीएलपी-1 एनालॉग्स- जो इंसुलिन स्राव को बढ़ाकर ब्लड शुगर नियंत्रण में मदद करती हैं, भूख कम करती हैं और पेट खाली होने की प्रक्रिया को धीमा करती हैं। इनमें लिराग्लूटाइड (ब्रांड नाम सैक्सेंडा, विक्टोज़ा), सेमाग्लूटाइड (वेगोवी, ओज़ेम्पिक) और टिरज़ेपाटाइड (माउंजारो) शामिल हैं। हफ्ते में एक बार इंजेक्शन के रूप में दी जाने वाली ये दवाएं टाइप-2 डायबिटीज के इलाज में पहले से उपयोग की जाती हैं। कई बड़े क्लीनिकल परीक्षणों में पाया गया कि जब इन दवाओं का उपयोग नियंत्रित आहार और शारीरिक गतिविधि के साथ किया गया, तो वजन में उल्लेखनीय कमी आई। साथ ही हृदय और चयापचय संबंधी कुछ मानकों में भी सुधार देखा गया।

फिलहाल इन्हें 30 से अधिक बीएमआई वाले या 27 से अधिक बीएमआई के साथ वजन-संबंधी रोगों से ग्रस्त वयस्कों के लिए मंजूरी मिली है। हालांकि, फ्रांस में इन्हें अभी बीमा प्रतिपूर्ति नहीं दी जाती। शोध से स्पष्ट है कि मोटापा केवल कैलोरी सेवन और खर्च के असंतुलन का परिणाम नहीं है। इसके पीछे आनुवंशिक, हार्मोनल, औषधीय, मनोवैज्ञानिक, सामाजिक और पर्यावरणीय कारण भी होते हैं। पर्यावरण में मौजूद कई रासायनिक पदार्थों को अब ‘ओबेसोजेनिक’ यानी मोटापा बढ़ाने वाला माना गया है, जो हार्मोन संतुलन बिगाड़ सकते हैं, आंतों के सूक्ष्मजीव तंत्र को प्रभावित कर सकते हैं और जीन स्तर पर परिवर्तन ला सकते हैं। “एक्सपोज़ोम” की अवधारणा यानी जीवन भर के सभी पर्यावरणीय कारकों का योग अब इस संदर्भ में महत्वपूर्ण मानी जा रही है। कई बार इन प्रभावों के परिणाम वर्षों बाद या अगली पीढ़ियों में दिखाई देते हैं। उदाहरण के लिए, डाइएथिलस्टिलबेस्ट्रोल (डिस्टिलबेन) दवा से मोटापा और कैंसर के बढ़ते जोखिम जैसे दीर्घकालिक प्रभाव देखे गए। अध्ययनों के अनुसार, जीएलपी-1 एनालॉग्स मोटापे को ‘ठीक’ नहीं कर सकते, वे केवल वजन घटाने में सहायक हैं। उदाहरण के लिए, एसटीईपी3 अध्ययन में सेमाग्लूटाइड लेने वाले प्रतिभागियों का वजन 68 सप्ताह में औसतन 15 प्रतिशत कम हुआ, जबकि प्लेसीबो समूह में यह केवल पांच प्रतिशत था। हालांकि यह सुधार महत्वपूर्ण है, फिर भी मरीज मोटापे की श्रेणी में ही बने रहते हैं।

साथ ही, लंबे समय तक उपचार जारी रखना और इसके दुष्प्रभाव (जैसे मांसपेशियों में कमी या वजन वापस बढ़ना) प्रमुख चिंताएं हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि अब तक जीएलपी-1 दवाएं केवल रोग विकसित होने के बाद इस्तेमाल की जाती हैं। यानी यह उपचारात्मक दृष्टिकोण है, न कि निवारक। मोटापा रोकने के प्रयासों में कई बाधाएं हैं — जैसे सस्ते और अत्यधिक प्रचारित प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों की आसान उपलब्धता, पौष्टिकता दर्शाने वाले उपकरणों (जैसे न्यूट्री-स्कोर) के उपयोग में बाधाएं, प्रदूषकों और हार्मोन प्रभावित करने वाले रसायनों का बढ़ता असर, शहरी नियोजन में सक्रिय जीवनशैली को बढ़ावा न देने वाली नीतियां और सामाजिक-आर्थिक असमानताएं आदि। फ्रांस में निचले आय वर्ग के 17 प्रतिशत लोग मोटापे से ग्रस्त हैं, जबकि उच्च आय वर्ग में यह दर 10 प्रतिशत है। बढ़ती असमानता और गरीबी इस प्रवृत्ति को और बढ़ा सकती है। जीएलपी-1 आधारित उपचार की अनुमानित लागत लगभग 300 यूरो प्रति माह है। यदि इसका खर्च स्वयं उठाना पड़े, तो यह केवल संपन्न वर्ग तक सीमित रहेगा। यदि स्वास्थ्य बीमा इसके लिए प्रतिपूर्ति करने लगे, तो सरकार पर वित्तीय बोझ अत्यधिक होगा। विशेषज्ञों का मत है कि मोटापे से निपटने के लिए किसी एक दवा पर निर्भर रहना व्यावहारिक नहीं है। बहु-विषयक दृष्टिकोण अपनाना आवश्यक है, जिसमें चिकित्सा, मनोविज्ञान, सार्वजनिक स्वास्थ्य, नीति-निर्माण और सामुदायिक अनुभव सभी को शामिल किया जाए।

Web Title: New obesity drugs are not a miracle cure, say experts

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