World Cancer Day: भारत में हर साल कैंसर से मरते हैं 5 लाख लोग, जानिए चौंकाने वाले आंकड़े
By उस्मान | Updated: February 3, 2018 12:05 IST2018-02-03T11:56:49+5:302018-02-03T12:05:47+5:30
भारत में हर साल कैंसर से जुड़े 1.4 करोड़ मामले सामने आ रहे हैं और साल इस रफ्तार से साल 2020 तक कैंसर से प्रभावित लोगों की संख्या में 25 फीसदी बढ़ सकती है।

World Cancer Day: भारत में हर साल कैंसर से मरते हैं 5 लाख लोग, जानिए चौंकाने वाले आंकड़े
कैंसर जानलेवा बीमारी है। ज्यादातर लोग कैंसर के शुरूआती लक्षणों की अनदेखी करते हैं। यही कारण है कि मरीज जल्दी ठीक नही होते हैं। कैंसर के विभिन्न प्रकार, सर्वाइकल कैंसर, ब्लैडर कैंसर, कोलोरेक्टल कैंसर, ब्रेस्ट कैंसर, ब्रेन ट्यूमर, एसोफैगल कैंसर, पैंक्रियाटिक कैंसर, बोन कैंसर ब्लड कैंसर आदि हैं। वर्ल्ड कैंसर डे के अवसर पर हम आपको कैंसर से जुड़े कुछ भयावह आंकड़े बता रहे हैं, जिन्हें आपको जानना बहुत जरूरी है।
1) इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च के अनुसार, भारत में हर साल कैंसर से जुड़े 1.4 करोड़ मामले सामने आ रहे हैं और इस रफ्तार से साल 2020 तक कैंसर से प्रभावित लोगों की संख्या 25 फीसदी बढ़ सकती है। यानी उस समय तक 1.7 लाख लोग कैंसर से प्रभावित होंगे।
2) विश्व स्वास्थ्य संगठन के अुनसार, भारत में हर साल पांच लाख लोग कैंसर से अकाल मौत का शिकार हो रहे हैं।
3) आपको जानकार हैरानी होगी कि देश में 700 प्रभावित लोगों में से सिर्फ 1 ओंकोलॉजिस्ट मौजूद है।
4) देश में सिर्फ 12.5 फीसदी लोग ही कैंसर को जल्दी पहचान कर इलाज शुरु करवा पाते हैं। वर्ष 2016 में अब तक कैंसर से मरने वाले मरीजों की कुल संख्या 736,000 हो चुकी है।
5) मुंह और फेफड़े का कैंसर भारतीय पुरुषों में सबसे ज्यादा पाया जाता है। जबकि महिलाओं में योनी और स्तन का कैंसर ज्यादा पाया जाता है।
6) भारत में हर साल ग्रीवा कैंसर के लगभग 1,22,000 नए मामले सामने आते हैं, जिसमें लगभग 67,500 महिलाएं होती हैं। कैंसर से संबंधित कुल मौतों का 11.1 फीसदी कारण सर्वाइकल कैंसर ही है।
7) पॉपुलेशन बेस्ड कैंसर रजिस्ट्री (पीबीसीआर) के अनुसार, भारत में एक साल में करीब 1,44,000 नए स्तन कैंसर के रोगी सामने आ रहे हैं।
8) यूनाइटेड नेशन के मुताबिक दुनियाभर में हर साल तंबाकू की वजह से 50 लाख लोग अपनी जिंदगी से हाथ धो बैठते हैं।
नोट: ऊपर दिए गए सभी आंकड़े इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च, विश्व स्वास्थ्य संगठन और यूनाइटेड नेशन की साल 2016 की रिपोर्ट के अनुसार हैं।